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झारखंड: यहां पलाश के फूलों से बने रंगों से खेली जाती है होली

झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में होली की अपनी एक निराली परंपरा है जिसमें पलाश के फूलों से रंग बनाये जाते हैं और पिचकारियों में इन्हें भरकर होली खेली जाती है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

होली का त्यौहार बस आने ही वाला है और बाजार रंगों और गुलालों से अटा पड़ा है. साथ की प्लास्टिक में ढली तरह-तरह की पिचकारियां बच्चों से लेकर बड़ों तक को लुभा रही हैं, लेकिन झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में होली की अपनी एक निराली परंपरा है जिसमें पलाश के फूलों से रंग बनाये जाते हैं और पिचकारियों में इन्हें भरकर होली खेली जाती है.

जंगल में पेड़ों से तोड़कर लाए जाते हैं पलाश के फूल

पारंपरिक होली के लिए ग्रामीण जंगल में पेड़ों पर चढ़कर लाल रंग के पलाश के फूलों को तोड़कर लाते हैं. इस पारंपरिक होली में इस्तेमाल किए जाने वाले रंग इन्हीं पलाश के फूलों से तैयार किए जाते हैं. यही है झारखंड के गांव की पारंपरिक होली. होली के लिए रंग बनाने की ये तैयारी तीन-चार दिन पहले से शुरू हो जाती है.

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रंग तैयार करने के लिए जंगल से लाए गए फूलों को पहले पानी में भिगोया जाता है और फिर पत्थरों पर घिसा जाता है. पूरी तरह घिस जाने के बाद इन्हें कपड़ों में डालकर छान लिया जाता है और इसके बाद तैयार हो जाता है बिलकुल शुद्ध हर्बल रंग. इन रंगों का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता और ये जल्दी छूट भी जाता है.

गर्मियां आने के साथ ही खिल जाते हैं ये फूल

होली के मौके पर झारखंड के जंगलों में प्रकृति अपनी छठा बिखेरती है. गर्मियों के आने के साथ ही जंगल लाल रंग की चादर ओढ़ लेते हैं, दरअसल ये रंग पलाश के लाल रंग के फूलों की वजह से होते है.

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