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साझेदारी का एक साल लेकिन टसल का अंबार... क्या BJP के साथ चल पाएंगे शिंदे?

देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने शुक्रवार को अपने एक साल का सफर तय कर लिया है. संयोग से इस समय महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों के चुनाव चल रहे हैं, जिसे लेकर त्रिमूर्ति गठबंधन के तीनों प्रमुखों के बीच सियासी टसल जारी है. ऐसे में सबसे ज्यादा चुनौती एकनाथ शिंदे के साथ उन्हें बीजेपी के साथ-साथ उद्धव ठाकरे से भी अपने नेताओं को बचाए रखने की है.

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महाराष्ट्र की महायुति सरकार के त्रिमूर्ती (Photo-PTI)
महाराष्ट्र की महायुति सरकार के त्रिमूर्ती (Photo-PTI)

महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई वाली महायुति सरकार के एक साल का कार्यकाल पूरा हो गया है. पांच दिसंबर 2024 को फडणवीस ने सत्ता की कमान संभाली और एकनाथ शिंदे और अजित पवार डिप्टी सीएम बने. फडणवीस सरकार का एक साल का सफर उतार-चढ़ाव, विवादों और सहयोगियों के साथ मनमुटाव भरा रहा.

सीएम से डिप्टी सीएम बने एकनाथ शिंदे की शिवसेना और बीजेपी के बीच शह-मात का खेल लगातार खेला जा रहा है. मुख्यमंत्री पद दोबारा न मिलने से एकनाथ शिंदे की नाराजगी और फिर मंत्रालय के आवंटन को लेकर खींचतान की शुरुआत हुई और नगर निकाय चुनाव में यह टसल खुलकर सामने आ गई.

त्रिमूर्ति गठबंधन के तीनों प्रमुख कई मुद्दों पर एकमत नहीं हो पाते. इसके कारण कई बार तो शिंदे और पवार को नई दिल्ली जाना पड़ा और बीजेपी के दिग्गज और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर चीजों को सुलझाना पड़ा है. 2022 के एपिसोड के बाद खामोश बैठे उद्धव ठाकरे ने शिंदे कैंप के कई नेताओं की घर वापसी कराकर एकनाथ शिंदे के सामने डबल चुनौती खड़ी कर दी है. 

महायुति के लिए टसल भरा रहा पहला साल

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साल 2022 में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना से बगावत कर बीजेपी के साथ हाथ मिलाया तो उनके सिर मुख्यमंत्री का ताज सजा. दो साल बाद 2024 विधानसभा चुनाव में महायुति ने महाराष्ट्र की 288 सीटों में से 235 सीट जीतकर सत्ता में वापसी की, लेकिन बीजेपी ने एकनाथ शिंदे की जगह फडणवीस को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी. एकनाथ शिंदे और अजित पवार को डिप्टी सीएम से संतोष करना पड़ा.

महाराष्ट्र के सत्ता की बागडोर छोड़ने के बाद से ही शिंदे की बीजेपी के साथ मनमुटाव की खबरें आने लगीं. शिंदे की सेना के मंत्रियों ने कैबिनेट की बैठकों का बहिष्कार कर अपनी नाराजगी को सार्वजनिक कर दिया. निकाय चुनाव के दौरान उन्होंने बीजेपी पर शिवसेना नेताओं को तोड़ने का आरोप लगाया. बीजेपी ने शिंदे के कई नेताओं को अपने साथ मिलाकर निकाय चुनाव में शिवसेना के इलाके में उतार दिया. इससे शिंदे की नाराजगी और भी बढ़ गई.

नासिक और रायगढ़ जिले के संरक्षक मंत्री की नियुक्तियों को लेकर खींचतान दिखी. साल की शुरुआत में दोनों जिलों के संरक्षक मंत्री बनाए गए थे, लेकिन बाद में यह आदेश वापस ले लिया गया. स्थानीय निकाय चुनावों के प्रचार के दौरान फडणवीस और शिंदे की एक ही जिलों में अलग-अलग रैलियों ने मतभेद को उजागर किया. इसके बाद शिंदे का 'रावण का अहंकार' वाला बयान भी भाजपा से ही जोड़ा गया, जिसका बाद में सीएम फडणवीस ने जवाब दिया और कहा कि वह तो राम भक्त हैं.

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शिवसेना के साथ बीजेपी की खींचतान मुख्य रूप से वर्चस्व स्थापित करने के लिए ज्यादा दिखाई दे रही है. स्थानीय निकायों के चुनाव से पहले दोनों दलों के कुछ कार्यकर्ता दल बदल कर सहयोगी दलों में ही जा रहे हैं. इसकी शुरुआत शिंदे के गृह जिले ठाणे में भाजपा से शिवसेना में जाने से हुई, तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र चव्हाण ने भी शिंदे के सांसद पुत्र डॉ. श्रीकांत शिंदे के क्षेत्र में बड़ी सेंध लगा दी, यह बात शिंदे गुट को पसंद नहीं आई.

अजित पवार के साथ चलता रहा मनमुटाव

एनसीपी नेता और डिप्टी सीएम अजित पवार के रिश्ते भी बीजेपी और शिंदे के साथ बहुत ठीक नहीं रहे. अजित पवार के पास वित्त मंत्रालय है, जिसे लेकर बीजेपी और शिवसेना के विधायकों ने सार्वजनिक रूप से फंड आवंटन न करने का आरोप लगाया. इसके अलावा हिंदुत्व के एजेंडे पर भी बीजेपी से अलग अजित पवार स्टैंड लेते रहे.

फडणवीस सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद बीड जिले में सरपंच संतोष देशमुख की अपहरण के बाद नृशंस हत्या कर दी गई, जिसका वीडियो वायरल हुआ और इस घटना ने जातिगत रंग ले लिया. जांच में मंत्री धनंजय मुंडे के सहयोगी वाल्मीक कराड का नाम सामने आया. यह मामला इतना बढ़ गया कि फडणवीस को एनसीपी नेता धनंजय मुंडे से मंत्री पद से इस्तीफा लेना पड़ गया.

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बीजेपी की यह खींचतान पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ ज्यादा दिखाई देती है और अजित पवार के साथ कम, लेकिन कई गंभीर आरोपों से घिरने के कारण सरकार को आलोचना का शिकार अजित पवार के कारण ज्यादा होना पड़ रहा है. बीड में एक सरपंच की हत्या के बाद पवार गुट के मंत्री धनंजय मुंडे के त्यागपत्र का मसला हो, या स्वयं अजित पवार के पुत्र पार्थ पवार द्वारा पुणे की जमीन कौड़ियों के मोल लेने का मामला, सरकार को विपक्ष के निशाने पर रहना पड़ रहा है.

शिंदे के सामने डबल चुनौती खड़ी हो गई है

उद्धव ठाकरे का तख्तापलट कर शिवसेना को अपने हाथ में लेने वाले एकनाथ शिंदे के सामने अब दोहरी चुनौती है. बीजेपी के साथ उनका रिश्ता सियासी पटरी पर लड़खड़ा रहा है. अगर निकाय चुनावों में शिवसेना की ताकत कमजोर हुई तो इसका सीधा असर महायुति सरकार में शिवसेना की अहमियत पर पड़ेगा. हालांकि, शिंदे केंद्र में मोदी सरकार को भी समर्थन दे रहे हैं.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मुंबई चुनावों से पहले नेताओं के दल-बदल का यह सिलसिला और तेज होगा. शिवसेना के तीखे तेवरों के बाद बीजेपी ने ठाणे में बड़ा झटका देने की तैयारी कर ली थी, जिसे एकनाथ शिंदे ने सही समय पर दिल्ली का दौरा करके बचा लिया था. लेकिन अब जिस तरह से उद्धव ठाकरे मुंबई बीएमसी चुनावों से पहले सक्रिय हुए हैं, वह शिंदे के लिए कई चुनौतियाँ खड़ी कर रहे हैं.

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पिछले दो दिनों में शिंदे कैंप के नेताओं और कार्यकर्ताओं को तोड़कर (घर वापसी) करवाकर उद्धव ठाकरे ने हड़कंप मचा दिया है. एकनाथ शिंदे की नेतृत्व वाली शिवसेना के नेता शिरीष काशीनाथ पाटिल, मयूर ठाकुर और संदीप सालवे, अपने कई समर्थकों के साथ, उद्धव ठाकरे की शिवसेना में शामिल हुए हैं. उद्धव ठाकरे ने इन सभी नए सदस्यों का पार्टी में स्वागत किया है.

बीजेपी और अजित पवार की एनसीपी से अच्छे रिश्ते नहीं होने के बीच उद्धव ठाकरे के रिवर्स गियर से यूबीटी में खुशी है, तो वहीं दूसरी ओर सिंधुदुर्ग के बाद अब बीजेपी-शिवसेना के बीच कल्याण डोंबिवली इलाके में तनातनी बढ़ रही है. इसी क्षेत्र से एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे सांसद हैं, तो वहीं बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र चव्हाण का भी यही इलाका है. ऐसे में निचले स्तर पर दोनों पार्टियों के बीच घमासान जारी है. ऐसे में महायुति की त्रिमूर्ति का साथ कब तक बना रहेगा?

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