ऑपरेशन इल्लीगल्स (Operation Illegals) के दूसरे भाग में हम बात करेंगे पश्चिम बंगाल के कूचबिहार में भारत-बांगलादेश सीमा के पास कमजोर सुरक्षा व्यवस्था की, जिसने घुसपैठ को एक फलते-फूलते व्यापार में बदल दिया है. यहां हम उन सिस्टम के बारे में भी बताएंगे जो इस संकट को बढ़ावा दे रहे हैं. तस्करों से लेकर मानव तस्करी और एजेंटों तक...इस स्टोरी में आपको हर एक जानकारी मिलेगी.
हमारी यात्रा पश्चिम बंगाल के दिनहाटा ब्लॉक-1 से शुरू हुई, जो धारा नदी के किनारे स्थित है. यहां सुरक्षा व्यवस्था भी इस नदी की तरह ही अस्थिर नजर आई. बीएसएफ का चेकपॉइंट एक बांस की झोपड़ी में है. इस क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए, हमारी टीम को नदी पार करने से पहले आधार कार्ड सिक्योरिटी के रूप में देने पड़े.
नदी पार करते समय, हमें एक तस्कर मिला जिसने घुसपैठ के काम से अपना जीवन यापन करने की बात गर्व से स्वीकार की. उसने निडर होकर बताया कि वह वर्षों से लोगों को बांग्लादेश से भारत और भारत से बांग्लादेश पार करने में मदद कर रहा था. उसने बताया कि धुंधली रातें इन ऑपरेशनों के लिए आदर्श होती हैं, जिससे बीएसएफ के लिए उनकी गतिविधियों का पता लगाना लगभग असंभव हो जाता है.
नदी के दूसरे किनारे पर एक भारतीय गांव है जो बांग्लादेश की तरह काम करता है. यहां बांग्लादेशी सामानों पर निर्भरता बहुत अधिक है और लेन-देन ज्यादातर टाका में होता है. दोनों देशों के बीच की सीमाएं यहां हर पहलू में स्पष्ट रूप से धुंधली दिखाई देती हैं.
तस्कर ने हमें एक ऐसे स्थान पर पहुंचाया जहां से बांग्लादेश में घुसना बेहद आसान था. उसने दोनों देशों के बीच सुरक्षा की अनुपस्थिति को उजागर करते हुए कहा, “आप इन्हें कभी नहीं देखेंगे.” सुरक्षा की कमी घुसपैठ करने वालों को प्रोत्साहित करती है और बांग्लादेशी श्रमिकों के भारत में आने का रास्ता खोलती है. ये श्रमिक दिन में टाकों में वेतन कमाते हैं और रात को वापस अपने घर लौट जाते हैं, बीएसएफ के गश्ती रास्तों से बचते हुए और उनसे आंख से संपर्क किए बिना.
सीमा से ऐसे होती है घुसपैठ
हमने सीमा के बाड़ वाले हिस्सों में घुसपैठ की चालाकी का भी पता लगाया. एक और तस्कर ने बताया कि लकड़ी की पट्टियों का उपयोग करके वे बाड़ में छोटे-छोटे होल बना लेते हैं. इन उपकरणों का उपयोग करके लोग कुछ ही मिनटों में एक तरफ से दूसरी तरफ पार कर सकते हैं. दोनों ओर रखे गए चौकसीकर्मी गश्ती गतिविधियों पर नजर रखते हैं और घुसपैठ करने का सही मौका आते ही उसे शुरू कर देते हैं. तस्कर के अनुसार, चुनावी सीजन विशेष रूप से उनके संचालन के लिए अनुकूल होता है, क्योंकि बीएसएफ की उपस्थिति कम होती है, जिससे सीमा के बड़े हिस्से में सुरक्षा की कमी हो जाती है.
एजेंटों की भूमिका अहम
घुसपैठ केवल सीमा तक ही सीमित नहीं रहती. एजेंटों की महत्वपूर्ण भूमिका है जो घुसपैठियों को भारतीय शहरों में बसने में मदद करते हैं, जो सीमा क्षेत्र से बहुत दूर होते हैं. ये एजेंट नकली दस्तावेज़ और नौकरी की व्यवस्था करते हैं, जिससे अवैध रूप से घुसपैठ करने वालों के लिए नई पहचान बनाते हैं. एक एजेंट ने गर्व से बताया कि उसने इस काम में भाग लिया है और पूरे क्षेत्र में घुसपैठियों के लिए बस्तियां बसाने में मदद की है.
इन चीजों की भी होती है तस्करी
मानव घुसपैठ के अलावा, ये नेटवर्क मवेशियों, मादक पदार्थों, सोने और अन्य अवैध वस्तुओं की तस्करी में भी गहरे से जुड़े हुए हैं. बीएसएफ के सूत्रों के अनुसार, दिनहाटा में अवैध गतिविधियों के जरिए करीब 80 लाख रुपये हर दिन कमाए जाते हैं. हर व्यक्ति को सीमा पार कराने के लिए तस्कर 10,000 से 15,000 रुपये के बीच कमाते हैं.
सीमा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए तत्काल और व्यापक उपायों के बिना, ये कमजोरियां भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बनी रहेंगी.