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'भारत की सेवा करने के लिए पैदा हुआ हूं...', पाकिस्तान भेजने पर HC की रोक के बाद बोला JK का ये पुलिसकर्मी

जम्मू के पुलिसकर्मी इफ्तिखार अली और उनके आठ भाई-बहनों को हाईकोर्ट ने पाकिस्तान निर्वासन से बचाया. अली ने खुद को भारत और J&K पुलिस का सच्चा सिपाही बताया. वे पुश्तैनी रूप से पुंछ के निवासी हैं और उनका मामला जमीन विवाद से जुड़ा है. कोर्ट ने उन्हें राहत देते हुए अगली सुनवाई 20 मई को तय की है.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

जम्मू के पुलिसकर्मी इफ्तिखार अली और उनके आठ भाई-बहनों को हाईकोर्ट ने पाकिस्तान डिपोर्ट करने से राहत दे दी. इफ्तिखार अली ने खुद को भारत और J&K पुलिस का सच्चा सिपाही बताया. 45 वर्षीय पुलिसकर्मी इफ्तखार ने कहा, 'मैं जम्मू-कश्मीर पुलिस और अपने देश भारत की सेवा करने के लिए पैदा हुआ हूं.' 

पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा (LoC) के पास मेंढर उप-मंडल से ताल्लुक रखने वाले अली के लिए वर्दी नौकरी से कहीं बढ़कर है. अली पिछले 27 वर्षों से पुलिस विभाग में सेवा दे रहे हैं और उन्होंने कई साहसिक कार्यों के लिए प्रशंसा और सम्मान भी प्राप्त किया है.

20 मई को अगली सुनवाई
हाल ही में केंद्र सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों को वीजा समाप्ति के तहत भारत छोड़ने का निर्देश दिया था, जिसके तहत अली के परिवार समेत कई लोगों को ‘लीव इंडिया’ नोटिस जारी किया गया था. लेकिन अली और उनके आठ भाई-बहनों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की कि वे पाकिस्तानी नहीं, बल्कि पुश्तैनी रूप से सलवाह गांव के निवासी हैं. कोर्ट ने उनकी बात को सुनते हुए डिपोर्टेशन पर रोक लगा दी और 20 मई को अगली सुनवाई तय की.

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जमीन विवाद को बताया कारण
अली ने बताया कि उनका परिवार करीब 5 हेक्टेयर जमीन का मालिक है और एक जमीनी विवाद में उन्हें साजिशन पाकिस्तान का निवासी बताकर फंसाया गया. उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का धन्यवाद किया और भरोसा जताया कि देश का नेतृत्व उन्हें 'दुश्मन देश' नहीं भेजेगा.

अली ने कहा, 'सबसे दर्दनाक पल तब था जब मुझसे कहा गया कि मैं इस देश का नहीं हूं.' उन्होंने देश के लिए जीने-मरने की कसम दोहराई और कहा कि वह पुलिस की वर्दी को दिल से प्यार करते हैं. उनकी मदद करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सफीर चौधरी ने बताया कि यह परिवार वाकई भारत का नागरिक है और उन्हें मानवता के आधार पर न्याय मिलना चाहिए.

हालांकि, अली और उनके आठ भाई-बहनों मोहम्मद शफीक (60), नशरून अख्तर (56), अकसीर अख्तर (54), मोहम्मद शकूर (52), नसीम अख्तर (50), जुल्फकार अली (49), कोसर परवीन (47) और शाजिया तबस्सुम (42) को पुंछ में उनके गांव वापस लाया गया, जब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के हाई कोर्ट ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली, जिसमें दावा किया गया था कि वे पाकिस्तानी नागरिक नहीं हैं और पीढ़ियों से सलवाह गांव में रह रहे हैं और उनके डिपोर्टेशन पर रोक लगा दी.

अली ने न्यूज एजेंसी को बताया, 'सालवाह के वास्तविक निवासी होने का हमारा सदियों पुराना इतिहास है, हमारे माता-पिता और अन्य पूर्वजों को गांव में दफनाया गया था. 26 अप्रैल को पुंछ के डिप्टी कमिश्नर की ओर से जारी किया गया नोटिस हमारे परिवार के लिए एक झटका था, जिसमें 200 से अधिक सदस्य शामिल हैं, जिनमें से कुछ सेना में सेवारत हैं.' 

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पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहते हैं इफ्तिखार
अली अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहते हैं, जिनकी उम्र छह से 11 साल के बीच है. उन्होंने कहा कि इस स्थिति के बीच उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया और राहत देने के लिए न्यायपालिका का आभार जताया. न्यायमूर्ति राहुल भारती ने अली की याचिका पर सुनवाई के बाद मंगलवार को एक आदेश में कहा, 'याचिकाकर्ताओं को जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश छोड़ने के लिए नहीं कहा गया है या मजबूर नहीं किया गया है. हालांकि, यह निर्देश दूसरे पक्ष की आपत्तियों के अधीन है.' 

आधार शिविर कटरा में तैनात हैं अली
अली मौजूदा समय में माता वैष्णो देवी तीर्थयात्रियों के लिए आधार शिविर कटरा में तैनात हैं. अदालत ने पुंछ के डिप्टी कमिश्नर को याचिकाकर्ताओं की संपत्ति की स्थिति के बारे में हलफनामा पेश करने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई की तारीख 20 मई तय की. 

पांच हेक्टेयर जमीन से जुड़ा है मामला
अली ने दावा किया, 'हमारे पास करीब पांच हेक्टेयर जमीन है और दो हेक्टेयर जमीन मेरे मामा ने अवैध रूप से हड़प ली है, जिनके साथ हमारा लंबे समय से विवाद चल रहा है. डिपोर्टेशन नोटिस उसी विवाद का नतीजा है, क्योंकि वे हमारी जमीन वापस नहीं करना चाहते हैं.' 

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दंपति और उनके नौ बच्चे 1983 में अपने गांव लौट आए
अधिकारियों के अनुसार, अली के पिता फकुर दीन और मां फातिमा बी ने 1965 के युद्ध के दौरान पीओके में जाने के बाद त्रालखल के एक शिविर में लंबा समय बिताया था. दंपति और उनके नौ बच्चे 1983 में अपने गांव लौट आए. उन्होंने कहा कि लंबे संघर्ष के बाद, उन्हें 1997 और 2000 के बीच जम्मू-कश्मीर सरकार की ओर स्थायी निवासी के रूप में स्वीकार किया गया था, लेकिन उनकी राष्ट्रीयता अभी भी केंद्र सरकार के पास लंबित है.

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