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असम में दशकों पुराने संघर्ष का होगा अंत! जानें- सरकार के लिए क्यों अहम है ULFA के साथ शांति समझौता

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में भारत सरकार, असम सरकार और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के प्रतिनिधियों के बीच इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जाएंगे. इस दौरान भारत सरकार और असम सरकार के कई बड़े अधिकारी भी मौजूद रहेंगे.

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भारत सरकार, यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) और असम के बीच एक त्रिपक्षीय शांति समझौते पर शुक्रवार को हस्ताक्षर होने जा रहे हैं. इसका मकसद असम में दशकों पुराने उग्रवाद को खत्म करना है. भारत सरकार के पूर्वोत्तर में शांति प्रयास की दिशा में यह एक बहुत बड़ा कदम है. कारण, उल्फा पिछले कई सालों से उत्तर पूर्व में सशस्त्र सुरक्षा बलों के खिलाफ हिंसात्मक संघर्ष कर रहा था.

जानकारी के मुताबिक शुक्रवार को शाम 5 बजे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में भारत सरकार, असम सरकार और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के प्रतिनिधियों के बीच इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जाएंगे. इस दौरान भारत सरकार और असम सरकार के कई बड़े अधिकारी भी मौजूद रहेंगे.

पिछले 1 साल से पहल रह रही थी केंद्र सरकार

दरअसल, इस शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद सशस्त्र संगठन उल्फा के हजारों काडर आत्मसमर्पण करेंगे और मुख्य धारा में शामिल होंगे. पिछले 1 साल से भारत सरकार इस शांति समझौते पर काम कर रही थी और उल्फा के शीर्ष नेताओं सरकार के वरिष्ठ अधिकारी वार्ता कर रहे थे. इन उल्फा के नेताओं में अनूप चेतिया भी शामिल है. गृहमंत्री अमित शाह की पहल पर यह अहम समझौता हो रहा है.

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अधिकारियों के मुताबिक यह समझौता असम से संबंधित कई लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों का ध्यान रखेगा, इसके अलावा स्वदेशी लोगों को सांस्कृतिक सुरक्षा और भूमि अधिकार प्रदान करेगा. 

परेश बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा समझौते में शामिल नहीं

हालांकि परेश बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा का कट्टरपंथी गुट इस समझौते का हिस्सा नहीं होगा. कारण, उसने सरकार द्वारा प्रस्तावित समझौते में शामिल होने से इनकार कर दिया है. हालांकि परेश बरुआ के नेतृत्व वाले कट्टरपंथी गुट के कड़े विरोध के बावजूद राजखोवा के नेतृत्व वाले उल्फा गुट ने 2011 में केंद्र सरकार के साथ बिना शर्त बातचीत शुरू की थी. 

1979 में हुआ उल्फा का गठन

बता दें कि उल्फा का गठन 1979 में "संप्रभु असम" की मांग के साथ किया गया था. तब से, यह विध्वंसक गतिविधियों में शामिल रहा है जिसके कारण केंद्र सरकार ने 1990 में इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया था. उल्फा के साथ भारत सरकार ने कई बार बात करनी चाही. लेकिन उल्फा में आपस में टकराव से इस कोशिश में बाधा पैदा होती रही. आखिरकार 2010 में उल्फा दो भागों में बंट गया. एक हिस्से का नेतृत्व अरबिंद राजखोवा ने किया, जो सरकार के साथ बातचीत के पक्ष में थे और दूसरे का नेतृत्व बरुआ के नेतृत्व में था, जो बातचीत के विरोध में था. उल्फा, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (एसओओ) के समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद राजखोवा गुट 3 सितंबर, 2011 को सरकार के साथ शांति वार्ता में शामिल हुआ था.

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