गुजरात के राज्यपाल ओपी कोहली ने हायर एजुकेशन काउंसिल बिल को मंजूरी दे दी है. विधेयक को पिछले साल राज्य की पूर्व शिक्षामंत्री वासुबेन त्रिवेदी ने विधानसभा में पेश किया था. उस वक्त आनंदीबेन पटेल मुख्यमंत्री थीं.
क्यों विवादों में है विधेयक?
बिल मार्च 2016 के बजट सत्र के आखिरी दिन पारित हुआ. विधानसभा स्पीकर ने उस दिन विपक्ष के सारे सदस्यों को निलंबित कर दिया था. लेकिन बिल पर विवाद सिर्फ इस वजह से नहीं है. इसके प्रावधानों को उच्च शिक्षा संस्थानों की स्वायत्ता पर हमला माना जा रहा है.
इन प्रावधानों के लागू होने के बाद राज्य के सभी विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा काउंसिल के तहत आ जाएंगे. काउंसिल सीएम की अध्यक्षता में काम करेगी. मुख्यमंत्री के अलावा राज्य के शिक्षामंत्री और राज्य की यूनिवर्सिटीज के पांच उप-कुलपति काउंसिल के सदस्य होंगे.
माना जा रहा है कि बिल के अमल में आने के बाद उप-कुलपतियों के अधिकार घटेंगे और राज्य सरकार को विश्वविद्यालयों के संचालन में हस्तक्षेप का मौका मिलेगा. बिल के मुताबिक यूनिवर्सिटीज का सिलेबस तय करने में भी आखिरी फैसला राज्य सरकार ही लेगी. साथ ही सरकार गुजरात के विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों का तबादला देश के किसी भी कोने में कर सकती है.
सरकार की सफाई
सरकार के मुताबिक बिल का मकसद उच्च शिक्षा संस्थानों के शैक्षणिक, प्रशासनिक और आर्थिक कामों की निगरानी करना है और उनके प्रदर्शन में सुधार के लिए सुझाव देना है. बिल के मुताबिक सरकार के निर्देश विश्वविद्यालयों को संचालित करने वाले मौजूदा कानूनों की जगह लेंगे. इतना ही नहीं, कॉलेज स्टाफ की प्रोमोशन के दिशा-निर्देश भी राज्य की सरकार ही तय करेगी.
छात्रों, अध्यापकों का विरोध
गुजरात के शिक्षाविदों के अलावा छात्र संगठन भी बिल का विरोध कर रहे हैं. बिल के विधानसभा में पास होने के बाद ही गुजरात विश्वविद्यालय समेत दूसरे उच्च शिक्षा संस्थानों ने भी इसे वापस लेने की मांग की थी. लेकिन राज्यपाल ने इन सभी ऐतराजों को दरकिनार कर दिया.
शिक्षाविद् प्रोफेसर हेमंत कुमार मानते हैं कि बिल के जरिये राज्य सरकार की मंशा साफ होती है. उनका आरोप है कि सरकार को अब नीति आधारित शैक्षणिक संस्थानों की जरुरत नहीं रह गई है.
आपत्तियों पर गौर करेगी केंद्र सरकार
दूसरी तरफ, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कहना है कि उन्होंने बिल से जुड़ी जानकारी राज्य सरकार से मांगी है. उन्होंने माना कि संविधान में राज्य सरकारों को ऐसे कानून बनाने की इजाजत दी गई है और इसमें केंद्र सरकार की भूमिका सीमित होती है. लेकिन फिर भी केंद्र सरकार इस मामले में टीचर्स और छात्रों की आपत्तियों पर गौर करेगी.