हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा चुनाव से शुरू हुई सियासी रार अब सुक्खू सरकार तक पहुंच गई है. चुनाव में पार्टी के 6 विधायकों की बगावत के बाद विक्रमादित्य सिंह के इस्तीफे से प्रदेश की 14 महीने पुरानी सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार पर संशय के बादल छाए हुए हैं. पार्टी ने सरकार बचाने के लिए पर्यवेक्षकों को शिमला भेजा हुआ है, जो उत्तर भारत के इकलौते राज्य को कांग्रेस से फिसलने से बचाने के लिए नाराज विधायकों को मनाने में जुटे हैं.
सरकार के रक्षक के तौर पर कांग्रेस के 'मैं हूं ना' वाले डीके शिवकुमार और उनके साथ भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर्यवेक्षक बनाए गए हैं. वहीं राजीव शुक्ला को प्रभारी नियुक्त किया गया है. बुधवार सुबह हिमाचल विधानसभा के स्पीकर कुलदीप सिंह पठानिया ने बीजेपी के 15 विधायकों को सदन की कार्यवाही से सस्पेंड कर बजट पास कराकर विश्वास मत हासिल कर लिया और इसके बाद विधानसभा अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई. इसके बाद अब सुक्खू सरकार को कम से कम तीन महीने यानी 90 दिनों तक कोई खतरा नहीं है. लेकिन क्या राज्य में ऑल इज वेल है? इसका जवाब है नहीं.
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हिमाचल में अब भी ऑल इज नॉट वेल
कारण, सवाल अब भी बरकार है कि क्या बजट पास करा लेने से सुक्खू सरकार भी पास हो गई है? क्या अब तीन महीने तक संकट सुक्खू सरकार का टल गया? या फिर दल बदल के उस दलदल में कांग्रेस फंसी है, जहां या तो सुक्खू बचेंगे या सरकार. कांग्रेस राज्यसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार के समर्थन में बगावत करने वाले अपने 6 विधायकों की अयोग्यता पर स्पीकर के पास फैसला सुरक्षित रखवा चुकी है. लेकिन कांग्रेस की टेंशन अभी कम नहीं हुई है. कारण, दो वजहों से सुक्खू सरकार पर अब भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं.
बागी विधायकों को मना पाएगी कांग्रेस?
पहली वजह ये है कि राज्यसभा चुनाव में बगावत कर चुके 6 विधायक कांग्रेस की डाल से फुर्र होकर अब कमल के फूल पर मंडराने लगे हैं. इन विधायकों ने हिमाचल विधानसभा में विपक्ष के नेता जयराम ठाकुर से मुलाकात भी की. क्रॉस वोटिंग के बाद हरियाणा के पंचकूला से विधानसभा की कार्यवाही में शामिल होने के लिए वापस शिमला पहुंचे इन विधायकों में से कुछ ने खुलकर यह कहा कि वो अब बीजेपी के साथ हैं. इससे साफ है कि अब इन विधायकों को मनाना पार्टी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है.
विक्रमादित्य के तेवर नरम, इस्तीफा अब भी बरकार
दूसरी वजह विक्रमादित्य सिंह का इस्तीफा है. हालांकि पर्यवेक्षकों के हस्तक्षेप से फिलहाल विक्रमादित्य सिंह के तेवर नरम पड़े हैं. हालांकि उन्होंने ये भी स्पष्ट कर दिया है कि अभी तक उन्होंने इस्तीफा वापस नहीं लिया है लेकिन जब तक हाईकमान की तरफ से कोई ठोस फैसला नहीं लिया जाता, तब तक वह सीएम सुक्खू पर इस्तीफा मंजूर करने का दबाव नहीं बनाएंगे.
विक्रमादित्य सिंह के कहा, ''इस्तीफा वापस लेने और जब तक पर्यवेक्षकों की बातचीत और कार्रवाई पूरी न हो जाए, तब तक इस्तीफे पर जोर न देना, दोनों में अंतर है. हमने पर्यवेक्षकों से बात की है. हमने उन्हें वर्तमान स्थिति के बारे में सूचित कर दिया है. जब तक कोई निर्णय नहीं हो जाता, मैं अपने इस्तीफे पर जोर नहीं दूंगा. अंतिम निर्णय आने वाले समय में लिया जाएगा.''
हिमाचल में बदलेगा नंबर गेम?
कांग्रेस छह विधायकों की बगावत के बाद विक्रमादित्य के इस्तीफे से हिमाचल विधानसभा में नंबरगेम उलझ गया है. हालांकि अभी विक्रमादित्य सिंह का इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ है. इसके चलते सुक्खू सरकार के पास फिलहाल 40 में से 34 विधायकों का समर्थन है. 68 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़ा 35 है. विक्रमादित्य को छोड़ दें तो कांग्रेस के 6 विधायकों और 3 निर्दलीय विधायकों ने बागी तेवर अख्तियार करने के बाद सूक्खू सरकार की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं.
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विधायक अयोग्य हुए तो कैसे बदल जाएगा नंबर गेम?
राज्य में स्पीकर कांग्रेस का है. ऐसे में व्हिप के उल्लंघन मामले में इन विधायकों के खिलाफ कार्यवाही जल्द नतीजे पर पहुंच सकती है. अगर ऐसा होता है कि छह बागी विधायकों को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है तो हिमाचल विधानसभा का नंबरगेम बदल जाएगा. 68 सदस्यों वाली विधानसभा की स्ट्रेंथ 62 पर आ जाएगी और ऐसे में बहुमत का आंकड़ा भी 32 पर आ जाएगा. विक्रमादित्य को हटा दें तब भी कांग्रेस के पास 33 विधायकों का समर्थन फिलहाल है. इससे सुक्खू सरकार कम से रिक्त छह सीटों पर उपचुनाव के नतीजे आने तक सुरक्षित हो जाएगी.