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जब बिना बोले हाथ के इशारों से ही कई हफ्ते चलता रहा शास्त्रार्थ... मौन रहकर मूर्ख से महाकवि बन गए कालिदास

मेघदूत, विक्रमोर्वशीयम और ऋतुसंहार लिखने वाले महाकवि कालिदास की भी एक कथा मौन शास्त्रार्थ का बड़ा उदाहरण है. दरअसल कालिदास हमेशा से विद्वान नहीं थे. एक अनाथ ब्राह्मण लड़का, जो ग्वालों के बीच रहकर पला तो वह क्या ही विद्वान बनता, लेकिन उन्हें विद्वान बनना था तो ऐसा ही हुआ.

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महाकवि कालिदास ने मौन रहकर शास्त्रार्थ में राजकुमारी विद्योत्तमा को हराया था (Photo_ AI)
महाकवि कालिदास ने मौन रहकर शास्त्रार्थ में राजकुमारी विद्योत्तमा को हराया था (Photo_ AI)

मौन क्या है? क्या सिर्फ चुप लगा जाना. चुप्पी साध जाना. यह तो मौन नहीं हुआ और न ही इसकी परिभाषा में कहीं ऐसा है कि चुप रहकर देख लो वही मौन है. ये जरूर है कि चुप्पी या मौन ध्यान का एक जरिया जरूर है, लेकिन पूरा ध्यान यह भी नहीं. मौन में भी संवाद होते हैं. बड़ी-बड़ी बातें मौन रहकर समझा दी जाती हैं. कई बड़े फैसले सिर्फ एक मौन से ले लिए जाते हैं. मौन संकेत, सूचना के प्रसार का इतना विकसित मॉडल है कि सदियों पहले ही इस विधा में कई बड़ी-बड़ी बातें कह दी गई हैं. 

मौन शास्त्रार्थ की परंपरा
ऐसे ही भारतीय समाज और सनातनी परंपराओं में 'मौन शास्त्रार्थ' की भी एक परंपरा रही है. कितना दिलचस्प है न कि लंबी-लंबी बहसें सिर्फ मौन रहकर की गई हों और वह भी संकेतों के जरिए. इसके कई उदाहरण भारतीय पौराणिक और प्राचीन साहित्य में तो मिलते ही हैं, बल्कि पश्चिम की लोककथाओं में इस तरह के कई जिक्र हैं, जहां सिर्फ मौन संकेत के जरिए शास्त्रार्थ हुए और उनके सुखद परिणाम भी निकले हैं.

कहानी कालिदास की
मेघदूत, विक्रमोर्वशीयम और ऋतुसंहार लिखने वाले महाकवि कालिदास की भी एक कथा मौन शास्त्रार्थ का बड़ा उदाहरण है. दरअसल कालिदास हमेशा से विद्वान नहीं थे. एक अनाथ ब्राह्मण लड़का, जो ग्वालों के बीच रहकर पला तो वह क्या ही विद्वान बनता, लेकिन उन्हें विद्वान बनना था तो ऐसा ही हुआ.

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राजकुमारी विद्योत्तमा ने रखी थी विवाह की शर्त
हुआ ये कि एक राजा की राजकुमारी थी विद्योत्तमा. जैसा नाम वैसे गुण वाली विद्योत्तमा बड़ी ज्ञानी थी. उसे वेद-उपनिषद, शास्त्र सभी का ज्ञान था. विवाह की उम्र हुई, पिता को चिंता सताने लगी. राजकुमारी का स्वयंवर रचाया जाने लगा, लेकिन राजकुमारी ने शर्त रख दी, जो भी कोई शास्त्रार्थ में उसे हराएगा उसी से विवाह करेगी. 

कई राजकुमारों की हुई हार
शर्त की बात फैल गई, कई राजकुमार आए. विद्योत्तमा से शास्त्रार्थ करते हार जाते और फिर मुंह लटका कर वापस चले जाते. ये सिलसिला जारी रहा. एक दिन सभी राजकुमारों ने मिलकर तय किया कि विद्योत्तमा खुद को बहुत ज्ञानी समझती है, क्यों न किसी तरह इसका विवाह किसी मूर्ख से करा दिया जाए. अब राजकुमार एक मूर्ख की तलाश में जुट गए. 

ऐसे खोजे गए थे कालिदास
उनकी खोज एक ऐसे व्यक्ति पर जाकर पूरी हुई, जो वन में एक वृक्ष काट रहा था. लेकिन मूर्खता देखिए, जिस डाल पर बैठा था, उसे ही काट रहा था. उन्होंने सोचा कि इससे बड़ा मूर्ख तो कोई मिलेगा ही नहीं. उन्होंने उस युवक को कई प्रलोभन देकर राजकुमारी से विवाह के लिए तैयार कर लिया. 

मूर्ख कालिदास ने किया शास्त्रार्थ
उन्होंने बहुत सख्ती से कहा कि, "मौन धारण कर लो और जो हम कहेंगे बस वही करना". उन लोगों ने उस लकड़हारे को राजकुमारों की तरह सजा कर विद्योत्तमा के सामने प्रस्तुत किया कि और बोले, ये हमारे गुरु हैं और आप से शास्त्रार्थ करने के लिए आए है. आगे उन्होंने कहा कि, गुरुदेव का अभी मौनव्रत हैं, इसलिए ये हाथों के संकेत से उत्तर देंगे. इनके संकेतों को समझ कर हम वाणी में आपको उसका उत्तर देंगे.

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ऐसे पूछे गए प्रश्न, संकेतों में हुआ शास्त्रार्थ
शास्त्रार्थ की शुरुआत हुई. विद्योत्तमा मौन शब्दावली में गूढ़ प्रश्न पूछती थी, जिसे कालिदास अपनी बुद्धि से मौन संकेतों से ही जवाब दे देते थे. पहले प्रश्न में विद्योत्तमा ने संकेत से एक उंगली दिखाई कि ब्रह्म एक है. कालिदास ने समझा कि ये राजकुमारी मेरी एक आंख फोड़ना चाहती है. क्रोध में उन्होंने दो अंगुलियों का संकेत इस भाव से किया कि तू मेरी एक आंख फोड़ेगी तो मैं तेरी दोनों आंखें फोड़ दूंगा.

कपटी राजकुमारों ने इस संकेत को कुछ इस तरह समझाया कि आप कह रही हैं कि ब्रह्म एक है लेकिन हमारे गुरु कहना चाह रहे हैं कि उस एक ब्रह्म को सिद्ध करने के लिए दूसरे (जगत्) की सहायता लेनी होती है. अकेला ब्रह्म स्वयं को सिद्ध नहीं कर सकता. राज कुमारी ने दूसरे प्रश्न के रूप में खुला हाथ दिखाया कि तत्व पांच है. 

कालिदास को लगा कि यह थप्पड़ मारने की धमकी दे रही है. उसके जवाब में कालिदास ने घूंसा दिखाया कि तू यदि मुझे गाल पर थप्पड़ मारेगी, मैं घूंसा मार कर तेरा चेहरा बिगाड़ दूंगा. कपटियों ने समझाया कि गुरु कहना चाह रहे हैं कि भले ही आप कह रही हो कि पांच तत्व अलग-अलग हैं पृथ्वी, जल, आकाश, वायु एवं अग्नि. परंतु यह तत्व प्रथक्-प्रथक् रूप में कोई विशिष्ट कार्य संपन्न नहीं कर सकते फिर भी आपस में मिलकर एक होकर उत्तम मनुष्य शरीर का रूप ले लेते है जो कि ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है.

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कहते हैं कि सिर्फ हाथ से चले इशारों में ये शास्त्रार्थ कई दिनों तक चला. इस पूरे शास्त्रार्थ में सिर्फ उंगलियों के इशारों, आंखों की पुतलियों, चेहरे की भाव-भंगिमाओं से ग्रह मंडल, नक्षत्र, भूत-वर्तमान-भविष्य जैसे बड़े और जटिल विषयों पर बड़े ही सामान्य तरीके से लेकिन गूढ़ अर्थों में बात हुई. कालिदास के हर प्रश्नों के उत्तर दिए जाने पर विद्योत्तमा ने इशारे में ही कहा कि मैं हार मानती हूं और वरमाला पहनाऊंगी. ऐसा इशारा करने के लिए उसने दोनों हाथों से माला पहनाने जैसा अभिनय किया. 

कालिदास ने समझा कि ये मुझे रस्सी के फंदे में बांधने की बात कर रही है, तो उन्होंने बैल की तरह सिर झुकाते हुए इशारा किया मैं सिर मार दूंगा. विद्योत्तमा ने इसे उनकी विनम्रता में सिर झुकाना समझा और वरमाला डाल दी.   

कालिदास से हो गया विद्योत्तमा का विवाह
फिर शर्त के अनुसार कालिदास और विद्योत्तमा का विवाह हो गया. एक दिन दोपहर को जब कालिदास द्वार के बाहर खड़े थे कि उसी समय कुछ ऊंटों का रेला बलबलाते हुए निकला. विद्योत्तमा ने अंदर से आवाज लगाई और पूछा. 'किम् वदति (ये क्या बोल रहा है?) कालिदास संस्कृत नहीं जानते थे, उन्होंने हंसते हुए कहा "ऊट्र उट्र". 

विद्योत्तमा ने कालिदास को धिक्कारा
अब विद्योत्तमा को समझ आया कि कालिदास तो बिल्कुल अनपढ़ हैं. उसने उसी दौरान द्वार बंद कर लिया और कहा कि जब तक ज्ञान न हो जाए तो लौटना नहीं. कालिदास के मन को भी चोट लगी. वह घर से ज्ञान की खोज में निकल गए. उन्होंने काली मां की आराधना की और ज्ञान का वरदान मांगा. देवी के आशीर्वाद से वे ज्ञानी बन गए. कालिदास ने ज्ञान को प्राप्त कर लिया, लेकिन अब उनके निश्छल मन में अहंकार भी था. देवी काली ने इस अहंकार को तोड़ने का बीड़ा उठाया. 

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कालिदास को हुआ ज्ञान का घमंड
एक दिन कालिदास ने घर वापस जाने पर विचार किया और फिर वह चल पड़े. रास्ते में उन्हें बहुत प्यास लगने लगी. कुछ समय बाद वे किसी गांव में पहुंचे, वहां एक कुआं दिखाई दिया, वहां एक महिला पानी भर रही थी. कालिदास महिला से बोले कि देवी मैं बहुत प्यासा हूं, कृपया मुझे पीने के लिए थोड़ा पानी दीजिए.

स्त्री ने कालिदास को देखा और कहा कि मैं आपको नहीं जानती, पहले परिचय दो, फिर पानी मिलेगा. कालिदास ने अपने ज्ञान के घमंड में खुद नाम नहीं बताया और कहा कि मैं अतिथि हूं. महिला बोली कि ये सही नहीं है. संसार में दो ही अतिथि हैं, एक धन और दूसरा यौवन. गांव की महिला से ज्ञान की ये बात सुनकर कालिदास हैरान थे. उन्होंने कहा कि मैं सहनशील हूं. महिला बोली कि ये भी सही जवाब नहीं है. इस संसार में सिर्फ दो ही सहनशील हैं. एक ये धरती जो हमारा बोझ उठाती है, दूसरे सहनशील पेड़ हैं, जो पत्थर मारने पर भी फल ही देते हैं.

जब एक ग्रामीण महिला ने ली कालिदास की परीक्षा
अब कालिदास को लगने लगा कि ये महिला बहुत विद्वान है. उन्होंने फिर कहा कि मैं हठी हूं. महिला बोली कि संसार में हठी भी दो ही हैं. एक नाखून और दूसरे केश, बार-बार काटने पर भी फिर से बढ़ जाते हैं. ज्ञानभरे जवाब सुनकर कालिदास ने महिला के सामने अपनी हार मान ली. उन्होंने कहा कि मैं मूर्ख हूं. मुझे क्षमा करें. महिला ने कहा कि तुम मूर्ख भी नहीं हो. क्योंकि मूर्ख भी दो ही हैं. एक राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर राज करता है. दूसरे दरबारी जो राजा को खुश करने के लिए गलत बात पर भी झूठी प्रशंसा करते हैं.

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अब कालिदास मौन हो गए और मूर्छित भी. इस जवाब के बाद कालिदास महिला के पैरों में गिर पड़े. पानी मांगने लगे. तभी महिला ने कहा कि उठो पुत्र. कालिदास ने ऊपर देखा तो वहां मां काली खड़ी थीं. माता ने कहा कि तुझे अपने ज्ञान का घमंड हो गया था. इसीलिए तेरा घमंड तोड़ना पड़ा. अब तो अपने घर वापस जा. कालिदास ने माता से क्षमा मांगी और उनके भीतर अब ज्ञान का असली दीपक प्रकाशित हो गया था. 

कालिदास ने पत्नी विद्योत्तमा को माना अपना पथ प्रदर्शक
ज्ञान प्राप्ति के बाद जब वे घर लौटे तो उन्होंने दरवाजा खटखटा कर कहा - कपाटम् उद्घाट्य सुन्दरि! (दरवाजा खोलो, सुन्दरी)। विद्योत्तमा ने चकित होकर कहा , अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः (वाणी में कोई विशेषता लगती है) यह कहते हुए उसने द्वार खोला तो सामने विद्वान कालिदास को देखकर वह भावविभोर हो गई. कालिदास ने अपनी रचनाओं में कई बार विद्योत्तमा को ही सरस्वती कहा है, जिसने उन्हें ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रेरणा दी.

कालिदास ने विद्योत्तमा को अपना पथप्रदर्शक गुरु माना और उसके इस वाक्य को उन्होंने अपने काव्यों में भी जगह दी. कुमारसंभवम् का प्रारंभिक शब्द है, अस्त्युत्तरस्याम् दिशि…  इसी तरह मेघदूतम् का पहला शब्द है- कश्चित्कांता... और रघुवंशम् की शुरुआत होती है- वागार्थविव… से.

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ये थी मौन की महिमा, जिसने मूर्ख समझे जाने वाले कालिदास को महाकवि कालिदास बना दिया. संस्कृत के इस महाकवि ने अपनी कृतियों में प्रेम, क्रोध, रौद्र, भयानक, वीभत्स, शांत, वात्स्ल्य और सौंदर्य का ऐसा ताना-बाना रचा है कि आज भी उनके साहित्य के एक-एक श्लोक शोध का विषय बनते हैं. कालिदास के द्वारा गढ़ा गया रोमांस अद्वितीय है. यह उन्हें मौन के जरिए ही प्राप्त हुआ एक अनमोल वरदान था.

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