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BMC चुनाव में मुस्लिम वोट कितना अहम? कितने दल दावेदार और किसकी पकड़ कितनी दमदार

मुंबई में मुसलमानों की आबादी करीब 20 फीसदी है, जो 50 बीएमसी सीटों पर अहम रोल अदा करते हैं. मुस्लिम वोटों पर कांग्रेस से लेकर सपा, अजित पवार की एनसीपी से लेकर असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM की नजर है. देखना है कि मुस्लिम वोटों की पहली पसंद कौन दल बनता है?

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मुस्लिम वोटों के कितने दावेदार, लेकिन कौन दमदार होगा. (Photo-ITG)
मुस्लिम वोटों के कितने दावेदार, लेकिन कौन दमदार होगा. (Photo-ITG)

मुंबई के बीएमसी चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया मंगलवार से शुरू हो गई है. इस बार का बीएमसी चुनाव काफी अलग है. उद्धव ठाकरे अपने सियासी दबदबा बरकरार रखने के लिए बेताब हैं तो बीजेपी एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ मिलकर कब्जा जमाना चाहती है.

महायुति पार्टनर उपमुख्यमंत्री अजित पवार अकेले बीएमसी चुनाव लड़ रहे हैं तो कांग्रेस भी महाविकास अघाड़ी से अलग किस्मत आजमाने का ऐलान कर रखा है. कांग्रेस हो या फिर अजित पवार दोनों मुस्लिम वोटों के लिए क्या अपने-अपने गठबंधन से किनारा कर रखे हैं?

महाराष्ट्र में भले ही मुसलमानों की आबादी 12 फीसदी है, लेकिन मुंबई में 20 फीसदी से भी ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं. मुंबई की सियासत में मुसलमानों का काफी दबदबा माना जाता है. मुंबई के कई इलाकों में मुस्लिमों के समर्थन के बिना जीत का समीकरण बनाना संभव नहीं है. ऐसे में बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के चुनाव के लिए मुस्लिम वोटों पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं.

मुंबई में मुस्लिम वोटर कितने अहम?

मुंबई का 20 फीसदी मुस्लिम बीएमसी की 277 सीटों में से करीब 45 पार्षद सीटें पर हार जीत का रोल अदा करते हैं. इनमें से करीब 30 सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं. इस तरह से मुंबई के कई इलाकों में मुस्लिमों के समर्थन के बिना जीत संभव नहीं है.

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2017 के बीएमसी चुनाव में 31 मुस्लिम पार्षद अलग-अलग पार्टियों से जीतकर आए थे, जिसमें 11 कांग्रेस, 6 सपा और चार एनसीपी के हैं. AIMIM से तीन और पांच निर्दलीय और शिवसेना से दो पार्षद जीते थे. इस लिहाज से समझा जा सकता है कि बीएमसी चुनाव में मुस्लिम वोटर कितने अहम फैक्टर है. 

मराठी और गैर-मराठी में बंटा मुस्लिम

मुंबई में रहने वाले मुसलमान दो धड़ों में बंटे हुए हैं. मुंबई में मुस्लिमों की कुल आबादी का करीब 70 फीसदी उत्तर-भारतीय हैं जबकि के 30 प्रतिशत में मराठी, दक्षिण भारतीय, गुजराती और दूसरे अन्य राज्यों के मुसलमान शामिल हैं. मराठी मुसलमान का कुछ वोट शिवसेना के खाते में जाता रहा, लेकिन गैर-मराठी वोटर कांग्रेस और सपा सहित एनसीपी में बंटता रहा है.

मुस्लिम वोटों के कितने दल दावेदार

बीएमसी चुनाव ऐलान के साथ मजबूत पैठ बनाने के प्रयास से मुस्लिम वोटों को अपने-अपने पाले में करने की सियासी कवायद शुरू हो गई है. कांग्रेस से लेकर अजित पवार की एनसीपी ही नहीं बल्कि अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM भी प्रमुख दावेदार है. साथ ही शरद पवार की एनसीपी (एसपी) की नजर भी मुंबई में मुस्लिम वोटों पर टिकी है तो उद्धव ठाकरे से लेकर एकनाथ शिंदे की शिवसेना भी मुस्लिम वोटों पर नजर गढ़ाए हुए है.

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मुस्लिम पर टिका कांग्रेस का दरोमदार

मुंबई के मुस्लिम वोटरों को साथ लाए बिना कांग्रेस बीएमसी पर कब्जा जमाने की अपनी ख्वाहिश पूरी नहीं कर सकेगी. मुंबई में मुस्लिम वोटर की पहली पसंद कांग्रेस रही है. कांग्रेस अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने की हरसंभव कोशिश में जुटी है, जिसके लिए उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के गठबंधन के चलते खुद को महाविकास अघाड़ी से किनारा कर लिया है ताकि मुस्लिम वोट एकमुश्त उसे मिल सके.

नवाब मलिक के सहारे अजित पवार

वहीं, अजित पवार ने नवाब मलिक को बीएमसी चुनाव प्रबंधन की कमान देकर कांग्रेस के मुस्लिम वोटबैंक में सेंधमारी का खास प्लान बनाया है. उत्तर भारतीय मुस्लिमों के सियासी समीकरण को देखते हुए अजित पवार ने बीएमसी चुनाव के लिए बनी कमेटी में जिन मुस्लिमों को जगह दी है, वो सभी उत्तर भारतीय मुस्लिम हैं. चाहे नवाब मलिक हों या फिर जीशान सिद्दीकी, उत्तर भारतीय मुस्लिम चेहरे माने जाते हैं.

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मुंबई के मुसलमानों का दिल जीतने के लिए अजित पवार ने महायुति से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया. बीजेपी और एकनाथ शिंद की शिवसेना नवाब मलिक को लेकर सहज नहीं है. इसीलिए अजित पवार ने बीएमसी का चुनाव अलग लड़ने की स्टैटेजी बनाई है, जिसे लेकर AIMIM सवाल उठा रही है.

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मुस्लिम वोटों के बिखराव का खतरा

मुस्लिम वोटों के सहारे बीएमसी पर कब्जा करने की विपक्ष की रणनीति गठबंधन के अभाव में फेल हो सकती है. कांग्रेस से अजित पवार की एनसीपी तक और सपा से लेकर एआईएमआईएम तक मुस्लिम वोटों पर नजर लगाए हुए हैं. इसके अलावा शरद पवार की एनसीपी से लेकर अजित पवार की एनसीपी तक दावा कर रही हैं. बीजेपी और दोनों ही शिवसेना खेमा भी बीएमसी चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव खेलते रहते हैं.

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राजनीतिक विश्लेषक ने बताया कि जिस तरह सभी दल अलग-अलग किस्मत आजमा हैं, उसके चलते मुस्लिम के वोटों का बंटवारा निश्चित है. कुछ महीनों पहले तक मुस्लिम वोटों के लिए खतरा साबित होने वाली एआईएमआईएम को सबसे ज्यादा संकट के रूप में देखा जा रहा है. ऐसे ही विधानसभा चुनावों में गठबंधन को लेकर अंतिम वक्त में धोखा खाई सपा फिलहाल अकेले किस्मत आजमा रही है.

कांग्रेस द्वारा गठबंधन को ज्यादा तवज्जो न दिए जाने की स्थिति में विपक्षी गठबंधन होना काफी मुश्किल लग रहा है. जाहिर है कि बीएमसी के चुनाव में मुस्लिम वोटों को लेकर जिस तरह से सियासी तानाबाना बुना जा रहा है, उससे कई धड़ों में उनके बिखरने का भी खतरा है. ऐसे में देखना है कि मुस्लिमों की पहली पसंद कौन बनता है?

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