बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत शुरू की गई कार्यवाही को खारिज कर दिया. यह कार्यवाही कृष्णा और प्रसन्ना चमनकर और उनकी साझेदारी फर्म केएस चमनकर एंटरप्राइजेज के खिलाफ की गई थी. अदालत ने कहा कि जब आरोपियों को मूल अपराध से ही बरी कर दिया गया है, तो मनी लॉन्ड्रिंग का मामला आगे नहीं चल सकता.
महाराष्ट्र सदन घोटाला वर्ष 2005 से जुड़ा है. उस समय महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार थी. नई महाराष्ट्र सदन इमारत बनाने का ठेका दिल्ली में केएस चमनकर एंटरप्राइजेज को दिया गया था. आरोप है कि यह ठेका बिना टेंडर निकाले दिया गया. उस समय छगन भुजबल राज्य के लोक निर्माण विभाग मंत्री थे.
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बाद में जब भाजपा-शिवसेना की सरकार सत्ता में आई और भुजबल की पार्टी विपक्ष में थी, तो उनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए. चमनकर बंधुओं को भी इसमें घसीटा गया, हालांकि उन्हें एसीबी की जांच में बरी कर दिया गया था. भुजबल को भी 2021 में इस मामले से बरी कर दिया गया था.
हाईकोर्ट में सुनवाई और दलीलें
चमनकर बंधुओं ने 2025 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और ईडी द्वारा दाखिल चार्जशीट को निरस्त करने की मांग की. उनके वकील श्रीयश ललित ने दलील दी कि जुलाई 2021 में ट्रायल कोर्ट ने उन्हें एसीबी के केस से बरी कर दिया था. यह आदेश अब अंतिम हो चुका है, ऐसे में ईडी की कार्यवाही जारी रखना कानूनन संभव नहीं है.
वहीं ईडी की वकील मनीषा जागताप ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि पीएमएलए के तहत कार्रवाई स्वतंत्र रूप से चल सकती है, भले ही मूल अपराध को खारिज कर दिया गया हो.
अदालत का फैसला
जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस राजेश एस पाटिल की खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ इस मामले पर सीधा लागू होता है. अदालत ने निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि यदि किसी व्यक्ति को मूल अपराध से अंतिम रूप से बरी कर दिया गया है, तो उस पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप नहीं लगाया जा सकता.
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अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जुलाई 2021 का बरी करने का आदेश चार साल से अधिक समय तक किसी भी पक्ष द्वारा चुनौती नहीं दिया गया, इसलिए यह अंतिम हो चुका है. इसी आधार पर अदालत ने कहा कि ईसीआईआर और चार्जशीट रद्द की जानी चाहिए. नतीजतन, अदालत ने चमनकर बंधुओं की याचिका मंजूर करते हुए ईडी की कार्यवाही समाप्त कर दी.