राजस्थान (Rajasthan) में जयपुर राजघराने की रानी पद्मिनी देवी, राजकुमारी दीया कुमारी और राजा पद्मनाभ सिंह सहित राजपरिवार के सदस्यों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया है. राजस्थान हाई कोर्ट ने इसे सरकारी संपत्ति मानते हुए राज घराने के दावों को खारिज कर दिया था. हाई कोर्ट के इस आदेश को राजपरिवार की सदस्य पद्मिनी देवी, दीया कुमारी और पद्मनाभ सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. अब दो महीने बाद सुनवाई होगी.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने राजस्थान सरकार से कहा कि जब तक ये मामला लंबित है, तब तक कोई कार्रवाई आगे नहीं बढ़ाएगा.
याचिका में राजस्थान हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें टाउन हॉल यानी पुराने विधानसभा भवन सहित चार मुख्य इमारतों को सरकारी संपत्ति घोषित किया गया था.
कोर्ट में क्या दलील रखी गई?
याचिकाकर्ताओं के सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने दलील दी कि यह मामला कानूनी पेचीदगियों से भरा हुआ है. इसमें तीन अहम मुद्दे संविधान के अनुच्छेद 362 और 363 में पूर्व शासकों और रजवाड़ों के विशेषाधिकार से जुड़े हैं. ये कई प्रकार के अनुबंध हैं, आप इन राज्यों का इतिहास जानते हैं.
उन्होंने आगे कहा कि यह एक संधि है, जिसमें संघ तो एक पक्ष भी नहीं था. यह तो जयपुर और बीकानेर आदि के शासकों के बीच हुई थी.
दलील पर कोर्ट ने क्या कहा?
याचिकाकर्ता के वकील की दलील पर कोर्ट ने कहा कि तो आप आपस में ऐसा करते हैं, बिना भारत संघ को पक्ष बनाए? आप कैसे विलय करते हैं? फिर तो पूरा जयपुर आपका हो जाएगा. राजस्थान का हर शासक सभी सरकारी संपत्तियों पर अपना दावा करेगा. तो फिर ये रियासतें कहेंगी कि सारी संपत्तियां उनकी ही हैं.
कोर्ट ने आगे कहा, "अगर आप कहते हैं कि भारत संघ इस अनुबंध का पक्षकार नहीं था, तो अनुच्छेद 363 लागू नहीं होगा." साल्वे ने कहा कि यह मेरा तर्क नहीं है. 363 के तहत बार लागू नहीं होगा.
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कोर्ट ने कहा कि अगर रोक नहीं लगी तो हर कोई मुकदमा दायर करेगा. वैसे भी हम मुकदमे की वैधता यानी मेरिट पर चर्चा नहीं कर रहे हैं. हम केवल इस मुद्दे से चिंतित हैं, जो आपने उठाया है. इन 4 मुकदमों में भी शायद आधा जयपुर आपका ही होगा. खैर, हम नोटिस जारी करेंगे, हमें दूसरा पक्ष भी सुनना होगा.
हरीश साल्वे ने कहा कि हम यथा स्थिति चाहते हैं. राज्य के वकील ने जवाब देने के लिए 6 हफ्ते की मोहलत मांगी. उन्होंने दलील दी कि कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया जाए.
कोर्ट ने नोटिस जारी किया, जिसे राज्य के वकील ने स्वीकार कर लिया. इसके बाद कोर्ट ने कहा कि इस मामले में राज्य के लिए एएजी ने प्रस्तुत किया है कि राज्य इस एसएलपी के लंबित रहने का सम्मान करेगा और मामले को लंबित नहीं रखेगा.