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फर्जी एनकाउंटर के आरोपों पर सबूत नहीं... बॉम्बे हाईकोर्ट ने खारिज की महिला की याचिका

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता सबूत पेश करने में असफल रहे और मामले को मुआवजा पाने के लिए गढ़ा गया. जांच में साबित हुआ कि शब्बीर मुकदम की अंधेरे में खदान में गिरने से मौत हुई और इसमें एनकाउंटर का कोई आधार नहीं है.

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महिला का आरोप था कि उनके पति का फर्जी एनकाउंटर किया गया था. (Photo: Represetational)
महिला का आरोप था कि उनके पति का फर्जी एनकाउंटर किया गया था. (Photo: Represetational)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महिला की याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उसने आरोप लगाया था कि उसके पति शब्बीर मुकदम की 2018 में रत्नागिरी में राज्य आबकारी विभाग के अधिकारियों ने फर्जी एनकाउंटर में हत्या कर दी थी. कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने समय पर और अपेक्षित तत्परता के साथ काम किया.

जस्टिस रविंद्र वी. घुगे और जस्टिस गौतम ए. अंकहड़ की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता सईदा शब्बीर मुकदम एक भी प्रथम दृष्टया सबूत पेश नहीं कर पाईं और उन्होंने अदालत का रुख ‘अस्वच्छ हाथों’ से किया. अदालत ने माना कि याचिका मुआवजे के लिए गढ़ी गई कहानी पर आधारित है.

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याचिका के अनुसार 16 जनवरी 2018 को शब्बीर मुकदम को आबकारी अधिकारियों ने जवलेथार के पास पीछा किया था और बाद में उनका शव पास की खदान से बरामद हुआ था. याचिकाकर्ता ने अधिकारियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 और 120बी के तहत एफआईआर दर्ज करने और एक करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी.

राज्य का पक्ष और जांच रिपोर्ट

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राज्य की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक रुतुजा अंबेकर ने आरोपों को खारिज किया और कहा कि शब्बीर 26 बॉक्स अवैध शराब ले जा रहे थे. पीछा करने पर वे भागे और अंधेरे में खदान में गिर गए जिससे उनकी मौत हो गई.

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत का कारण सिर की चोट से हुए "हेमरेजिक शॉक" को बताया गया. फॉरेंसिक जांच में शब्बीर के शरीर में शराब की उच्च मात्रा पाई गई.

कोर्ट की टिप्पणियां और फैसला

कोर्ट ने याचिकाकर्ता की शिकायतों और हलफनामों में कई विरोधाभास पाए. साथ ही यह भी बताया कि उन्होंने यह तथ्य छुपाया कि उन पर और उनके पति पर कई निषेधात्मक मामले पहले से दर्ज थे.

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जजों ने कहा कि यह स्पष्ट है कि भागते समय मृतक 40 फीट गहरी खदान में गिर गए और चोट लगने से उनकी मौत हुई. इसमें एनकाउंटर का कोई कारण नहीं था. जांच में भी मौत को दुर्घटना करार दिया गया है.

अंत में अदालत ने कहा कि याचिका केवल मुआवजा पाने के उद्देश्य से दायर की गई थी और इसका कोई मेरिट नहीं है. इसलिए याचिका खारिज की जाती है.

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