
मणिपुर में पिछले ढाई महीने से हिंसा का दौर जारी है. बेगुनाहों की हत्या, जलते घर, लुटती दुकानों के बीच 19 जुलाई को एक ऐसा वीडियो सामने आया, जिसने पूरे देश को शर्मसार कर दिया. इस मामले को लेकर मॉनसून सत्र के पहले दिन यानी 20 जुलाई को संसद के दोनों सदनों में जमकर हंगामा हुआ. लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में कामकाज नहीं हो सका. जहां संसदीय कार्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि विपक्ष जानबूझकर मणिपुर पर चर्चा नहीं चाहता है. वह बार-बार अपना रुख बदल रहे हैं और नियमों का हवाला दे रहे हैं, उन्होंने कहा कि केंद्र मणिपुर पर चर्चा के लिए तैयार है, इस पर गृह मंत्री जवाब देंगे. वहीं विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बयान देने और पूर्वोत्तर राज्य की स्थिति पर लंबी चर्चा की मांग कर रहा है. ऐसे में सवाल ये है कि जब सरकार और विपक्ष चर्चा करना चाहते हैं तो पेच कहां फंस रहा है.
बता दें कि विपक्ष और सरकार के बीच पेच इस बात पर फंसा है कि मणिपुर पर चर्चा किस रूल के तहत हो. क्योंकि सरकार रूल नंबर 176 के तहत बहस करना चाहती है तो विपक्ष रूल 267 के तहत चर्चा करने की मांग पर अड़ा हुआ है.
कहां फंसा है पेच?
विपक्षी दलों ने मणिपुर के मामले पर चर्चा को लेकर लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों को नोटिस दिया है. हालांकि लोकसभा में कोई झगड़ा नहीं है, क्योंकि विपक्षी दलों ने नियम 193 के तहत नोटिस दिया है. जिस पर सरकार बहस के लिए सहमत हो गई है. लड़ाई राज्यसभा में है, जहां नियम 176 और 267 के तहत मणिपुर की स्थिति पर बहस के लिए नोटिस दिए गए थे. विपक्ष नियम 267 के तहत लंबी चर्चा की मांग कर रहा है, जबकि सरकार ने कहा कि वह केवल नियम 176 के तहत छोटी चर्चा के लिए सहमत है.

क्या है नियम 267?
राज्यसभा की नियम पुस्तिका (पेज 92) में नियम 267 को परिभाषित किया गया है. इसमें कहा गया है कि कोई भी सदस्य दिनभर के सूचीबद्ध एजेंडे को रोकते हुए सार्वजनिक महत्व के जरूरी मुद्दों पर चर्चा के लिए नोटिस प्रस्तुत कर सकता है. 1990 के बाद से रूल 267 का महज 11 बार बहस के लिए इस्तेमाल किया गया है. आखिरी बार इसका इस्तेमाल साल 2016 में नोटबंदी के लिए किया गया था, जब मोहम्मद हामिद अंसारी सभापति थे. इस नियम का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि सार्वजनिक महत्व के मुद्दे पर बहस के लिए सभी कामों को रोक दिया जाता है. हालांकि नियम 267 के अलावा सरकार से सवाल पूछने और प्रतिक्रिया मांगने का सांसदों के पास एक और तरीका होता है. वे प्रश्नकाल के दौरान किसी भी मुद्दे से संबंधित प्रश्न पूछ सकते हैं, जिसमें संबंधित मंत्री को मौखिक या लिखित उत्तर देना होता है. कोई भी सांसद शून्यकाल के दौरान इस मुद्दे को उठा सकता है. हर दिन 15 सांसदों को शून्यकाल में अपनी पसंद के मुद्दे उठाने की अनुमति होती है. कोई सांसद इसे विशेष उल्लेख के दौरान भी उठा सकता है. राज्यसभा अध्यक्ष प्रतिदिन 7 विशेष उल्लेखों की अनुमति दे सकता है.
क्या है रूल 176?
विपक्ष जहां रूल 267 के तहत बहस की मांग कर रहा है, वहीं सरकार का कहना है कि रूल 176 के तहत चर्चा हो. इस नियम को परिभाषित किया गया है कि नियम 176 किसी विशेष मुद्दे पर अल्पकालिक चर्चा की अनुमति देता है, जो ढाई घंटे से अधिक नहीं हो सकती. इसमें कहा गया है कि अति आवश्यक सार्वजनिक महत्व के मामले पर चर्चा शुरू करने का इच्छुक कोई भी सदस्य स्पष्ट रूप से और सटीक रूप से उठाए जाने वाले मामले को बताते हुए लिखित रूप में नोटिस दे सकता है, बशर्ते नोटिस के साथ एक व्याख्यात्मक नोट होगा. इसमें विचाराधीन मामले पर चर्चा शुरू करने के कारण बताए जाएंगे. इतना ही नहीं, इस नोटिस को कम से कम दो अन्य सदस्यों के हस्ताक्षर द्वारा समर्थित किया जाएगा. नियम 176 के अनुसार मामले को कुछ घंटों के भीतर या अगले दिन भी उठाया जा सकता है. हालांकि नियम ये भी है कि अल्पकालिक चर्चा के तहत कोई औपचारिक प्रस्ताव या मतदान नहीं किया जाएगा.
विपक्ष नियम 267 के तहत बहस पर अड़ा
जब सभापति धनखड़ ने मणिपुर मामले पर नियम 176 के तहत अल्पकालिक चर्चा के लिए नोटिस की अनुमति दी, तो खड़गे ने आपत्ति जताई और कहा कि पहले सदन के सभी कामकाज को निलंबित कर दिया जाए. उन्होंने सभापति से कहा कि सदन के नेता अचानक उठते हैं और कहते हैं कि हम चर्चा के लिए तैयार हैं. हमने सभी कामकाज निलंबित करने और इस मुद्दे को उठाने के लिए नियम 267 के तहत नोटिस दिया है. प्रधानमंत्री को बयान देने दीजिए और हम इस पर चर्चा करेंगे.
सरकार क्या चाहती है?
3 मंत्रियों प्रह्लाद जोशी, राजनाथ सिंह और अर्जुन मेघवाल ने कहा कि सरकार इस मामले पर बहस करना चाहती है. मेघवाल ने विपक्ष पर लगातार अपना रुख बदलने का आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र बहस के लिए तैयार है और केंद्रीय गृह मंत्री इस पर जवाब देंगे. हमारे सांसदों ने नियम 176 के तहत नोटिस जमा किए थे. सभापति (जगदीप धनखड़) उन्हें पढ़ रहे थे, लेकिन विपक्ष के सांसद यह कहते हुए बीच में आ गए कि वे केवल नियम 267 के तहत चर्चा चाहते हैं.