
कंपनियां समाज के लिए जो पैसा खर्च करती हैं, उसे कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी यानी CSR कहा जाता है. लोकसभा में केंद्रीय कॉरपोरेट मामलों के राज्य मंत्री हर्ष मल्होत्रा ने बताया कि साल 2024 में CSR का सबसे ज्यादा फायदा किस राज्य को मिला. इसमें महाराष्ट्र सबसे ऊपर रहा.
महाराष्ट्र को ₹6,065.95 करोड़ की CSR राशि मिली. इसके बाद गुजरात दूसरे नंबर पर रहा, जिसे ₹2,707.54 करोड़ मिले. तीसरे स्थान पर कर्नाटक रहा, जहां ₹2,254.88 करोड़ की फंडिंग हुई. तमिलनाडु को ₹1,968.76 करोड़ और दिल्ली को ₹1,949.95 करोड़ की राशि मिली. ये पांचों राज्य मिलकर देश के CSR खर्च का बड़ा हिस्सा लेते हैं.
जहां इन बड़े राज्यों को हजारों करोड़ रुपये मिले, वहीं कुछ छोटे इलाकों को बहुत कम पैसा मिला. उदाहरण के तौर पर, लक्षद्वीप को साल 2024 में सिर्फ ₹36 लाख ही मिले. इसी तरह अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को ₹3.03 करोड़, मिजोरम को ₹4.48 करोड़, त्रिपुरा को ₹9.45 करोड़ और नागालैंड को ₹15.41 करोड़ की राशि मिली.

अगर यह देखें कि कंपनियां CSR का पैसा किन कामों पर खर्च कर रही हैं, तो सबसे ज्यादा पैसा शिक्षा और स्वास्थ्य में लगाया गया है. वित्त वर्ष 2023-24 में शिक्षा क्षेत्र को ₹12,134.57 करोड़ मिले, जो सबसे ज्यादा है.

इसके बाद स्वास्थ्य देखभाल का नंबर आता है, जिसमें ₹7,150.81 करोड़ खर्च हुए. इन दोनों क्षेत्रों पर मिलाकर देश के कुल CSR खर्च का आधे से ज्यादा पैसा गया. इसके अलावा पर्यावरण से जुड़े कामों पर ₹2,429.97 करोड़, ग्रामीण विकास पर ₹2,408.09 करोड़ और रोजगार व आजीविका से जुड़े कार्यक्रमों पर ₹2,360.09 करोड़ खर्च किए गए.
CSR फंडिंग में कुछ राज्यों में काफी बढ़ोतरी भी देखी गई. पुडुचेरी में यह बढ़ोतरी 250 प्रतिशत से ज्यादा रही, हालांकि वहां पहले फंड बहुत कम था. आंध्र प्रदेश में CSR राशि लगभग 70 प्रतिशत बढ़ी और गुजरात में करीब 68 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई.

दिल्ली में भी CSR फंडिंग 62 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी. वहीं कुछ जगहों पर इसमें कमी भी दर्ज की गई. अंडमान और निकोबार में लगभग 69 प्रतिशत की गिरावट आई और लक्षद्वीप में करीब 63 प्रतिशत की कमी हुई. अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम में भी CSR खर्च में काफी गिरावट देखी गई.