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मणिपुर में घात लगाकर हमला, स्पेशल फोर्स के जवान समेत दो की मौत, कांगपोकपी जिले में 'बंद' का आह्वान

मणिपुर में एक बार फिर हमले की खबर आई है. वहां सोमवार को कांगपोकपी जिले में सशस्त्र हमलावरों ने एक मारुति जिप्सी पर घात लगाकर हमला किया है. इस हमले में इंडिया रिजर्व बटालियन (आईआरबी) के एक जवान और एक अन्य व्यक्ति की मौत हो गई है.

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मणिपुर में 3 मई को पहली बार हिंसा  की घटना सामने आई थी. (File Photo PTI)
मणिपुर में 3 मई को पहली बार हिंसा की घटना सामने आई थी. (File Photo PTI)

मणिपुर के कांगपोकपी जिले में घात लगाकर हमला किया गया है. इसमें इंडिया रिजर्व बटालियन (आईआरबी) का एक जवान और एक नागरिक की मौत हो गई. मरने वालों की पहचान लीमाखोंग मिशन वेंग गांव के हेनमिनलेन वैफेई (आईआरबी) और इंफाल पश्चिम जिले के हुनखो कुकी गांव के थांगमिनलुन हैंगिंग के रूप में की गई है.

यह हमला हरओथेल और कोबशा गांवों के बीच हुआ. एक मारुति जिप्सी में आईआरबी कर्मी और ड्राइवर जा रहा था, इसी बीच गोलीबारी शुरू हो गई. हमले के दौरान हेनमिनलेन वैफेई और थांगमिनलुन हैंगसिंग गंभीर रूप से घायल हो गए. बाद में दोनों की मौत हो गई.

एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि हमले के बाद इलाके में अतिरिक्त बल तैनात किया गया है. घटना में शामिल आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए तलाश की जा रही है.

इस बीच, एक आदिवासी संगठन ने दावा किया कि कुकी-जो समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया है. कांगपोकपी जिले में 'बंद' घोषित कर दिया गया है. कांगपोकपी में स्थित आदिवासी एकता समिति (सीओटीयू) ने स्थानीय लोगों से 'बंद' में मदद करने की अपील की है. सीओटीयू ने एक बैठक में मांग रखी कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार राज्य में आदिवासियों के लिए एक अलग प्रशासन की व्यवस्था करे. 

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6 महीने से जल रहा है मणिपुर

तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई. ये रैली मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ निकाली गई थी. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा देने की मांग हो रही है. इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. शाम तक हालात इतने बिगड़ गए कि सेना और पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों को वहां तैनात किया गया.

मैतेई क्यों मांग रहे जनजाति का दर्जा?

- मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी के आसापास है. राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. 
-पहाड़ी इलाकों पर नगा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है. मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत, घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं.
- पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके पर है.  

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मणिपुर की सीमा नागालैंड, मिजोरम और असम से लगती है. इसके अलावा इसके पूर्व में म्यांमार के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा सटी है.

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