बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ ने कस्टोडियल डेथ (हिरासत में मौत) मामलों में मजिस्ट्रेट की जांच रिपोर्ट के निपटारे के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने में देरी को लेकर महाराष्ट्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. अदालत ने साफ किया कि इस साल जुलाई में सीआईडी द्वारा जारी किया गया परिपत्र (सर्कुलर) किसी भी सूरत में दिशा-निर्देश का विकल्प नहीं हो सकता.
जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस हितेन एस. वेनेगांवकर की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने हलफनामा दाखिल किया जरूर है, लेकिन उसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया कि नीति संबंधी फैसला कब तक लिया जाएगा. अदालत ने टिप्पणी की, “हमें इस सर्कुलर पर गंभीर आपत्ति है. कोई भी सर्कुलर दिशा-निर्देश का रूप नहीं ले सकता… यह विषय राज्य सरकार के नीति-निर्माण से जुड़ा है.”
पीठ ने आगे कहा, “हम गृह मंत्रालय की कार्रवाई का अनंतकाल तक इंतजार नहीं कर सकते.” अदालत ने गृह विभाग के प्रधान सचिव को निर्देश दिया कि वे हलफनामा दाखिल कर बताएं कि आखिर फैसला कब लिया जाएगा.
अंतरिम आदेश में अदालत ने कहा कि 16 जुलाई 2025 को सीआईडी द्वारा जारी परिपत्र पर फिलहाल अमल नहीं किया जाएगा, जब तक इस याचिका पर अंतिम निर्णय नहीं हो जाता.
यह सुनवाई विजयाबाई व्यंकट सूर्यवंशी की याचिका पर हो रही थी. विजयाबाई 35 वर्षीय लॉ स्टूडेंट सोमनाथ सूर्यवंशी की मां हैं, जिनकी मौत 15 दिसंबर 2024 को परभणी जेल में न्यायिक हिरासत के दौरान हुई थी.
सुनवाई के दौरान मामले की जांच कर रही विशेष जांच दल (SIT) ने अदालत को प्रगति रिपोर्ट सौंपी. लेकिन पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि सिर्फ एक पत्र भेजकर सीसीटीवी फुटेज मांगना पर्याप्त नहीं है. अदालत ने टिप्पणी की, “फुटेज को तत्काल जब्त किया जाना चाहिए था या जेल जाकर उसे एकत्र किया जाना चाहिए था.”
लोक अभियोजक ए.बी. गिरसे ने अदालत को आश्वासन दिया कि फुटेज तुरंत सुरक्षित किया जाएगा.
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रकाश अंबेडकर और हितेंद्र गांधी ने दलील दी कि चूंकि कानून में स्पष्ट प्रावधान नहीं है कि मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट दाखिल होने के बाद क्या प्रक्रिया अपनाई जाए, इसलिए स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाना आवश्यक है.
मामले की अगली सुनवाई 10 अक्टूबर को होगी.