हरियाणा के पंचकूला की सामूहिक आत्महत्या की घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. इस घटना ने न सिर्फ कर्ज के बोझ की भयावहता को उजागर किया बल्कि रिश्तों और समाज की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर दिए. सोमवार देर रात सेक्टर-27 में एक कार के अंदर देहरादून के मित्तल परिवार के सात लोगों ने जहर खाकर सामूहिक आत्महत्या कर ली. मृतकों में कारोबारी प्रवीण मित्तल, उनकी पत्नी, माता-पिता और तीन बच्चे शामिल हैं.
पुलिस को कार से एक सुसाइड नोट मिला जिसमें प्रवीण ने 15-20 करोड़ के कर्ज और आर्थिक तंगी को अपनी मौत की वजह बताया. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अगर परिवार को सही समय पर भावनात्मक सहारा और मदद मिली होती तो शायद यह त्रासदी टल सकती थी. ये सही समय है जब हम सोचें कि समाज के तौर पर हम संवेदनशील हैं या नहीं.
कर्ज ने बर्बाद किया एक खुशहाल परिवार
प्रवीण मित्तल कभी स्क्रैप के बड़े कारोबारी थे. हिमाचल के बद्दी में उनकी फैक्ट्री थी, लेकिन बढ़ते कर्ज के चलते बैंक ने उनकी फैक्ट्री, दो फ्लैट और गाड़ियां तक जब्त कर लीं. हालत ऐसी हो गई कि प्रवीण को टैक्सी चलानी पड़ी. परिवार पिछले पांच सालों से गुमनामी में जी रहा था. सुसाइड नोट में प्रवीण ने लिखा, 'करोड़ों के कर्ज में डूबने के बाद उन्हें कोई सहारा नहीं मिला. ना ही बैंकों से राहत, ना ही रिश्तेदारों से मदद. हमने बहुत कोशिश की, बहुत हाथ-पैर मारे, लेकिन कहीं से भी कोई उम्मीद की किरण नहीं मिली.'
रिश्तों और समाज की भूमिका पर सवाल
इस घटना ने रिश्तों और समाज की भूमिका को कठघरे में खड़ा कर दिया है. विशेषज्ञों का कहना है कि कर्ज का बोझ अकेला इस त्रासदी की वजह नहीं बल्कि भावनात्मक और सामाजिक सहारे की कमी ने भी इस परिवार को टूटने पर मजबूर किया.
फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन कहते हैं कि ये घटना समाज के लिए एक चेतावनी है. कर्ज और आर्थिक तंगी ने इस परिवार को तोड़ा, लेकिन अगर रिश्तेदारों और समाज ने सही समय पर हाथ बढ़ाया होता तो शायद यह परिवार बिखरने से बच जाता. हमारे समाज में आज भी आर्थिक तंगी को कलंक माना जाता है जिसके चलते लोग अपनी परेशानियां छिपाते हैं. जरूरत है कि हम संवेदनशील बनें और ऐसे परिवारों को अकेला न छोड़ें.
मनोवैज्ञानिक डॉ. विधि एम. पिलनिया इस घटना को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी से जोड़ती हैं. वो कहती हैं कि कर्ज की धमकियां और आर्थिक दबाव ने इस परिवार को गहरे अवसाद में धकेल दिया. अगर परिवार और दोस्तों ने उनका मनोबल बढ़ाया होता, उनकी बात सुनी होती तो वे इस हद तक नहीं टूटते. हमें यह समझना होगा कि आर्थिक संकट में भावनात्मक सहारा सबसे बड़ा हथियार है. अकेलापन और हताशा इंसान को अक्सर गलत फैसले लेने पर मजबूर करती है.
मनोरोग विश्लेषक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी जो लंबे समय से 'Say Yes To Life' अभियान के जरिए आत्महत्या रोकथाम पर काम कर रहे हैं, कहते हैं कि यह घटना दुखद है लेकिन इससे सबक लेना जरूरी है. परिवार का सपोर्ट सिस्टम मजबूत होना चाहिए. अगर प्रवीण के परिवार को काउंसलिंग या भावनात्मक मदद मिली होती तो वे हिम्मत नहीं हारते. हमें समाज में ऐसी व्यवस्था बनानी होगी, जहां लोग अपनी परेशानियां खुलकर बता सकें और उन्हें मदद मिले. आज जिस तरह लोग बड़े शहरों में अलग थलग पड़ गए हैं, वो स्वस्थ समाज की निशानी नहीं है. एक स्वस्थ समाज में रहने वाला व्यक्ति ही मानसिक रूप से भी मजबूत बनता है.
आत्महत्या रोकथाम के लिए क्या करें?
विशेषज्ञों का कहना है कि आत्महत्या को रोका जा सकता है बशर्ते सही समय पर सही कदम उठाए जाएं. डॉ. त्रिवेदी सुझाव देते हैं कि प्रतियोगी परीक्षार्थियों, नौकरी की तलाश में शहरों में रहने वाले युवाओं और आर्थिक तंगी से जूझ रहे लोगों का समय-समय पर मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण होना चाहिए. उन्हें टेली-साइकियाट्री और काउंसलिंग सेंटर बढ़ाने की जरूरत है. वहीं डॉ. पिलनिया कहती हैं कि अगर कोई अपनी परेशानी बताए तो उसे हल्के में न लें. उसकी बात सुनें, उसे अकेला न छोड़ें. डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति को परिवार और दोस्तों के साथ की सख्त जरूरत होती है.
समाज को जागना होगा
डॉ हंसराज कहते हैं कि पंचकूला की यह घटना एक कड़वी सच्चाई सामने लाती है कि आर्थिक तंगी और कर्ज का बोझ किसी भी परिवार को तोड़ सकता है. अगर रिश्ते और समाज साथ दें तो ऐसी त्रासदियों को रोका जा सकता है. प्रवीण मित्तल का परिवार आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी कहानी हमें सिखाती है कि जिंदगी से हार मानना समाधान नहीं है. जरूरत है संवेदनशीलता, जागरूकता और मजबूत सपोर्ट सिस्टम की ताकि कोई और परिवार इस तरह टूटने से बच सके.
(अगर आपके मन में आत्महत्या के विचार आ रहे हैं या आप किसी अपने के लिए चिंतित हैं तो तुरंत मदद लें. भारत सरकार की जीवनसाथी हेल्पलाइन 1800-233-3330 या टेलि मानस हेल्पलाइन नंबर 14416 और 1800-91-44116 पर संपर्क करें.)