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विदेश में बेटे की मौत के बाद एक महीने से था शव का इंतजार, घर पहुंची डेडबॉडी तो किसी और की निकली लाश

झारखंड के पश्चिम सिंहभूम के मनोहरपुर में बूढ़े मां-बाप अपने बेटे अह्लाद नंदन महतो की डेडबॉडी की राह तक रहे थे. लेकिन एक महीने बाद जब डेडबॉडी घर पहुंची तो किसी और की निकली.

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घर पहुंचा शव तो दूसरे की निकली डेडबॉडी
घर पहुंचा शव तो दूसरे की निकली डेडबॉडी

झारखण्ड के पश्चिम सिंहभूम के मनोहरपुर में बूढ़े मां-बाप अपने बेटे अह्लाद नंदन महतो की डेडबॉडी की राह तक रहे थे. ईरान से भारत डेडबॉडी आने में एक महीने का वक्त लग गया. लेकिन जब डेडबॉडी घर आई और ताबूत खोला गया तो घरवालों के पैरों तले जमीन खिसक गयी. क्योंकि ताबूत में रखी डेडबॉडी किसी दूसरे शख्स की थी.

दरअसल झारखंड के मनोहरपुर पहुंची डेडबॉडी यूपी के जौनपुर के युवक शिवेंद्र प्रताप सिंह का निकला. परिजनों का आरोप है कि एक माह के लंबे इंतजार और तमाम जटिल सरकारी प्रक्रियाओं के बाद भी शव बदल जाना यह केवल एक ‘गलती’ नहीं, बल्कि एक अमानवीय क्रूरता है. यह घटना भारत के सिस्टम की पोल खोलती है. जहां गरीबों के साथ सहयोग के नाम पर सिर्फ भद्दा मजाक किया जा रहा है.

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जानकारी के अनुसार मनोहरपुर प्रखंड के तरतरा गांव के अह्लाद नंदन महतो पिछले साल अगस्त महीने में रोजगार के लिए ईरान गए थे. 28 मार्च को उनके परिजनों को सूचना मिली कि शिप हादसे में उनकी मौत हो गई. इसके बाद घर में मातम छा गया और शव लाने की लड़ाई शुरू हुई. परिवार ने भारतीय दूतावास के बताए हर कागजी प्रक्रिया को पूरा किया, हर दरवाजा खटखटाया. लेकिन जब शव आया — तो मनोहरपुर के अह्लाद का नहीं, बल्कि यूपी के शिवेंद्र प्रताप सिंह का निकला.

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एयरपोर्ट पर शव देखने की अनुमति नहीं — आखिर क्यों?

अह्लाद के भाई रघुनंदन महतो का कहना है कि कोलकाता एयरपोर्ट पर शव देखने तक नहीं दिया गया. एक सीलबंद ताबूत उनके हाथ में थमा दिया गया और बस दस्तखत ले लिए गए. क्या एयरपोर्ट अथॉरिटी और दूतावास का काम बस दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर कराना भर रह गया है? शव की पहचान, परिवार की संतुष्टि — क्या ये बातें अब सिस्टम की प्राथमिकता से बाहर हो चुकी हैं?

विदेशों में भारतीयों की मौत भी अब 'फॉर्मेलिटी' बन गई है?

अह्लाद महतो की मौत के बाद जिस तरह उनके शव के साथ खिलवाड़ हुआ है, वह कई सवाल देश के सिस्टम पर उठाता है. "भारतीय दूतावास की ज़िम्मेदारी क्या बस कागज पर खानापूरी करना रह गई है?" और "विदेश मंत्रालय किस मुंह से ‘प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा’ का दावा करता है? परिवार ने कहा कि "यह हमारे दर्द के साथ क्रूर मजाक है."

अह्लाद के भाई रघु नंदन महतो ने कहा कि हम एक माह से भाई के शव का इंतजार कर रहे थे. हर दिन रोते रहे. अब जब शव आया तो वह भी किसी और का है. यह हमारी भावनाओं के साथ क्रूर मजाक है. इतनी बड़ी गलती कैसे हो सकती है? सरकार और दूतावास को इस पर जवाब देना होगा.

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अब शिवेंद्र के परिजनों को सौंपा जाएगा शव

अब मनोहरपुर पहुंचे इस शव को चक्रधरपुर रेलवे अस्पताल के शीतगृह में रखा गया है. शव को अब मृतक शिवेंद्र के परिजनों को सौंपा जाएगा. लेकिन सवाल अब भी कौंध रहे हैं और परिवार के लोग सवाल उठा रहे हैं कि ईरान के शिप हादसे में मारे गए अह्लाद नंदन महतो का शव कहां है?

क्या उसे ढूंढने और उसे मनोहरपुर भेजने के लिए भारतीय दूतावास कोई ठोस कदम उठाएगा? आखिर इस घटना के लिए कौन जिम्मेदार है और क्या उस पर कार्रवाई होगी?

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