रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत के दौरे पर हैं. अपने करीब 30 घंटे के इस दौरे में पुतिन कई अहम मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बात करेंगे. उससे पहले ‘आजतक’ ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू किया. रूस की राजधानी मॉस्को के क्रेमलिन में ‘आजतक’ की मैनेजिंग एडिटर अंजना ओम कश्यप और इंडिया टुडे की फॉरेन अफेयर्स एडिटर गीता मोहन को दिए वर्ल्ड एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में पुतिन ने तमाम सवालों का बेबाकी से जवाब दिया.
पढ़ें-इस पूरे इंटरव्यू में पूछा गया हर सवाल और राष्ट्रपति पुतिन का उसपर जवाबः-
अंजना ओम कश्यपः व्लादिमीर पुतिन निस्संदेह दुनिया के सबसे प्रभावशाली राजनीतिज्ञों में से एक हैं, जिनके फैसले सिर्फ रूस ही नहीं, बल्कि दुनिया के अनेक देशों को प्रभावित करते हैं. वो वैश्विक मंच पर एक बेहद प्रभावशाली और रहस्यमय व्यक्तित्व हैं. और सच कहें तो इससे ज़्यादा रोमांचक कुछ हो ही नहीं सकता.
गीता मोहनः आज हमारे साथ मौजूद हैं दुनिया के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले नेताओं में से एक. एक ऐसे शख़्स, जिन्होंने सब कुछ देखा है- युद्धों से लेकर वैश्विक आर्थिक मंदियों तक, देशों के विघटन से लेकर बदले हुए वर्ल्ड ऑर्डर तक. बोरिस येल्सिन से लेकर डोनाल्ड ट्रंप तक और अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह से लेकर नरेंद्र मोदी तक.
उन्होंने दुनिया को अपनी आंखों के सामने बदलते हुए देखा है. उन्होंने रूस को बेहद कठिन और उथल-पुथल भरे दौर से निकाला है और फिर भी आज अपनी नेतृत्व क्षमता से एक ऐसी पहचान बनाई है जिसे दुनिया नजरअंदाज नहीं कर सकती.
व्लादिमीर पुतिनः मैं इस बात से सबसे ज्यादा खुश हूं कि मेरी मुलाकात मेरे दोस्त प्रधानमंत्री मोदी से होने वाली है. भारत में इस मुलाकात को लेकर हम बहुत पहले ही सहमति जता चुके थे. हमारे बीच चर्चा करने को बहुत कुछ है, क्योंकि भारत के साथ हमारे साझा सहयोग का विस्तार बहुत बड़ा है. मैं यहां हमारे संबंधों के इतिहास के बारे में तो बात ही नहीं कर रहा हूं. क्योंकि हमारे बीच रिश्तों का इतिहास सचमुच अनोखा है.
जिस रास्ते पर भारत आजादी के बाद चला है. 77 साल गुजर चुके हैं, जो कि इतिहास के हिसाब से एक छोटा अंतराल है. पर भारत ने इतने ही समय में बहुत प्रगति की है. मैं इसके बारे में और बात करूंगा, मगर जब वर्तमान में हम खुद को देखते हैं तो इतना बदलाव नजर नहीं आता. पर जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो हमें ये किसी बड़े चमत्कार से कम नहीं लगता.
ये शायद कम लोगों को पता हो कि भारत में अब लोगों की औसत आयु पिछले 77 सालों में दोगुनी से ज्यादा हो चुकी है. हम इस बारे में बात करेंगे पर ये कहना सही होगा कि भारत के साथ हमारे संबंध अब नये आयाम छू रहे हैं. मुझे बहुत खुशी है कि मुझे प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुलाकात का मौका मिल रहा है, ये केवल व्यापार के लिए ही नहीं है हमारी ये मुलाकात व्यक्तिगत स्तर पर भी बेहद अहम है.
अंजना ओम कश्यपः आपने अभी भारत-रूस संबंधों की बात की, ये संबंध सात दशकों पुराना है. हिंदी में दोस्ती और रूसी में द्रुस्बा का रिश्ता सात दशक से भी पुराना है. मेरा आपसे सवाल ये है कि आप दोस्ती के इस रिश्ते को आज के समय में कितना मजबूत पाते हैं और आप इस मौके पर अपने दोस्त प्रधानमंत्री मोदी के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
व्लादिमीर पुतिनः प्रधानमंत्री मोदी के बारे में? दरअसल, दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है और वक्त के साथ उसके बदलने की रफ्तार तेज होती जा रही है. ये बात सब जानते हैं. नये समीकरण और नये पावर सेंटर बन रहे हैं. इन समीकरणों पर प्रभाव डालने वाली शक्तियां भी समय के साथ बदल रही हैं. ऐसे हालात में दुनिया के महान देशों के बीच स्थिरता बेहद जरूरी है और विश्व के लिए ये स्थिरता विकास की आधारशिला की तरह है.
चाहे ये दो देशों के बीच का मामला हो या फिर पूरे विश्व से जुड़ा, इस सिलसिले में प्रधानमंत्री मोदी के साथ हमारे संबंध बहुत अहम भूमिका निभाते हैं, ये न केवल हमारे द्विपक्षीय संबंधों के लिए अहम है बल्कि हमारे पारस्परिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है. कुल मिलाकर हमारा आपसी सहयोग हमारे लक्ष्यों की प्राप्ति की गारंटी है. प्रधानमंत्री मोदी, सरकार और देश के सामने कई लक्ष्य रख चुके हैं. मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट इस दिशा में एक बेहतरीन उदाहरण है. हम जब भी मिलते हैं वो हमेशा मुझसे कुछ न कुछ नया करने को लेकर बात करते हैं, उनकी सोच काम को लेकर बेहद व्यवहारिक है.
अंजना ओम कश्यपः एससीओ की बैठक के दौरान आप और पीएम मोदी कार में एक साथ बैठे, इसे लेकर क्या पहले बात हो चुकी थी और कार में बैठकर आप दोनों के बीच क्या बातचीत हुई?
पुतिनः हम दोनों के बीच सामयिक विषयों पर ही बातचीत हुई और इसे लेकर पहले से कोई तैयारी नहीं थी. हम दोनों बाहर निकले. सामने मुझे मेरी कार दिखाई दी तो मैंने उन्हें साथ चलने को कह दिया. वैसे ही जैसा दोस्तों के बीच होता है, इसमें इससे ज्यादा और कुछ भी नहीं था. रास्ते में हम दोनों ने बस आम दोस्तों की तरह बात की. हमारे पास बातचीत करने को हमेशा कुछ न कुछ जरूर होता है. हम दोनों बातचीत में इतना व्यस्त हो गए कि बाद में ख्याल आया कि लोग हमारा इंतजार कर रहे होंगे. ऐसा कुछ खास नहीं था, इस वाकये से बस ये पता चलता है कि हमारे पास चर्चा करने को बहुत कुछ रहता है और हम इस तरह की चर्चा को खासी अहमियत देते हैं.
गीता मोहनः राष्ट्रपति पुतिन भारत में आपकी यात्रा के दौरान क्या-क्या घोषणाएं अपेक्षित हैं. हमने टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, व्यापार समझौतों के बारे में सुना है. इसके अलावा हम और क्या-क्या उम्मीद कर सकते हैं? इस समय आपकी यात्रा पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हैं.
व्लादिमीर पुतिनः पूरी दुनिया देख रही है... मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ खास है. भारत एक बहुत विशाल देश है. ये 150 करोड़ लोगों का देश है. ये एक विकासशील देश है, जहां विकास की दर 7.7 फीसदी है. ये प्रधानमंत्री मोदी की एक बड़ी उपलब्धि है. ये भारत के नागरिकों के लिए गौरव की बात है. ये सही है कि इसके बावजूद आलोचना करने वाले कह सकते हैं कि इससे बेहतर किया जा सकता था. पर परिणाम सबके सामने है. आने वाले समय में हम भविष्य को लेकर कई अहम क्षेत्रों में सहयोग के लिए तैयार हैं और उनमें से एक है हाई टेक्नोलॉजी.
भारत और रूस स्पेस टेक्नोलॉजी, न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी से लेकर शिप बिल्डिंग, एयरक्राफ्ट बिल्डिंग और भविष्य को ध्यान में रखते हुए कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं. उदाहरण के तौर पर आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस. हम इसे लेकर आगे और भी बात करेंगे. पर ये आज के दौर की वो टेक्नोलॉजी है जो आने वाला भविष्य तय करेगी. ये हमारी प्रगति को रफ्तार दे सकती है. पर ये भी सही है कि इसके साथ कई चुनौतियां जुड़ी हैं. हम प्रधानमंत्री मोदी के साथ मिलकर इन्हीं विषयों पर बात करेंगे और वो रास्ता चुनेंगे जो हमारे लिए आज के समय में सबसे बेहतर हो.
गीता मोहनः क्या आप किसी खास समझौते के बारे में बताना चाहेंगे?
व्लादिमीर पुतिनः मुझे शायद इस बारे में अभी कुछ नहीं कहना चाहिए. क्योंकि इसकी घोषणा हम साझा तौर पर मेरी भारत यात्रा के दौरान ही करेंगे. तभी इन समझौतों पर औपचारिक हस्ताक्षर भी किए जाएंगे.
गीता मोहनः अगर व्यापार की बात करें तो भारत और रूस दोनों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खासा दबाव है. खासतौर पर अगर तेल की बात की जाए तो भारत को पश्चिम के दबाव के चलते काफी नुकसान भी उठाना पड़ा. पश्चिम की ओर से पड़ रहे दबाव का सामना भारत और रूस मिल कर कैसे कर सकते हैं?
पुतिनः आप जिस दबाव की बात कर रहे हैं वो दरअसल राजनीति का इस्तेमाल कर आर्थिक हितों को साधने की कोशिश है. दूसरे शब्दों में कहें तो भारत के साथ हमारे उर्जा सहयोग पर इस तरह के अल्पकालीन राजनीतिक दबाव का असर नहीं पड़ता. भारत के साथ हमारा उर्जा समझौता बहुत पुराना और भरोसे पर टिका है. इसका यूक्रेन में हुई घटनाओं से कोई संबंध नहीं है. बल्कि हमारी एक बड़ी तेल कंपनी ने भारत में एक तेल रिफायनरी का अधिग्रहण किया है. ये किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था में अब तक के सबसे बड़े निवेश में से एक है. यहां हमने 20 बिलियन यूएस डॉलर से ज्यादा का निवेश किया.
हमारी कंपनी अपने साझेदारों के साथ इस रिफायनरी पर सफलतापूर्वक काम कर रही है. भारत मौजूदा दौर में यूरोप के बाजारों में बड़े स्तर पर तेल सप्लाई कर पा रहा है क्योंकि वो हमसे सस्ती दरों पर तेल खरीद रहा है. लेकिन इसके पीछे हमारे दशकों पुराने संबंध हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये बात बहुत से लोगों को चुभ रही है कि भारत रूस की मदद से तेल के बाजार का एक अग्रणी सप्लायर बन चुका है. और इसीलिए वो भारत को नए-नए राजनीतिक हथकंडों से परेशान कर रहे हैं. उसके विकास के रास्ते में रोड़े अटका रहे हैं.
अंजना ओम कश्यपः भारत रूस में बने हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार है. इस क्षेत्र में रूस से भारत की कुल खरीद लगभग 38 फीसदी है. ऐसे में जब भारत अमेरिका की ओर से प्रतिबंधों का सामना कर रहा है तो इन बदली हुई परिस्थितियों में रूस भारत का साथ किस रूप में देगा?
व्लादिमीर पुतिनः मैं समझता हूं कि भारत से आज दुनिया का कोई भी देश वैसे बात नहीं कर सकता जैसे आज से 77 साल पहले किया करता था. भारत आज एक शक्तिशाली देश है और वो पहले की तरह ब्रिटिश शासन के अधीन नहीं है और ये बात सभी को समझनी होगी. खासतौर से प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में भारत अब विदेशी दबाव में नहीं आने वाला. भारत के लोग गर्व कर सकते हैं कि उनका प्रधानमंत्री किसी के दबाव में काम नहीं करता. साथ ही वो किसी के साथ टकराव का रास्ता भी नहीं अपनाते.
दरअसल, हम किसी के साथ भी टकराव नहीं चाहते. केवल अपने वैध हितों की रक्षा चाहते हैं. हमारा 90 फीसदी से ज्यादा लेनदेन हमारी राष्ट्रीय मुद्रा में होता है. हालांकि बिचौलियों को लेकर थोड़ी समस्या जरूर आती है. पर इसके लिए हम साझा व्यवस्था बना सकते हैं जहां रूस और भारत के बैंक बिना किसी रुकावट आपस में लेनदेन कर सकें. हम इस पर लगातार काम कर रहे हैं. एक बार ये व्यवस्था अमल में आ जाए तो व्यापार को लेकर बाहरी दबाव से जुड़ी सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी.
अंजना ओम कश्यपः ऑपरेशन सिंदूर के दौरान रूस से मिले हथियारों के बल पर भारत ने जंग में जबरदस्त जीत हासिल की. भारत को मिलने वाले पांच एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम रूस कब तक दे देगा? एस-500 की डिलिवरी कब तक अपेक्षित है और पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान एसयू-57 भारत को कब तक मिल पाएंगे?
व्लादिमीर पुतिनः भारत हमारे सबसे भरोसेमंद साझेदारों में से एक है. हम सिर्फ भारत को अपने हथियार बेच नहीं रहे हैं और भारत इन्हें केवल खरीद नहीं रहा है. हमारे बीच ये संबंध इस सबसे ऊपर है. हमें ये आपसी सहयोग अच्छा लगता है. उतना ही जितना भारत को. और हम केवल हथियार ही नहीं बेच रहे बल्कि टेक्नोलॉजी भी साझा कर रहे हैं. रक्षा के क्षेत्र में ऐसा आमतौर पर नहीं होता. क्योंकि इसके लिए दो देशों के बीच अटूट विश्वास की जरूरत होती है. पर हमारा सहयोग यहीं तक सीमित नहीं है. हम पानी के जहाजों से लेकर, मिसाइल और हवाई जहाज बनाने का काम साझा रूप से कर रहे हैं.
आपने एसयू- 57 की बात की. पर भारत और भी कई तरह के रूसी जंगी जहाजों का इस्तेमाल करता है. साथ ही टी-90 टैंक जिन्हें भारत खुद बना रहा है. ये बेहतरीन टैंक हैं और ब्रह्मोस मिसाइल भी. जिन्हें भारत रूस के साथ मिल कर मेक इन इंडिया मिशन के तहत बना रहा है. इसमें कलाश्निकोव रायफल भी शामिल हैं. हालांकि यहां हम एडवांस टेक्नोलॉजी की बात कर रहे हैं. और इसीलिए युद्ध में आधुनिक हथियारों के इस्तेमाल को देखते हुए उनका महत्व कहीं ज्यादा बढ़ गया है. और अब तो भारत के रक्षा विशेषज्ञ भी रूसी सहयोग से इन बातों को अच्छी तरह से समझते हैं कि टेक्नोलॉजी और हथियारों का अलग-अलग परिस्थितियों में कैसे बेहतर इस्तेमाल किया जाए.
गीता मोहनः आपने भारत को लेकर रणनीतिक स्वायत्ता की बात की. भारत के हितों के लिये ये बेहद जरूरी है. क्या भारत ने पश्चिम के दबाव में रूस से तेल की खरीद कम की है?
पुतिनः ये सही है कि साल के पहले नौ महीनों के मुकाबले अब भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार में कुछ कमी आई है. लेकिन इसे एक तरह के समायोजन के रूप में देखा जाना चाहिए. लेकिन कुल मिलाकर भारत के साथ रूस का व्यापार लगभग पहले जैसा ही है. मैं इस समय महीने के हिसाब से सटीक आंकड़े नहीं दे सकता. पर रूस का भारत के साथ हाइड्रोकार्बन्स और तेल को लेकर व्यापार स्थाई रूप से जारी है. मैं इसे लेकर रूसी तेल कंपनियों और हितधारकों का मत अच्छी तरह जानता हूं. वो मानते हैं कि उनके भारतीय साझेदार पूरी तरह से भरोसेमंद हैं.
गीता मोहनः भारत और रूस के बीच एक दूसरा अहम मुद्दा परमाणु सहयोग को लेकर है. भारत को अब तक रूस से इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा सहयोग मिला है. क्या हम इस बार किसी बड़े परमाणु समझौते की अपेक्षा कर सकते हैं?
व्लादिमीर पुतिनः हां, इसे लेकर हम जरूर घोषणा करने वाले हैं. ये सही है कि इस क्षेत्र में हम सबसे बड़े हितधारकों में से एक हैं. बल्कि हितधारक नहीं, हम परमाणु उर्जा प्लांट के क्षेत्र में आधुनिक और भरोसेमंद उपकरणों के दुनिया के सबसे बड़े निर्माता हैं. एक रूसी कंपनी ही इस क्षेत्र में दुनिया की सबसे अग्रणी कंपनी है. इस कंपनी अब तक विदेशों में 22 न्यूक्लियर रिएक्टर्स बना चुकी है. और ये सभी बेहद उपयोगी साबित हुए हैं. कोई शक नहीं कि रूस दुनिया भर में छोटे न्यूक्लियर प्लांट्स बनाने में महारथ रखता है. इनमें से कई रूस में पहले ही इस्तेमाल में हैं. हम इन्हें जमीन, समुद्र या फिर पानी की सतह पर इस्तेमाल करने के विकल्प भी दे सकते हैं. इस तरह से इन्हें ऐसे क्षेत्रों में प्रयोग किया जा सकता है जहां बड़े पावर प्लांट बनाने का विकल्प नहीं है. या फिर जहां पहुंचना मुश्किल है.
गीता मोहनः आपने भारत-रूस सहयोग, मेड इन इंडिया और मेक इन रशिया को लेकर काफी बातें कीं. आपके मुताबिक राष्ट्रपति ट्रंप की इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी?
व्लादिमीर पुतिनः देखिये न मैं, न प्रधानमंत्री मोदी किसी के दबाव में आते हैं. हालांकि मैं ये भी साफ कर दूं कि हम अपना साझा काम कभी भी किसी के विरुद्ध नहीं करते. राष्ट्रपति ट्रंप की अपनी नीतियां और अपने सरोकार हैं और हमारे अपने. हम किसी के विरोध में नहीं हैं. रूस और भारत तो बस अपना साझा हित चाहते हैं. हम किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं चाहते. मुझे लगता है हमारी इस नीति की देशों को सराहना करनी चाहिए.
अंजना ओम कश्यपः डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत से कहा कि अगर आप रूस से तेल खरीद रहे हैं तो आप रूस-यूक्रेन युद्ध को जारी रखने में आर्थिक मदद कर रहे हैं. इस परिप्रेक्ष में आप अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का व्यवहार कैसे आंकते हैं?
पुतिनः मैं कभी अपने सहयोगियों का चरित्र-चित्रण नहीं करता. उनका भी नहीं जिन्होंने मेरे साथ काम किया. और खासतौर पर राष्ट्राध्यक्षों का तो बिलकुल नहीं. मेरे विचार में ये आकलन उस देश के नागरिकों को करना चाहिये जिन्होंने उन्हें वोट देकर सत्ता सौंपी. जहां तक भारत की ओर से रूस से उर्जा संसाधनों की खरीद की बात है तो मैं साफ कर दूं कि अमेरिका अब भी अपने न्यूक्लियर पावर प्लांट्स के लिए हमसे परमाणु ऊर्जा की खरीद करता है. इनमें अमेरिका में चल रहे न्यूक्लियर पावर प्लांट्स के लिए यूरेनियम भी शामिल है. तो अगर अमेरिका खुद अपनी ऊर्जा जरूरतें रूस के जरिये पूरी करता है तो फिर भारत की खरीद को लेकर उन्हें आपत्ति क्यों है? इस विषय पर गहन अध्ययन की जरूरत है. और हम इसे लेकर राष्ट्रपति ट्रंप से चर्चा के लिए भी तैयार हैं.
गीता मोहनः डोनाल्ड ट्रंप आप पर टिप्पणी करने का कोई मौका नहीं छोड़ते. ट्रंप ने टैरिफ को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करने का चलन शुरू किया. उन्होंने इसे भारत के खिलाफ भी इस्तेमाल किया. आपके मुताबिक रूस और भारत को ट्रंप की इस नीति का मुकाबला किस तरह से करना चाहिए?
पुतिनः ये उनकी अपनी नीति है. मुझे लगता है उनके सलाहकार ऐसा समझते हैं कि इस तरह से टैरिफ लगाने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को फायदा होगा. हालांकि हमारे आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ मानते हैं कि इस तरह की नीति खतरनाक है. पर आखिर में इस तरह की नीतियों को लेकर फैसला किसी भी देश को और उसके सर्वोच्च नेता को करना होता है. हालांकि हमने ऐसा कभी नहीं किया, ना ही हम ऐसा करना चाहते हैं. हम एक खुली अर्थव्यवस्था में विश्वास करते हैं. हम बस यही उम्मीद करते हैं कि वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन के जिन नियमों के उल्लंघन की बात की जाती है उनमें संशोधन किया जाए.
गीता मोहनः बीते कुछ समय में रूस और अमेरिका के बीच संबंधों में बदलाव आया है. अमेरिका अब खुद रूस से बातचीत की पेशकश करता है. हाल ही में आपकी जेरेड कुश्नर और स्टीव विटकॉफ के साथ भी मुलाकात हुई. ये एक अहम बैठक थी. आपके बीच क्या चर्चा हुई? और क्या कुछ मुद्दों पर रूस ने पीछे हटने से इंकार किया? इस बैठक में हुआ क्या?
पुतिनः अभी इस बातचीत के मायने निकालना थोड़ी जल्दबाजी होगी. मुझे नहीं लगता आप वहां होते भी तो उस चर्चा को सुनकर आपको कुछ हासिल होता. ये बैठक पांच घंटे चली. मैं खुद इतनी लंबी बैठक से ऊब गया था. पर ये बैठक जरूरी थी. और जरा सोचिए इस पूरी बैठक में विटकॉफ और कुश्नर के साथ मैं अकेला था. पर सच कहूं तो ये एक बेहद अहम बैठक थी. हालांकि इस बैठक में राष्ट्रपति ट्रंप के साथ अलास्का में हुई बैठक से पहले हुए समझौते और उससे जुड़े बिंदुओं पर ही बातचीत हुई. पर इस बार हमने एक एक बिंदु पर सिलसिलेवार बातचीत की जो कुल मिला कर काफी सार्थक रहा.
अंजना ओम कश्यपः पर क्या इस बैठक में कोई ऐसा मुद्दा था जिसे लेकर बात आगे नहीं बढ़ पाई?
व्लादिमीर पुतिनः हां, ऐसे कई मुद्दे रहे जिन्हें लेकर विरोधाभास था. ये एक बेहद पेचीदा विषय है जिसकी जिम्मेदारी राष्ट्रपित ट्रंप ने खुद पर ली है. मैं इसे लेकर कटाक्ष नहीं कर रहा. मगर दोनों पक्षों को एकमत करना एक बहुत जटिल काम है. हालांकि मैं मानता हूं कि राष्ट्रपति ट्रंप सचमुच इसका हल चाहते हैं और तभी हमने एक एक बिंदु पर सिलसिलेवार बात की. ऐसे हर मुद्दे पर जिसे लेकर हम सहमत या असहमत थे. फिलहाल अभी इस मामले में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. क्योंकि इसका कुछ भी निष्कर्ष निकालना राष्ट्रपति ट्रंप की देखरेख में हो रही बातचीत में बाधा डाल सकता है. उनके कूटनीतिक प्रयास जारी हैं. उन्होंने पहले यूक्रेन के प्रतिनिधियों से बात की, इसके बाद वो यूरोप गए, फिर वो हमारे पास आए और इसके बाद वो यूरोपीय हितधारकों और यूक्रेन के प्रतिनिधियों से दोबारा बात करेंगे.
गीता मोहनः तो क्या आपके बीच 28 बिंदुओं वाले शांति प्रस्ताव को लेकर भी बात हुई?
व्लादिमीर पुतिनः हां, हमारे बीच उसे लेकर भी चर्चा हुई. हालांकि बाद में उन्होंने उन 28 बिंदुओं को 27 में बदला, फिर उन्हीं को चार पैकेजों में परिवर्तित कर उन पर चर्चा की. हालांकि वो पूरी तरह उन शुरुआती 28 बिंदुओं पर ही आधारित थे.
अंजना ओम कश्यपः अलास्का में क्या हुआ? आप राष्ट्रपति ट्रंप से मिले थे और वो सब शांति समझौते के बारे में था, वहां क्या हुआ था? क्या उससे कुछ हासिल हुआ? क्या आपको सचमुच कोई स्पष्ट और ईमानदार इरादा दिखाई दिया?
व्लादिमीर पुतिनः हां, बिलकुल ऐसा ही था. हमें एक एहसास था. बल्कि एहसास से भी ज़्यादा. मुझे कोई शक नहीं था कि ये राष्ट्रपति ट्रंप की एक सच्ची इच्छा है. खैर, इस बारे में बात न करें कि इसका कारण क्या है, या किसने इस सच्ची इच्छा को प्रेरित किया, लेकिन यह निश्चित है कि वह मौजूद है. राष्ट्रपति ट्रंप के पास वास्तव में यह समझ है कि यह क्यों समाप्त होना चाहिए और जितनी जल्दी हो सके. इसी क्रम में, मानवीय मुद्दों की बात करें तो मेरा पूरा विश्वास है कि ये उन वजहों में से एक है, जिसके पीछे राष्ट्रपति ट्रंप का व्यवहार है. क्योंकि वह हमेशा कहते रहे हैं और मुझे यकीन है कि यह सच है कि वे नुकसान को कम से कम रखना चाहते हैं. और मुझे यकीन है कि उनके मन में इसके मानवीय पहलू भी हैं, लेकिन इसके अलावा भी कुछ विचार हैं राजनीतिक और आर्थिक, दोनों. और मुझे यकीन है कि अमेरिका कोई समाधान खोजने की कोशिश कर रहा है.
गीता मोहनः ट्रंप दावा करते रहे हैं कि उन्होंने युद्ध खत्म किए. वह यह दावा भी करते हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता कर युद्धविराम कराया और अब वह रूस-यूक्रेन, इजरायल युद्ध को देख रहे हैं. क्या आपको सच में लगता है कि ट्रंप एक पीसमेकर हैं?
व्लादिमीर पुतिनः यूक्रेन को लेकर तो निश्चित रूप से. मैं फिर से कह सकता हूं कि इसे लेकर मैं सकारात्मक हूं. मुझे कोई शक नहीं है कि वह ईमानदारी से एक शांतिपूर्ण समाधान खोजने का प्रयास कर रहे हैं. और मैं फिर से यह रेखांकित कर सकता हूं कि अमेरिका के पास इसके लिए अलग कारण हो सकते हैं. मानवीय कारण भी और राष्ट्रपति ट्रंप के व्यक्तिगत मानवीय विचार भी, क्योंकि वास्तव में वह शत्रुता और जनहानि का अंत चाहते हैं. लेकिन उनके राजनीतिक हित भी हो सकते हैं, रूस और यूक्रेन के बीच गतिरोध के अंत के लिए. और आर्थिक कारण भी हैं. उदाहरण के लिए ऊर्जा क्षेत्र में और अन्य क्षेत्रों में भी. कई ऐसे पहलू हैं जहां अमेरिका और रूस के बीच आर्थिक संबंधों की बहाली दोनों देशों-रूस और अमेरिका के लिए फायदे का सौदा हो सकता है.
उन्होंने (ट्रंप) मुझे कुछ चिट्ठियां दिखाईं, जिन्हें कुछ प्रमुख अमेरिकी कंपनियों ने हमारे लिए लिखा था. जी हां, वो चिट्ठियां, जो अमेरिकी कंपनियों ने लिखी थीं कि वो तैयार हैं वापस आने के लिए, जब सभी मुद्दे समाप्त हो जाएं और वो ऐसा करना चाहते हैं और उन्हें ना भुलाया जाए. बहुत से लोग रूस वापस आना चाहते हैं. लेकिन ट्रंप के लिए उनका पक्ष रखना, कंपनियों की ओर से पक्ष रखने के लिए कंपनियों के पत्र लेकर आना तो बिल्कुल ही अलग मामला है.
गीता मोहनः कंपनियों का पक्ष रखने के लिए, कंपनियों के पत्र लेकर आना. उनका पक्ष रखने की कोशिश करना. ये तो बिल्कुल अनोखी बात है.
व्लादिमीर पुतिनः नहीं, नहीं. आपने मुझे गलत समझा. हमारे पास अमेरिकी कंपनियों के पत्र हैं. हमारे पास सचमुच अमेरिकी कंपनियों के पत्र मौजूद हैं.
अंजना ओम कश्यपः अब हम एक बहुत गंभीर मुद्दे पर आएंगे और वो है रूस-यूक्रेन युद्ध. आपकी नजर में रूस के लिए इस युद्ध में क्या विजय मानी जाएगी? लाल रेखाएं क्या हैं? क्योंकि आपने बहुत स्पष्ट रूप से कहा है कि रूस तभी हथियार डालेगा अगर कीव की सेनाएं रूस की ओर से दावा किए गए इलाकों से पीछे हट जाएं. वो कौन से हिस्से होंगे?
व्लादिमीर पुतिनः बात जीत की नहीं है. बात इस बात की है कि रूस अपनी रक्षा कर रहा है. हमारे हितों की और उन लोगों की रक्षा करता रहेगा जो वहां रहते हैं. यह हमारे परंपरागत मूल्य, रूसी भाषा और संस्कृति की रक्षा की बात है. साथ ही, यह धर्म और आस्था की भी रक्षा है, जो सदियों से उन क्षेत्रों में मौजूद रही है. यूक्रेन में रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च को लगभग प्रतिबंधित कर दिया गया है. चर्चों में जबरन कब्जा किया गया और लोगों को वहां से निकाल दिया गया. मैं तो यहां रूसी भाषा पर प्रतिबंध की बात भी नहीं कर रहा. यह एक जटिल और व्यापक मुद्दों का समूह है. मैं एक बार फिर याद दिलाना चाहता हूं कि हम युद्ध शुरू करने वालों में से नहीं थे. पश्चिम ने यूक्रेन के साथ मिलीभगत की और वहां तख्तापलट को अंजाम दिया और उसके बाद यूक्रेन में घटनाएं हुईं, खासकर दक्षिण-पूर्व में और फिर डोनबास में. यह चर्चा में भी नहीं है.
पूरे आठ साल हम शांतिपूर्ण तरीकों से इस मुद्दे को सुलझाने की कोशिश कर रहे थे. हमने इसे मिन्स्क समझौतों में शांतिपूर्ण सेटेलमेंट के रूप में दर्ज किया, इस उम्मीद में कि इसे शांतिपूर्ण तरीके से हल किया जा सकेगा. बाद में हमें पता चला कि जो पश्चिमी नेता यह सार्वजनिक रूप से कहते थे, उन्होंने कभी भी मिन्स्क समझौतों को पूरा करने का इरादा नहीं रखा था. उन्होंने केवल इसलिए इसे साइन किया ताकि यूक्रेन को हथियार देने का मौका मिल सके और हमारे खिलाफ सशस्त्र संघर्ष जारी रखा जा सके. तो हमें आठ साल तक डोनबास में रहने वाले लोगों के मारे जाने के बाद, जिसकी याद पश्चिम में कोई नहीं रखता, पहले उन गणराज्यों को मान्यता देनी पड़ी और दूसरे उन्हें समर्थन देना पड़ा. और अब, यह विशेष सैन्य अभियान युद्ध की शुरुआत नहीं है. यह उस युद्ध को समाप्त करने का प्रयास है, जो पश्चिम ने यूक्रेनी राष्ट्रवादियों के हाथों हमारे खिलाफ शुरू किया था. यही असलियत है. यही विवाद की जड़ है. और हम इस युद्ध को तब खत्म करेंगे जब हम तय करेंगे कि हमने वे लक्ष्य हासिल कर लिए हैं जो हमने विशेष सैन्य अभियान की शुरुआत में निर्धारित किए थे, उन क्षेत्रों को मुक्त कराने के लिए.
अंजना ओम कश्यपः व्लादिमिर पुतिन का यूक्रेन में आखिरी मकसद क्या है?
पुतिनः आठ साल तक हमने खुद को स्वतंत्र घोषित करने वाली गणराज्यों को मान्यता नहीं दी. आठ साल तक उन्होंने अपनी आजादी का ऐलान किया हुआ था और हम कोशिश करते रहे कि यूक्रेन के बाकी हिस्सों और इन गणराज्यों के बीच कोई रिश्ते बन सकें. फिर हमें समझ आया कि यह मुमकिन ही नहीं है, उन्हें तो बस खत्म किया जा रहा था. तभी हमें मजबूर होकर उन्हें मान्यता देनी पड़ी. और सिर्फ कुछ हिस्सों को नहीं, बल्कि उनकी वही प्रशासनिक सीमाएं माननी पड़ीं, जो सोवियत काल में थीं और बाद में स्वतंत्र यूक्रेन बनने के बाद भी थीं. फिर वहां के लोग मतदाता रेफरेंडम में गए और उन्होंने मतदान किया कि वहाँ से सेना हटाई जाए और कोई भी सैन्य कार्रवाई न की जाए. लेकिन उन्होंने युद्ध को ही चुना. और अब मामला साफ हो गया है और बात एक ही चीज़ पर आकर टिकती है: या तो हम सैन्य कार्रवाई के ज़रिए उन क्षेत्रों को मुक्त कराएं, या फिर यूक्रेनी सेना वहाँ से हट जाए, उन इलाकों को छोड़ दे और वहाँ के लोगों की हत्या करना बंद करे.
अंजना ओम कश्यपः आपने 8 मार्च को अपने अभिभाषण में कहा था कि कीव सभी रूसी शहरों की जननी है.
व्लादिमीर पुतिनः ये कोई मनगढ़ंत बयान नहीं है, ऐसा इतिहास में कहा गया है. रूस के बनने की कहानी में पहले नोवगोरोद राजधानी थी और उससे पहले विलीकी फिर कीव. इसके बाद से कीव ओल्ड रशिया का हिस्सा बन गया और तब से कीव को रूसी शहरों की जननी माना जाता है. उसके बाद इतिहास में कई बदलाव हुए और ये जो पुरातन रूस अलग-अलग हिस्सों में बंटा, एक हिस्सा मॉस्को की तरफ गया, कीव का हिस्सा लातविया में गया. कीव एक समय में पोलैंड से जुड़ा और 18वीं सदी में वापस रूस में मिल गया.
गीता मोहनः जब ये सैन्य कार्रवाई चल रही थी, मैं दोनेत्सक, लुहांसक, जेपोरेजिया और खेरसॉन के लोगों से मिली तो वे कीव से बेहद नाराज थे. लेकिन वे लोग हैरान थे और उन्होंने कहा कि पुतिन ने हमें अनाथ क्यों छोड़ दिया? इनके अपने लोग बॉर्डर के दोनों ओर थे और इनका रूस और यूक्रेन के बीच रोज का आना-जाना था.
व्लादिमीर पुतिनः मैं समझा नहीं वो किस लिए हैरान थे?
गीता मोहनः पूर्वी यूक्रेन में जहां लोगों के घर बर्बाद कर दिए गए थे.
पुतिनः इसका जवाब बड़ा आसान है कि वो क्षेत्र कीव के कंट्रोल में थे और जो क्षेत्र कीव के कंट्रोल में नहीं थे उनको पूरी तरह से कीव ने बर्बाद कर दिया और इसलिए हम मजबूर हो गए, उन इलाकों का साथ देने के लिए जो नष्ट कर दिए गए. लोगों ने रेफरेंडम के लिए खुलेआम बोलना शुरू कर दिया. जो आजादी चाहते थे इधर आएं और जो नहीं चाहते वो दूसरी तरफ जा सकते थे, हम उन्हें मना नहीं करेंगे, वो बेशक जा सकते हैं.
गीता मोहनः आपका राष्ट्रपति जेलेंस्की के बारे में क्या ख्याल है? उनको नाटो का वादा था. उनसे यूरोपियन यूनियन ने भी वादा किया था, क्या नाटो उनको कभी शामिल करता?
व्लादिमीर पुतिनः जब जेलेंस्की सत्ता में आए तो उन्होंने कहा था कि वो हर हालत में शांति की कोशिश करेंगे, भले ही इसके लिए उन्हें अपना करियर दांव पर लगाना पड़े. अब देखिए सब कुछ दूसरी तरह से दिखाई पड़ रहा है. अब वो छोटे से समूह नेशनल रेडिकल फासिस्ट की मदद से हल निकाल रहे हैं. ये सरकार अपनी सोच से नियोनाजी है. इनके राष्टवाद और नियोनाजी की परिभाषा एक ही है. इसी वजह से सारा माहौल युद्ध का बना. नाकामयाबी ही मिली. उनके लिए सबसे जरूरी है ये समझना कि शांतिपूर्ण वार्ता से ही हर समस्या का हल मुमकिन है. और यही बात हम उनको साल 2022 से समझाने की कोशिश कर रहे हैं. जो वो करना चाह रहे हैं वो तो वही बता सकते हैं.
अंजना ओम कश्यपः आपने हमेशा से ये कहा कि नाटो का ईस्ट की तरफ विस्तार आपके लिए चिंता का विषय है, लेकिन यूक्रेन को नाटो की सदस्यता नहीं मिली है. क्या नाटो का विस्तार आपके लिए चिंता का विषय है या बहाना है उन इलाकों को वापस लेने का?
व्लादिमीर पुतिनः नाटो एक अलग मसला है. रूसी भाषा, संस्कृति, धर्म, हम यहां पर कुछ भी अलग से नहीं मांग रहे हैं. सबसे पहले जो बात सभी पर लागू है कि किसी भी देश की सुरक्षा, किसी अन्य देश की सुरक्षा का उल्लंघन करके नहीं होती. हर देश को अपनी सुरक्षा अपने तरीके से करने का हक है. क्या हम यूक्रेन को इस चीज के लिए मना करेंगे, बिल्कुल नहीं. पर इसका मतलब ये नहीं कि वो रूस की सुरक्षा को नुकसान पहुंचाएं. यूक्रेन को नाटो से जुड़कर अपनी सुरक्षा करनी थी और ये रूस के लिए हानिकारक है. हमने कोई भी ऐसी नाजयज मांग नहीं की थी कि ऐसा लगे कि सिर पर पहाड़ टूट पड़ा. हम सिर्फ इस उम्मीद पर हैं कि हमें वो मिले जो तय था, और ये हमने कोई कल ही सोचकर तय नहीं किया. ये सोवियत संघ के समय में तय हुआ था. 90 के दशक में ये हमारे लिए खतरा था, इसका सबूत हैं वो पहले दस्तावेज जिन पर हस्ताक्षर हुए. इसमें ये बात साफतौर पर लिखी गई जब यूक्रेन अलग हुआ तो उसने अपने आपको न्यूट्रल स्टेट घोषित किया.
गीता मोहनः क्या यही कारण था कि आपने क्रिमिया पोर्ट पर कब्जा किया, जो कि इकलौता पोर्ट है रूस के लिए और क्या इसलिए आप जी-8 से अलग हुए और जैसा कि कईयों का मानना है कि यही कारण था कि रूस अकेला पड़ गया.
पुतिनः हमें क्रिमिया पोर्ट को लेने की जरूरत नहीं. वो हमारा है. हमारी नोसैना, यूक्रेन से समझौते के तहत वहां पहले से ही मौजूद थी. सेविस्तोपोल के नौसेना के पोर्ट पर सोवियत संघ विलय होने के बाद से सेना वहीं थी. ये एक फैक्ट है. लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं है, हमने क्रिमिया पोर्ट पर कब्जा नहीं किया. हम उन लोगों की मदद के लिए आगे बढ़े. जो कि अपने भविष्य को इनके हाथों में छोड़ चुके थे. उनका मानना था जब सोवियत संघ का विलय हुआ तो उनकी मर्जी नहीं पूछी गई. पर अब लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाने के बाद उन्हें ये मंजूर नहीं था. और किसी को लगता है कि रूस कुछ और करेगा तो ये गलत है. रूस हमेशा अपनी भलाई की रक्षा करेगा.
अंजना ओम कश्यपः क्या आप जी-8 जाना चाहेंगे? इस बारे में क्या आप सोच रहे हैं?
व्लादिमीर पुतिनः नहीं
अंजना ओम कश्यपः आपका ये जवाब दिलचस्प है. आपकी सोच बेहद साफ है.
व्लादिमीर पुतिनः मैं इसकी गहराई में नहीं जाना चाहूंगा पर बहुत पहले ही मैंने इस पर विचार करना छोड़ दिया था. दूसरी बात मुझे ये नहीं समझ आती कि जो देश जी-8 में शामिल हैं वो अपने आपको बड़ा क्यों मानते हैं, ऐसा क्या है? उदाहरण के तौर पर भारत आर्थिक तौर पर तीसरे स्थान पर है. वहीं यूके कहां पर है? शायद 10वें स्थान पर. यूक्रेन एक मजबूत देश है, पर उसकी इकोनॉमी लगातार सिकुड़ती जा रही है. जर्मनी में रिसेशन है. हालांकि फिर भी यहां पर सब मिलते हैं, बातचीत करते हैं. एक दूसरे की समस्या का हल निकालते हैं. एक दूसरे का अभिवादन करते हैं. ऐसे तो सब कुछ ठीक है पर मैंने वहां बहुत पहले जाना छोड़ दिया और इसका संबंध यूक्रेन वाली घटना से नहीं है. मैं इस बात में नहीं जाना चाहूंगा कि ऐसा क्यों है? पर मैंने इसके बारे में अमेरिका को जानकारी दे दी थी.
गीता मोहनः क्या आपने उन्हें इसकी जानकारी इस मीटिंग में दी?
व्लादिमीर पुतिनः हां, पहले भी दी और इस बार भी दी.
अंजना ओम कश्यप: ये बहुत अहम पहलू है.
व्लादिमीर पुतिनः आपको ऐसा लगता है? मुझे ऐसा नहीं लगता कि ये अहम है.
अंजना ओम कश्यप: आप हमें बता रहे हैं कि हाल ही में स्टीव विटकॉफ के साथ आपकी बैठक में आपको यह प्रस्ताव दिया गया कि आप जी-8 में वापस आ सकते हैं और आपने पूरी तरह स्पष्ट कर दिया कि आपकी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं.
व्लादिमीर पुतिनः नहीं, यह विषय बस सामने आ गया. देखिए, मैंने स्टीव विटकॉफ को समझाया कि मैंने पहले G8 की बैठकों में जाना क्यों बंद किया. सच कहूं तो कोई प्रस्ताव ही नहीं आया. बल्कि जब ये विषय आया तो मुझे वह समय याद आया जब मैंने वहां जाना बंद किया था. वो 2012 का समय था, रूस में राष्ट्रपति चुनाव के बाद. फिर मैं एक बार कुछ समय के लिए गया और फिर उसके बाद नहीं गया. हां, यह एक प्लेटफॉर्म है, ठीक है, इसे काम करने दीजिए. लेकिन दूसरे बड़े संगठन भी सामने आ रहे हैं. जैसे BRICS, SCO और G20 अभी भी सक्रिय हैं और हम इन सभी प्लेटफ़ॉर्म्स में हिस्सा ले रहे हैं. हमें इसके खिलाफ कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन अब दूसरे पहलू को देखें, रूस और यूरोपीय संघ के बीच वर्तमान संबंधों की स्थिति क्या है? यह सामान्य नहीं है. तो सोचिए, अगर मैं G8 जाऊं तो मैं G8 के सदस्यों से कैसे बात करूं अगर वे मुझसे बात करना ही नहीं चाहते? वहां मैं क्या करूं? खैर, हम शायद इस पर बाद में बात करेंगे.
अंजना ओम कश्यप: क्या एक नया वर्ल्ड ऑर्डर बन रहा है? क्योंकि आप G7 नहीं जा रहे, लेकिन आपने अभी चीन का दौरा किया है और आप भारत भी जाने वाले हैं. रूस, भारत, चीन RIC, BRICS, SCO, ग्लोबल साउथ. आप बहुध्रुवीय दुनिया में शक्ति के इस नए केंद्र को कैसे देखते हैं?
व्लादिमीर पुतिनः बात यह है कि दुनिया हमेशा बदलती रहती है. सब कुछ बदल जाता है. लेकिन आजकल, बदलाव की गति बहुत तेज हो गई है और हम इसे महसूस कर सकते हैं, देख सकते हैं. मैंने पहले भी इस बात का जिक्र किया था. असल में, हम वैश्विक आर्थिक बदलाव और हलचल के गवाह हैं. यह बदलाव यूक्रेन या अन्य संघर्ष क्षेत्रों से संबंधित नहीं हैं. इसके बारे में हम एक और घंटा बात कर सकते हैं और मुझे इससे खुशी होगी, लेकिन शायद आपके दर्शक हमारी इस चर्चा से ऊब जाएं. लेकिन तथ्य यही है कि विकास के नए केंद्र बन रहे हैं, तेज विकास, मजबूत विकास. यह बदलाव खासकर ग्लोबल साउथ में हो रहा है.
मैं दक्षिण एशिया की बात कर रहा हूं. और सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि इंडोनेशिया भी तेजी से उभर रहा है. यहां लगभग 300 मिलियन लोग हैं. भारत जितने डेढ़ अरब नहीं, लेकिन फिर भी यह तेजी से विकास के रास्ते पर बढ़ता देश है. इसी तरह अफ्रीका भी तेजी से विकास कर रहा है. और यह विकास और तेज होगा क्योंकि वहां युवा आबादी है, उनका भविष्य है और वे उच्च जीवन स्तर की मांग करेंगे. कुल मिलाकर इसे रोका नहीं जा सकता. वैश्विक अर्थव्यवस्था में बदलाव की गति बढ़ती ही जाएगी. हम अक्सर सुनते हैं कि हाल ही में रूस अपने संबंधों को ग्लोबल साउथ और एशिया के साथ नए सिरे से समायोजित कर रहा है. पर सच ये है हम ऐसा लंबे समय से कर रहे हैं.
अंजना ओम कश्यप: एक तस्वीर ने पूरी दुनिया में काफी हलचल मचा दी है. पुतिन, शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी- तीनों देशों के प्रमुख एक साथ. लोग सोशल मीडिया पर और अमेरिका में हर तरफ इस तस्वीर की चर्चा कर रहे थे. सवाल है कि जब किसी ऐसे ब्लॉक के अहम सदस्य देशों के बीच ही बुनियादी मुद्दे हल नहीं हुए हों, तो ऐसे वैकल्पिक समूह कैसे बन सकते हैं और कैसे एक वास्तविक ताकत बन पाएंगे?
पुतिनः देखिए, संघर्ष तो हमेशा मौजूद रहे हैं. ऐसा कोई समय नहीं रहा जब दुनिया में कोई संघर्ष न हो. आप दुनिया के बड़े क्षेत्रों और बड़े शक्ति केंद्रों का इतिहास उठाकर देख लीजिए हर दौर में सवाल थे, विवाद थे, टकराव थे. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप इन संघर्षों का समाधान कैसे ढूंढते हैं. इन चुनौतियों से निपटने का सबसे असरदार तरीका क्या है, यह कैसे तय किया जाता है. अब BRICS और शंघाई सहयोग संगठन जैसे बड़े समूहों को ही ले लीजिए. इन संगठनों के भीतर हमारे बीच एक साझा समझ है जो हमें साथ लाती है. और वो हैं हमारे मूल्य, हमारी पारंपरिक मूल्य-व्यवस्था, जिनके आधार पर हमारी सभ्यताएं अगर हज़ारों नहीं, तो सैकड़ों सालों से टिकी हुई हैं.
इन्हीं मूल्यों को पिछली पीढ़ियों से विरासत में पाकर हम आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं अपने प्रयासों को एकजुट करके, न कि इन मौकों को दबाकर. और जब आप मिलकर काम करते हैं तो परिणाम एक तरह की सिनर्जी पर आधारित होता है और वह नतीजा बेहद प्रभावशाली होता है. और इन्ही चीजों को हम इन संगठनों में प्राथमिकता देते हैं. कभी एक भी बार ऐसा नहीं हुआ कि हम इकट्ठे हुए हों किसी को धोखा देने के लिए या किसी के विकास को रोकने के लिए. हमारा एजेंडा हमेशा सकारात्मक रहा है.
गीता मोहनः आप इसे आर्थिक तौर पर व्यवहारिक कैसे बनाएंगे? क्या आप कोई वैकल्पिक लेनदेन व्यवस्था बनाएंगे? क्या आप मुद्रा में कोई बदलाव करेंगे या फिर आप राष्ट्रीय मुद्रा में ही भुगतान करेंगे? ये कदम क्या अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने की ओर बढ़ना नहीं हुआ?
व्लादिमीर पुतिनः हमें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए, कई बार बड़ी गलती हो जाती है. आप यूरोप को देखें, वहां अमेरिकी सिस्टम है, कई देश ऐसे हैं जिनका आर्थिक तंत्र एकल मुद्रा व्यवस्था के लिए तैयार नहीं है, तो समस्या यही है. हम इसे दुरुस्त कर रहे हैं. जैसा कि आप जानते हैं कि अपनी मुद्रा में हम आसानी से कारोबार नहीं कर सकते. क्यों? क्योंकि एकल मुद्रा व्यवस्था है. हमारा लक्ष्य एकल मुद्रा व्यवस्था विकसित करना नहीं है. हम जो करने जा रहे हैं उसे बहुत सावधानी और समझदारी से करना होगा. हमें अपनी मुद्रा का इस्तेमाल करना चाहिए और ब्रिक्स न्यू डेवलपमेंट बैंक का इस्तेमाल व्यापक स्तर पर करना चाहिए.
उदाहरण के तौर पर अपनी अर्थव्यवस्था और ग्लोबल साउथ के विकास के लिए हम एक निवेश प्लेटफॉर्म बनाएं, जो कारोबार के लिए इलेक्ट्रोनिक पेमेंट का इस्तेमाल करे और शुरुआती तौर पर उसकी क्षमता सौ बिलियन डॉलर की हो. मैं ये मानकर चल रहा हूं कि ये बहुत शानदार होने वाला है. इससे जो लाभार्थी देश होंगे, उनका तो भला होगा ही, इसमें हमारा भी लाभ है. हम सस्ते दामों में उच्च गुणवत्ता वाले सामान बना सकते हैं. इससे ग्लोबल साउथ के देशों का विकास होगा, हमारा लाभ भी होगा. और हां, आज के समय में इलेक्ट्रोनिक पेमेंट सिस्टम का तेजी से विकास हो रहा है और ये किसी को खत्म करने के लिए नहीं हो रहा है. सबको तालमेल के साथ काम करना होगा.
गीता मोहनः रुपये और रुबल लेनदेन पर?
व्लादिमीर पुतिनः इसमें कोई बाधा नहीं है ये अर्थव्यवस्था का मामला है और मैं इस बात को समझता हूं कि हमारे बीच असंतुलित कारोबार है. उदाहरण के तौर पर भारत ने हमारे बीच कोई रुकावट पैदा नहीं की. क्योंकि उन्हें तेल और तेल से निर्मित सामान चाहिए. भारत सरकार को अपने किसानों के लिए रूस में बने उर्वरक चाहिए, पीएम मोदी हमेशा इस मुद्दे को मेरे सामने उठाते हैं. और ये रुपये में पेमेंट का मामला नहीं है. मैं हमेशा कहता हूं कि इस असंतुलन को दुरुस्त करना है, प्रतिबंधित नहीं. हमारे कारोबार से दोनों देशों को फायदा हो, किसी एक को नहीं. भारत दौरे पर हमारा प्रयास है कि हम पहल करें, जिसमें भारत और रूस के आयात और निर्यात की प्रदर्शनी लगे. मैंने अपने अफसरों को आदेश दिया है कि भारत से हम जो सामान खरीदते हैं. उसमें और क्या जोड़ सकते हैं, इस पर काम करें.
अंजना ओम कश्यप: आप भारत और चीन को बैलेंस कैसे करेंगे? क्योंकि सब जानते हैं कि आपके रिश्ते दोनों देशों से अच्छे हैं.
व्लादिमीर पुतिनः भारत और चीन हमारे सबसे करीबी मित्र हैं, और मैं ये नहीं समझता कि हमें उनके द्विपक्षीय मामलों में हस्तक्षेप करना चाहिए. मैं जानता हूं कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग जटिल और विवादित मसलों पर किसी नतीजे तक जरूर पहुंचेंगे. दोनों देशों के बीच जो तनाव है उससे दोनों नेता चिंतित हैं. वो समस्या का समाधान भी करना चाहते हैं. प्रयास कर भी रहे हैं. नतीजे पर भी पहुंचेंगे. मैं उन दोनों के लिए बहुत खुश हूं. मैं नहीं समझता कि मुझे हस्तक्षेप करना चाहिए, ये द्विपक्षीय मामले हैं.
अंजना ओम कश्यप: भारत ने दो बड़े आतंकी हमले झेले. एक पहलगाम में और दूसरा दिल्ली में. क्या आप आतंकवाद पर विश्व का दोहरा रवैया देखते हैं? रूस भी आतंकवाद पीड़ित है, आपके लिए आतंकी, हमारे लिए सेनानी, इस विचारधारा पर आपका क्या नजरिया है?
व्लादिमीर पुतिनः ये बहुत आसान है. आजादी के लिए लड़ना हो तो कानूनी तरीकों से लड़ो, हमारा तो यही मानना है कि आतंकियों का समर्थन नहीं किया जा सकता. जैसा आपने कहा कि रूस भी आतंकवाद पीड़ित रहा है, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में रूस भारत के साथ है.
गीता मोहनः रूस उन दुर्लभ देशों में है, जिन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता दी. पूरा विश्व कह रहा है कि वहां महिला-पुरुष में भेदभाव होता है. मानवाधिकार की समस्या है, आपका क्या हित है? आपने ये मान्यता किस आधार पर दी?
व्लादिमीर पुतिनः हर देश में समस्याएं हैं, अफगानिस्तान में भी हैं. ये बात सही है कि एक देश जो दशकों तक गृहयुद्ध झेलता रहा, कितना भयावह मंजर था और फिर तालिबान ने अफगानिस्तान की स्थिति पर नियंत्रण पाया, ये पहली वजह है. और ये आज की सच्चाई है. दूसरी वजह अफगानिस्तान की सरकार ने बहुत कुछ किया है. और अब वो आतंकियों और उनके संगठनों को चिहिन्त कर रहे हैं. उदाहरण के तौर पर इस्लामिक स्टेट और इसी तरह के कई संगठनों को उन्होंने अलग-थलग किया है. अफगानिस्तान के नेतृत्व ने ड्रग्स नेटवर्क पर भी कार्रवाई की है. और वो इस पर और सख्ती करने वाले हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वहां जो होता है उसका असर होता है. इसलिए हमें पता होना चाहिए कि क्या हो रहा है. हमें एक दूसरे के संपर्क में रहना चाहिए और मिलकर काम भी करना चाहिए. वही हमने किया.
गीता मोहनः अफगानिस्तान के विदेश मंत्री भारत आए तो उनकी प्रेस वार्ता में महिलाओं को अनुमति नहीं दी गई, हालांकि बहुत विरोध हुआ तो फिर एक और प्रेस वार्ता हुई और फिर उसमें महिलाओं को जाने की अनुमति दी गई.
व्लादिमीर पुतिनः अगर उनके मंत्री भारत नहीं आते तो क्या आपकी महिलाओं के पास मौका होता अपनी बात कहने का? वो अफगानिस्तान से आए, आपने अपनी आंखों से भेदभाव देखा तभी तो महिलाओं ने अपनी बात रखी. ये बदलाव बहुत बड़ा तो नहीं लेकिन वहां की परिस्थितियों पर असर डालेगा. मान लीजिए अफगानिस्तान से कोई संपर्क नहीं रखे तो क्या होगा? वो लोग वैसे ही रहते और आप भी अपना प्रभाव उन पर नहीं डाल पाते, तालिबान से दूरी बनाने के बजाय उनके संपर्क में रहना बेहतर है.
अंजना ओम कश्यप: व्लादिमीर पुतिन का गाजा शांति प्लान क्या है?
पुतिनः मेरा कोई अलग से शांति प्लान नहीं है, मैं समझता हूं कि अगर फिलिस्तीन की समस्या का समाधान करना है तो यूएन का शांति प्लान (दो राज्य समाधान) शत प्रतिशत लागू करना होगा. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि स्वतंत्र फिलिस्तीन देश का निर्माण करना होगा और यही समस्याओं का समाधान है.
गीता मोहनः आप मानते हैं कि अरब देशों ने गाजा के लिए उतना नहीं किया जितना ईरान ने किया. किसी को यकीन नहीं था ईरान पलटवार कर देगा. ये विश्व व्यवस्था बदलने जैसा है, आप इसे कैसे देखते हैं?
व्लादिमीर पुतिनः आप जानते हैं कि ये सभी देश फिलिस्तीन को लेकर चिंतित हैं, ये सभी चाहते हैं कि फिलिस्तीन राष्ट्र बने. कुछ देश खुलकर मदद को सामने आए तो कुछ देश शैडो की तरह काम कर रहे हैं. ये कहना कि किसी ने कुछ नहीं किया ठीक नहीं है. ये एक जटिल समस्या है, दशकों से उलझी हुई. इसका समाधान रातों-रात नहीं हो सकता, हम एक स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र चाहते हैं. हाल ही में बंधकों की रिहाई को लेकर राष्ट्रपति ट्रंप ने जो किया है, वो गाजा के पुनर्वास के लिए अच्छा कदम है. मैं मानता हूं कि ये सही होगा कि गाजा को एकजुट करके पूरी शक्ति फिलिस्तीन को देनी चाहिए, ये कुछ विकल्प हो सकते हैं जिनपर विचार होना चाहिए. यूएन में भी इस पर बात होनी चाहिए. यूएन का सदस्य होने के नाते हम अपने मित्र देशों के साथ हमेशा इस चर्चा में भाग लेते हैं.
गीता मोहनः आपका KGB से पुराना नाता रहा है. आज आप विश्व की खुफिया एजेंसियों को कैसे रेट करते हैं? आप किस एजेंसी को बेहतर मानते हैं.
व्लादिमीर पुतिनः देखिए विश्व में कई शक्तिशाली खुफिया एजेंसियां हैं. CIA, हमारी एजेंसी KGB, सोवियत रूस की खुफिया एजेंसी, इजरायल की मोसाद. दुनिया के कई देश हैं, मुझे लगता है कि ये सही नहीं है कि मैं एजेंसियों की क्षमता का मूल्यांकन करूं, लेकिन मैं अपनी एजेंसी KGB के काम से खुश हूं.
अंजना ओम कश्यप: खुफिया एजेंसी के एजेंट के तौर पर आपका करियर कैसा रहा. जर्मनी, पिट्सबर्ग और फिर मॉस्को में आपने काम किया. आज जो शख्स यहां बैठा है, उसके पीछे कौन है?
पुतिनः मेरा परिवार. जिस परिवार में मेरा जन्म हुआ, जिनके बीच मैं पला बढ़ा, मुझे लगता है कि इन सबने मिलकर मुझे वो बनाया है जो मैं आज हूं. और मेरे खुफिया एजेंट करियर के बारे में कहें तो वहां सख्त अनुशासन रहता है. आपको अपनी मातृभूमि की रक्षा करनी है और यही हर खुफिया एजेंट का उद्देश्य होता है. हालांकि मैं उस दौर को कई साल पहले पीछे छोड़ आया हूं.
अंजना ओम कश्यप: एक बार आप स्कूल में बच्चों से संवाद कर रहे थे, तब किसी छात्रा ने आपसे पूछा था कि आपके जीवन का सबसे भयानक अनुभव क्या था? आपने कहा था कि सोवियत संघ का विघटन. USSR के विघटन का आप पर क्या असर पड़ा? आप आज के रूस को कैसे देखते हैं?
व्लादिमीर पुतिनः इसका प्रभाव कुछ इस तरह पड़ा कि हमें हमेशा घटनाओं और उनके परिणामों को सावधानी से देखना और समझना चाहिए. ये पहली बात थी. दूसरी, जो बेहद महत्वपूर्ण है वो ये कि ये सिर्फ सोवियत संघ पर ही लागू नहीं होता, बल्कि रूस पर भी उतना ही लागू होता है, क्योंकि एक समय बाद सोवियत संघ को लगने लगा था कि वो इतना शाक्तिशाली है कि उसके नेतृत्व और व्यवस्था को कोई चुनौती नहीं दे सकता, आम नागरिक भी यही समझते थे कि सोवियत संघ इतनी बड़ी ताकत है कि किसी भी परिस्थिति में कोई उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाएगा. अतिविश्वास की यही गलती एक के बाद एक गलतियां करवाती गई, और फिर एक समय ऐसा आया जब हालात काबू से बाहर हो गए. कुछ और देश भी आज ऐसी ही गलतियां कर रहे हैं.
अंजना ओम कश्यप: आप USSR के विघटन के लिये किसे जिम्मेदार मानते हैं?
व्लादिमीर पुतिनः मैं किसी पर आक्षेप लगाना नहीं चाहता और ना ही किसी को दोष दूंगा, वो व्यवस्था ही ऐसी थी कि नहीं चल पाई, हमें ये स्वीकार करना होगा बजाय ये सोचने के कि कौन दोषी था. हमें ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जो खुद की रक्षा कर सके. अगर हमने ऐसा सिस्टम बना लिया तो वो पर्याप्त होगा.
गीता मोहनः क्या आप फिर से एकीकरण के बारे में सोच रहे हैं?
व्लादिमीर पुतिनः किसका एकीकरण? सोवियत संघ का? नहीं, कतई नहीं. और हमारा ऐसा कोई लक्ष्य नहीं है और इसका कोई औचित्य भी नहीं बनता क्योंकि ये रूसी संघ की राष्ट्रीय और धार्मिक स्थिति को बदल देगा. इसका कोई मतलब नहीं बनता.
गीता मोहनः कुछ पश्चिमी लेखक हैं जो लगातार लिखते रहते हैं कि आप फिर से पुराना सोवियत संघ बनाना चाहते हैं.
व्लादिमीर पुतिनः मैं जो कहता हूं वो सुनना नहीं चाहते. मैं यहां बोल रहा हूं लेकिन वो सिर्फ अपनी सुनते हैं, वो वही सुनते हैं जो उन्हें पसंद आता है.
अंजना ओम कश्यप: ये भी कहा जाता है कि आप अपना साम्राज्य बनाना चाहते हैं?
व्लादिमीर पुतिनः कुछ लोग इस तरह की बातें कहते रहते हैं, उन्हें अपनी जनता को डराना होता है. ग्लोबल मीडिया में वो अपने एकाधिकार का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं. ये लोगों की राय को प्रभावित करने की चालबाजी है, उनका मकसद सिर्फ रूस के खिलाफ अपनी आक्रमक नीति को जायज ठहराना है.
अंजना ओम कश्यप: अपनी जिंदगी और विचारधारा को संक्षेप में कैसे बताएंगे?
पुतिनः मेरे लिए अभी अपनी जिंदगी को संक्षेप में बताना बहुत जल्दी होगा, लेकिन मेरे पास अभी कुछ काम बाकी है.
गीता मोहनः भारत के प्रधानमंत्रियों ने भारत और रूस के संबंधों को मजबूत करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है. आपको क्या लगता है कि रूस में एक नेता के तौर पर आपके कार्यकाल में, जब से आप सत्ता में हैं, भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने में किस प्रधानमंत्री ने सच में फर्क डाला है?
व्लादिमीर पुतिनः मुझे नहीं लगता कि यह बहुत दूर की बात है. अब हम भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ काम कर रहे हैं. सच में, हमारे बहुत भरोसेमंद और दोस्ताना संबंध हैं. वह इस मामले में बहुत भरोसेमंद इंसान हैं. मैं बहुत ईमानदारी से कह रहा हूं. भारत खुशकिस्मत है, वो हिंदुस्तान में रहते हैं. वो भारत में सांस लेते हैं. मैं उनसे बात करता हूं और मैं उन्हें जानता हूं. मुझे उम्मीद है कि वह मुझसे नाराज़ नहीं होंगे. मैं बस वही कह रहा हूं जो मैं देखता हूं और जो मैं सोचता हूं. मुझे यकीन है कि ऐसे इंसान से बात करना मेरे लिए बहुत सुखद है. और यह एक बात है.
दूसरी बात, सच ये है कि वो बहुत ईमानदारी से भारत और रूस के संबंध को हर क्षेत्र में और खासकर रक्षा, अर्थव्यवस्था, मानवीय सहयोग और हाई-टेक परमाणु सामग्री के विकास जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर मजबूत करना चाहते हैं. इसलिए उनसे मिलना मेरे लिए बहुत दिलचस्प है. वो यहां आए थे और हम उनके साथ मेरे घर पर बैठे और हमने बहुत देर तक चाय पी. पूरी शाम हमने अलग-अलग विषयों पर बात की. हमने बस आम इंसानों की तरह ही रोचक बातचीत की. इसलिए मैं इस मीटिंग का इंतज़ार कर रहा हूं और मुझे यकीन है कि यह बहुत उपयोगी होगी. बहुत ही दिलचस्प.
अंजना ओम कश्यप: क्या आपको लगता है कि AI अराजकता का कारण बन सकता है? या फिर यह अच्छाई के लिए एक ताकत है? और इस एआई हथियार युद्ध में रूस कहां है?
व्लादिमीर पुतिनः किसी भी दूसरी तरक्की की तरह यह अच्छा और बुरा दोनों हो सकता है. हां, यह सच है. यह साफ है कि यह एक कटिंग एज टेक्नोलॉजी है जो एक आम इंसान की जिंदगी बदल देती है. और बेशक, आने वाले समय में यह पूरी इंसानियत की जिंदगी को भी बदल देगी. जो लोग इस टेक्नोलॉजी को सबसे पहले और सबसे असरदार तरीके से इस्तेमाल करेंगे, उन्हें इकॉनमी में, डिफेंस में, शिक्षा और साइंस में, हेल्थ केयर में, हर जगह बहुत ज़्यादा आर्थिक फायदा होगा. लेकिन मुझे कहना होगा कि इन सभी सेक्टरों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी का असरदार इस्तेमाल कई गुना ज्यादा प्रभाव डालेगा. इसके कुछ नुकसान भी हैं. खासकर इसके बारे में पूरी तरह से जानते हुए.
हकीकत यह है कि यह सब सिर्फ सभी बड़े डेटा सेट की प्रोसेसिंग पर आधारित है. खैर, यहां बात आती है लोगों के पर्सनल डेटा की. पहली बात है कि स्वाभाविक रूप से हमें इसके लिए कदम उठाने होंगे, सुरक्षा और बचाव की गारंटी देनी होगी, मानवाधिकारों की गारंटी देनी होगी. लेकिन यहां एक और बहुत जरूरी बात यह है कि जिन लोगों के पास ये डेटाबेस हैं, असल में वो एआई और मोबाइल टेक्नोलॉजी की क्षमता का इस्तेमाल कर सकते हैं. वो लोगों के भविष्य को एक आकार दे सकते हैं.
गीता मोहनः आपने अभी हेल्थ के बारे में बात की. आपके और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक हॉट माइक मोमेंट था. जब आपने लंबी उम्र, मेडिसिन में तरक्की और बायोहैकिंग के बारे में बात की तो इसकी काफी चर्चा हुई. क्या आपको लगता है कि सचमुच अमरता हासिल हो सकती है?
व्लादिमीर पुतिनः हर चीज का एक अंत होता है. सिर्फ भगवान ही हमेशा रहने वाले हैं. वाकई, हम उम्र को लंबा कर सकते हैं. ये सच है. 77 साल पहले, भारत में एक इंसान की औसत उम्र 31 साल थी और अब ये करीब 70 साल है. हेल्थ केयर से ऐसा हो सकता है. भारत में बच्चों की मौत चार गुना कम हो गई है. ये हेल्थकेयर का ही नतीजा है और मैं इसके लिए आपको बधाई देता हूं. अगर हम हेल्थ केयर में एआई का इस्तेमाल करें और अगर इसका इस्तेमाल मेडिकल दवाएं बनाने के लिए किया जाए. मिसाल के तौर पर अगर वो जेनिटिक इंजीनियरिंग का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो इसका असर जबरदस्त होगा. फिर भी, सभी चीजों का अंत होता ही है.
अंजना ओम कश्यप: हाल ही में दुनिया भर में GenZ के बहुत सारे प्रोटेस्ट हुए हैं. आप युवा पीढ़ी से कैसे कनेक्ट करते हैं? आज बहुत सारे नेता ऐसे हैं जो अपनी उम्र से कम दिखते हैं. ये कैसे होता है और आप रूस में युवाओं से कैसे कनेक्ट करते हैं?
व्लादिमीर पुतिनः यहां ये सब नया नहीं है. आप जानते हैं कि साहित्य और कला में हमेशा विरोधाभासों की बात होती रही है. पुरानी और नई पीढ़ी के बीच, पिता और बेटों के बीच. हमारी पुरानी रचनाओं में भी ये बातें और ये चित्र हमेशा से मौजूद रहे हैं. सभी को ये जानने की जरूरत है कि यहां कुछ भी नया नहीं है. आप जानते हैं नया क्या है? नई है टेक्नोलॉजी. मैसेंजर, टेलीग्राम वगैरह, जिनका इस्तेमाल सक्रिय रूप से आज भी युवा पीढ़ी पर असर डालने के लिए किया जा रहा है. ये पीढ़ी कमोबेश वही युवा लोग हैं जो मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं और ज़्यादा कट्टर हैं. युवा पीढ़ी सोचती है कि सिर्फ वो ही अन्याय का सामना कर रही है और उनसे पहले किसी ने ये सब देखा ही नहीं. युवा ये सब देखते हैं और अपने आसपास के सभी लोगों को बताते हैं.
उन्हें लगता है कि इससे निपटना बहुत आसान है. इसे आसानी से सुलझाया जा सकता है लेकिन जब व्यक्ति ज़्यादा समझदार हो जाता है और खुद कुछ बदलने की कोशिश करता है तो उसे पता लगता है कि जिसका हल ढूंढना वो आसान समझ रहे थे, वो उतना आसान है नहीं, जितना पहली नज़र में लगता है. इसलिए, हमें लोगों के साथ उस वक्त काम करने की जरूरत है, जब हम कह सकें कि अभी आप बस युवा हैं, आप कुछ नहीं समझते, आप बस अपने घरों में बैठे हैं. यह ऐसे ही हो सकता है. आपको हमेशा युवाओं के टच में रहने और उनके टूल्स, उन तक जानकारी पहुंचाने के तरीकों, सोशल नेटवर्क वगैरह में फीडबैक का इस्तेमाल करने की जरूरत है. आपको वहां काम करने की जरूरत है और मुझे यकीन है कि आप कुछ हद तक ऐसा कर रहे हैं. मैं आपको हर सफलता की शुभकामना देना चाहता हूं.
गीता मोहनः आपने अभी कुछ देर पहले धर्म और ऑर्थोडॉक्स चर्च का जिक्र किया. नैतिकता और नेतृत्व के संदर्भ में, आध्यात्मिकता को आप रूसी समाज में किस तरह देखते हैं? व्यक्तिगत रूप से आपके लिए इसका क्या महत्त्व है?
व्लादिमीर पुतिनः ये वो नींव है जिसे मैंने लंबे समय से महसूस किया है. हम हमेशा अपने पारंपरिक मूल्यों की ओर लौटते हैं, जिनका हम जिक्र भी करते हैं. इसका मतलब ये नहीं कि हम इन मूल्यों का सहारा लेकर बेपरवाह बैठे रहें. बल्कि ये हमारे लिए एक ठोस बुनियाद हैं लेकिन स्वाभाविक रूप से हमें आगे भी देखना है. हमें विकसित होना है और विकास के सभी आधुनिक साधनों का इस्तेमाल करना है. अपने आधारभूत मूल्यों और भविष्य के दृष्टिकोण को साथ लेकर, हम उन लक्ष्यों को प्रभावी ढंग से हासिल कर सकते हैं, जिन्हें हमने अपने लिए निर्धारित किया है. हम इसी तरह काम करते हैं. हमारा मूल लक्ष्य राष्ट्रीय विकास है. मैं हकीकत में चाहता हूं कि रूस के राष्ट्रीय विकास के लक्ष्य और भारत के लक्ष्य, जो भारत सरकार और प्रधानमंत्री मोदी ने तय किये हैं, एक-दूसरे के अनुरूप हों, ताकि हम संयुक्त प्रयास कर सकें और अधिकतम नतीजे हासिल कर सकें.
अंजना ओम कश्यपः एक गीत रूस में बहुत लोकप्रिय रहा है, सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी. भारत, भारतीय समाज, भारतीय संस्कृति के बारे में आप कुछ कहना चाहेंगे? उन सभी भारतीयों के लिए आपका क्या संदेश है, जो आपको बहुत पसंद करते हैं और जो राष्ट्रपति पुतिन को सुनना चाहते हैं.
व्लादिमीर पुतिनः आपने अभी भारतीय संस्कृति का जिक्र किया. रूसी संस्कृति के बारे में मैं यही कहूंगा कि रूस के बहुत से नागरिकों के दिलों में, भारतीय संस्कृति की छवि एक परीकथा जैसी सुंदर, रंगीन और मनमोहक है. ये छवि कई दशकों से है, सोवियत काल से है. रूसी लोगों को भारतीय संगीत और भारतीय फ़िल्में बहुत पसंद हैं. मैं तो कहूंगा कि रूसी समाज के कुछ हिस्सों ने भारतीय संस्कृति को पूजा जैसी जगह दी है. मुझे ये बहुत अच्छा लगता है क्योंकि मुझे लगता है कि ये दिल से दिल का रिश्ता है. हम ये सुनिश्चित करने की हर संभव कोशिश करेंगे कि ये दिलचस्पी अपनी चमक कभी न खोए. मैं चाहता हूं कि भारत इस भावना को जाने.