एक पुरानी कहावत है- 'फेक इट अन्टिल यू मेक इट' यानी जब तक आप किसी चीज में सफल नहीं हो जाते, तब तक उसमें सफल होने का ढोंग करते रहें. लेकिन भारत में नए जमाने के उद्यमी, शार्क्स और हसलर इसे उल्टा कर चुके हैं. उनका मंत्र है: 'मेक इट अन्टिल यू कैन फेक इट'. इसका मतलब क्या है? इसे समझना है तो अपने किचन में रखे अंडों पर नजर डालिए.
कैसे शुरू होती है समस्या?
एक साल पहले मुझे अंडों का एक ब्रांड मिला. यह 'जंबो' अंडे बेचता था, जो बाजार में सबसे बड़े और गुणवत्ता में बेहतरीन थे. साफ और ताजा दिखते थे, और आकार में अमेरिकी व यूरोपीय मानकों के बड़े या मीडियम अंडों से मेल खाते थे. मैं इन्हें बहुत पसंद करता था.
लेकिन कुछ समय बाद बदलाव आया. सबसे पहले पैकेजिंग बदल गई- साधारण ट्रे की जगह मोटे चमकदार कागज की खूबसूरत पैकेजिंग होने लगी. और अंडों की गुणवत्ता भी गिरने लगी. आकार अब एक समान नहीं था- कुछ बड़े, कुछ मीडियम, कुछ छोटे. कुछ अंडों की खोलें पतली या लगभग पारदर्शी हो गईं, जैसे ताजगी कम हो गई हो. स्वाद भी असमान हो गया.
हर ब्रांड की एक ही कहानी
यह कहानी हर ब्रांड के साथ है. मैंने लगभग सभी ब्रांड्स आजमाए- Blinkit, Instamart और लोकल स्टोर्स में. चाहे बड़े ऑर्गेनिक स्टोर हों या फैंसी शॉप्स, क्वालिटी, साइज, फ्रेशनेस और टेस्ट कभी एक जैसा नहीं मिला. लेकिन सभी ब्रांड्स की पैकेजिंग शानदार और नाम बेहद जटिल हैं- Natural+ VitaD, Protein Max, Abhi Vitamin D3, Nutra Plus Specialty! इनका मतलब क्या है?
यहां 'मेक इट अन्टिल यू कैन फेक इट' का जादू दिखता है. ब्रांड पहले अच्छे अंडे बेचकर लोगों का भरोसा जीतता है. जैसे ही वह लोकप्रिय हो जाता है और एक अच्छी छवि बनाता है, क्वालिटी घटाने लगता है, शायद ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए. यह वही स्विच और बेइमानियत है जो नए जमाने के फूड उद्यमियों में आम है, जो Zomato और Blinkit जैसे ऐप्स पर हाई रेटिंग पर निर्भर हैं.
अंडों की बड़ी समस्या से जूझ रहा भारत
असल में भारत में अंडों की एक बड़ी समस्या है. आप यह तब तक महसूस नहीं करेंगे जब तक आप Eggoz, HenFruit, The Natural Fresh, FarmMade जैसे ब्रांड्स की बात सुनते रहेंगे. अमेरिका या यूरोप की तरह यहां कोई तय या लागू मानक नहीं हैं. यह एक मुक्त बाजार है, जहां ब्रांड्स अंडों की गुणवत्ता पर कम ध्यान देते हैं और ज्यादा ध्यान अपनी मार्केटिंग और आकर्षक कहानीबाजी पर लगाते हैं. साथ ही, वे यह दिखाने में लगे रहते हैं कि मुर्गियां क्या-क्या खाती हैं, जो अक्सर असंभव या अतिशयोक्ति भरा होता है.
ब्रांड्स के अजीबोगरीब दावे
एक ब्रांड दावा करता है कि उसकी मुर्गियां ड्राई फ्रूट खाती हैं, इसलिए उसके अंडे सबसे पीले और सबसे सफेद होते हैं. वहीं, दूसरा ब्रांड और खास दिखने के लिए कहता है कि उसकी मुर्गियां ड्राई फ्रूट के साथ ऑरेंज जूस भी पीती हैं, इसलिए उसके अंडे न केवल मेवे के स्वाद के हैं बल्कि फ्रूटी भी होते हैं. कई ब्रांड्स इसी तरह अतिशयोक्तिपूर्ण कहानियां गढ़ते हैं कि उनकी मुर्गियां कैसे रहती हैं. एक कहता है कि उसकी मुर्गियां फ्री रेंज हैं क्योंकि वे दिन में 10,000 कदम चलती हैं और केवल इम्पोर्टेड मीलट्स ही खाती हैं.
इसके बाद अंडों के बारे में और कहानियां बनाई जाती हैं, ताकि स्वास्थ्य के प्रति सजग और प्रोटीन लेने वाले लोगों को गुमराह किया जा सके. कुछ ब्रांड्स दावा करते हैं कि उनके अंडों में मल्टीविटामिन मिलाए गए हैं. कोई कहता है कि सिर्फ मल्टीविटामिन ही नहीं, उसके अंडों में अतिरिक्त आयरन और मैग्नीशियम भी होता है. ये अंडे बेचने वाले ब्रांड्स अंडों के खोल के रंग- सबसे सफेद और सबसे गहरा भूरा- को ज्यादा बढ़-चढ़कर दिखाते हैं, बजाय इसके कि वे वजन और सही पोषण मूल्य जैसी असल जानकारी दें. पूरी इंडस्ट्री एक सर्कस बन चुकी है, जहां आपको अंडों की ट्रे पर लगे फ्लायर और पैकेजिंग पर सब कुछ दिख जाएगा- लेकिन अच्छे अंडे शायद ही मिलें.
मिड-डे मील में दिए जाने वाले अंडों का हाल
भारत में अंडों के मानक इतने खराब हैं कि हाल ही में आंध्र प्रदेश के एल्यूर में अधिकारियों ने मिड-डे मील की गुणवत्ता जांचने के लिए एक स्कूल का निरीक्षण किया और पाया कि बच्चों को सिर्फ 31 ग्राम वजन वाले अंडे मिल रहे थे. जानकारी के लिए बता दें कि अमेरिका में एक सामान्य आकार का अंडा लगभग 50 ग्राम का होता है. अमेरिका में छोटे अंडे का वजन 40 ग्राम के थोड़ा ऊपर होता है और यूरोप में यह थोड़े बड़े होते हैं. भारत में अंडा कंपनियां 45-50 ग्राम के अंडों को 'बड़े' या 'एक्स्ट्रा बड़े' कहकर बेचती हैं, जो अगर ताजा हों तो ठीक माना जा सकता है. लेकिन अधिकांश मामलों में यह भी सही नहीं है.
मेक इट अन्टिल यू कैन फेक इट
'मेक इट अन्टिल यू कैन फेक इट', यह तरीका लगभग पूरी फूड और बेवरेज इंडस्ट्री के संचालन का तरीका बन चुका है, खासकर उन ब्रांड्स का जो क्विक-कॉमर्स पर निर्भर हैं. नए रेस्टोरेंट खुलते हैं, जल्दी ही अच्छे फीडबैक और 4-5 स्टार हासिल कर लेते हैं क्योंकि उनका खाना अच्छी क्वालिटी का, पर्याप्त मात्रा में और ताजा होता है. लेकिन जैसे ही उनका नाम बन जाता है, साइज घटने लगता है, क्वालिटी गिरने लगती है और कीमतें बढ़ जाती हैं.
नकली पनीर से भी बड़ी समस्या
Blinkit और InstaMart जैसे क्विक-कॉमर्स ऐप्स पर भी यही स्थिति है, जहां ब्रांड्स कुछ ऑर्गेनिक, बड़े और हाई क्वालिटी वाली सामग्री से बने उत्पाद बेचना शुरू करते हैं. एक ऐसे देश में जहां गुणवत्ता वाली चीजों की कमी है, ये ब्रांड्स जल्दी ही लोकप्रिय हो जाते हैं. और फिर, ये भी वही चालाकी दिखाने लगते हैं और वही हसलिंग शुरू कर देते हैं, जो मार्केट में अन्य कम-गुणवत्ता वाले खिलाड़ी कर रहे हैं.
और यह सब वास्तविक धोखाधड़ी के मामलों को शामिल किए बिना है, जैसे कि 'सिंथेटिक पनीर' जैसी अजीब चीज या डालडा और घी में आम मिलावट. सीधे शब्दों में कहें तो, भारत की खाने-पीने की इंडस्ट्री बहुत खराब हालत में है. लेकिन अगर हम इस पर विस्तार से जाएं, तो यह लेख कभी खत्म नहीं होगा.
(जावेद अनवर इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के टेक्नोलॉजी एडिटर हैं)