scorecardresearch
 

छठे ज्योतिर्लिंग पर विवाद, हिंदू धर्मग्रंथ क्या कहते हैं: दिन भर, 16 फरवरी

छठे ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर पर दो राज्यों के बीच विवाद क्यों हो गया है और धर्मग्रंथ क्या कहते हैं? चुनावी राज्य में सीएम बदलने का दांव बीजेपी के लिए कितना क़ामयाब रहा है, कुख़्यात आतंकी संगठन अल-क़ायदा का नया चीफ़ कौन है और अदाणी ग्रुप के शेयर्स में भारी उथल-पुथल के बावजूद इंडियन शेयर मार्केट पर उतना असर क्यों नहीं हुआ, सुनिए आज के 'दिन भर' में कुलदीप मिश्र से.

Advertisement
X
bhimashankar pune guwahati
bhimashankar pune guwahati

सनातन धर्म में माना गया है कि भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिग हैं, देश के अलग-अलग हिस्सों में. माना जाता है कि इन जगहों पर शिव प्रकट हुए थे और इसी वजह से वहां ज्योतिर्लिंगों की स्थापना हुई. लेकिन असम सरकार के एक विज्ञापन ने छठे ज्योतिर्लिंग की लोकेशन को लेकर बहस छेड़ दी है. मंगलवार को कई अख़बारों में असम सरकार के टूरिज्म डिपार्टमेंट ने एक फुल पेज विज्ञापन दिया, जिसमें दावा किया गया कि असम के गुवाहाटी में पामही एक जगह है, जहां छठा ज्योतिर्लिंग है. दावे की पुष्टि के लिए शिवपुराण की कथा और श्लोक का ज़िक्र भी किया गया. लेकिन आम मान्यता ये है कि छठा ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे ज़िले के भीमाशंकर में स्थित है. तो महाराष्ट्र वाले लोग आहत हो गए. 

छठे ज्योतिर्लिंग पर किसका दावा सही?

महाराष्ट्र में विपक्ष के नेताओं ने बीजेपी पर धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ का आरोप लगाया. उद्धव खेमे के शिवसेना से लेकर एनसीपी ने असम सरकार के विज्ञापन पर कड़ी आपत्ति जताई. एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने ट्वीट करते हुए लिखा, 'क्या बीजेपी ने महाराष्ट्र के उद्योग-धंधों को छीनने के बाद अब सांस्कृतिक और आध्यात्मिक खजाने को छीनना चाहती है?' तो इस मामले पर धर्मग्रंथों में कितनी स्पष्टता है और राजनीतिक विवाद से इतर आम लोगों को ऐसे मुद्दों को किस तरह देखना चाहिए, सुनिए 'दिन भर' की पहली ख़बर में.


BJP को मिलता है CM बदलने का फ़ायदा?

त्रिपुरा में आज विधानसभा चुनाव निपट गए. 60 सीटों पर 81 फीसदी से ज्यादा वोट डाले गए. बंगाल और केरल के अलावा त्रिपुरा एक ऐसा राज्य था, जहाँ वाम दलों का दबदबा हुआ करता था. लेकिन 2018 में बीजेपी ने यहाँ लेफ्ट के अभेद्य क़िले को नेस्तनाबूत कर दिया. बीजेपी के बिप्लब देब सीएम बनाये गए. लेकिन 2022 में उनका इस्तीफ़ा हो गया और मानिक साहा नए सीएम बने. ये पहली बार नहीं है कि किसी चुनावी राज्य में बीजेपी ने अपना सीएम बदला. एंटी-इन्कम्बेंसी फैक्टर को काउंटर करने के लिए बीजेपी कई राज्यों में इसे एक पॉलिटिकल दांव के तौर पर इस्तेमाल करती आई है. त्रिपुरा में उनका ये दांव कितना क़ामयाब हुआ, इसका पता तो 2 मार्च को चलेगा, जब नतीजे आएंगे. तो ये जानते हैं कि किन राज्यों में बीजेपी की ये स्ट्रैटेजी रंग लाई और कहाँ सीएम नहीं बदले तो उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा, सुनिए 'दिन भर' की दूसरी ख़बर में.

Advertisement

कौन है अल-क़ायदा का नया चीफ़?

अल कायदा... एक वक्त ये आतंकवाद का पर्याय होता था और ओसामा बिन लादेन इसका चेहरा. अलकायदा का सरगना रहे लादेन ने ही अमेरिका में 9/11 जैसे हमले को अंजाम दिया और फिर अमेरिका के हाथों मारा भी गया. फिर संगठन की कमान संभाली आयमान अल जवाहिरी ने जो कि ओसामा का वफ़ादार था. ऐसा भी कहा गया कि चेहरा भले ही ओसामा रहा हो लेकिन असल कमान हमेशा से अल जवाहिरी के हाथों में ही रही. इजिप्ट से लेकर ईरान तक इसने अपना दबदबा कायम किया और पिछले साल जवाहिरी भी अमेरिका के हाथों मारा गया. तब से संगठन की कमान किसके हाथों में जाएगी, इस पर सवाल बना हुआ था. लेकिन अब UN की सिक्योरिटी काउंसिल ने एक रिपोर्ट में बताया है कि सैफ अल आदेल अलकायदा का नया चीफ बन गया है जो अभी ईरान से ऑपरेट कर रहा है. 

अफगानिस्तान में तालिबान जब सत्ता में आया तो उसने इंटरनेशनल लेवल पर अपनी एक्सेप्टेंस बढ़ाने की कोशिश की इसी कड़ी में उसने अमेरिका के साथ एक एग्रीमेंट साइन किया जिसमें लिखा गया कि वो अपनी सरजमीं से किसी भी आतंकी संगठन को ऑपरेट नहीं करने देगा. मगर अब सैफ अल आदेल का नाम आने के बाद कहा जा रहा है कि तालिबान की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका ने आदेल पर 82 करोड़ का इनाम रखा था और अभी अल कायदा का ट्रेनिंग कैंप भी अफगानिस्तान में होने का दावा किया जा रहा है. तो सैफ अल आदेल कौन है, किन किन आंतकी घटनाओं में इसका नाम सामने आया है और इससे शिया-सुन्नी के कॉन्फ्लिक्ट पर इसका क्या इम्पैक्ट हो सकता है, सुनिए 'दिन भर' की तीसरी ख़बर में.  

Advertisement

अदाणी के घाटे से शेयर मार्केट क्यों नहीं हिला 

24 जनवरी को अमेरिकी हिंडेनबर्ग रिसर्च ने दुनिया के दूसरे सबसे अमीर आदमी गौतम अदाणी की कंपनियों पर एक रिपोर्ट पेश की और अदाणी ग्रुप पर गंभीर फाइनेंशियल इररैगुलैरिटीज़ के आरोप लगाए. इन आरोपों के बाद अदाणी समूह को शेयर मार्किट में तगड़ा झटका लगा. 24 जनवरी को अदनी समूह का शेयर मार्किट में कैप 19 लाख करोड़ था और ये मार्किट कैप के लिहाज़ से दूसरी सबसे बड़ी कंपनी थी. लेकिन कल बुधवार ट्रेडिंग सेशन के बाद इसका मार्किट शेयर बस  साढ़े 8 लाख करोड़ से थोड़ा ज़्यादा रह गया है. मतलब महज़ 15 ट्रेडिंग सेशन में अदाणी समूह को करीब साढ़े 10 लाख करोड़ का नुकसान  हो चुका है. लेकिन अगर हम शेयर मार्केट की बात करें तो उसमे एक हैरान करने वाली बात दिखती है. मार्केट से इतनी बड़ी रकम बाहर निकल जाने के बावजूद सेंसेक्स इंडेक्स पर इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ा है. आज हफ्ते की क्लोजिंग सेशन के अंत में सेंसेक्स इंडेक्स 61, 319 पर बंद हुआ जो 24 जनवरी के मुकाबले 340 अंक ज्यादा है.  

इससे ऐसे समझिये - 2018 में जब IL&FS  स्कैम सामने आया तब 15 ट्रेडिंग सेशन के बाद सेंसेक्स 9.5 फ़ीसदी लुढ़क गया था. इसी तरह 2018 में PNB - नीरव मोदी स्कैम के बाद 2.9 और 2007 में सत्यम स्कैम के बाद सेंसेक्स 10.4 फ़ीसदी लुढ़का था. 2008 की मंदी, 9/11 अटैक, 2001 का केतन पारेख स्कैम 2000 का डॉट कॉम बबल बर्स्ट ये कुछ ऐसे उदाहरण है जिनका शेयर मार्किट पर बुरा असर पड़ा था. लेकिन इन सब ट्रेंड्स के उलट  इस बार अडानी के शेयर्स में हुई इतनी बड़ी उथल पुथल का का सेंसेक्स इंडेक्स पर कोई असर नहीं हुआ बल्कि इसमें पॉइंट 5 परसेंट की बढ़ोतरी ही देखने को मिली है. तो मार्केट से इतनी बड़ी रकम निकल जाने के बावजूद भी शेयर मार्किट इतना स्टेबल कैसे दिख रहा है और अदाणी ग्रुप के लिए शेयर मार्किट में अगले कुछ दिन कैसे रहने वाले हैं, सुनिए 'दिन भर' की आख़िरी ख़बर में. 

Advertisement
Advertisement