नए श्रम संहिताएं यानी लेबर कोड्स लागू होने के साथ ही देश में अलग-ही बहस तेज़ हो गई है. बहस ये कि ये कानून मजदूरों और कामगारों के अधिकारों को कमजोर करते हैं या फिर 'विकसित भारत' की दिशा में एक जरूरी सुधार हैं.
दिल्ली में सोसायटी ऑफ इंडियन लॉ फर्म्स (SILF) और CII की ओर से आयोजित एक सम्मेलन में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस मनमोहन ने इन कानूनों को लेकर सतर्क रहने की जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि नियमों का सही तरीके से बनना और जमीनी स्तर पर मजदूरों की सुरक्षा सुनिश्चित होना बेहद जरूरी है.
'कागजों में सिमट कर न रह जाएं कानून'
जस्टिस मनमोहन ने गिग वर्कर्स और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाने वाले प्रावधानों का स्वागत किया.उन्होंने ये भी कहा कि कई लाइसेंसों की जटिलता दूर करना एक सकारात्मक कदम है. हालांकि उन्होंने साफ किया कि अब असली जिम्मेदारी राज्यों की है, जिन्हें इन कानूनों को लागू करने के लिए नियम बनाने और जरूरी ढांचा तैयार करना होगा.
उन्होंने कहा, 'इन चारों श्रम संहिताओं की असली परीक्षा इनके लागू होने में है.अगर राज्य एक साथ आगे नहीं बढ़े, तो ये कानून सिर्फ कागजों तक सीमित रह जाएंगे.' जस्टिस मनमोहन ने आगे कहा कि कानूनों को समय के साथ बदलना जरूरी है. 'कानूनों को लगातार अपडेट और रिफ्रेश किया जाना चाहिए ताकि वे समय की जरूरतों के साथ चल सकें.'
वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्विस का तीखा हमला
तीन दशकों से श्रमिक संगठनों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्विस ने सम्मेलन में नए श्रम कानूनों की तीखी आलोचना की. उन्होंने कहा कि ये कानून 'उद्योगपतियों की मांगों के मुताबिक बनाए गए हैं' और इसका मकसद 'गुलामों की पीठ पर अर्थव्यवस्था खड़ी करना' है.
गोंसाल्विस का आरोप था कि नए कानूनों ने श्रमिकों से कई बुनियादी सुरक्षा अधिकार छीन लिए हैं, खासकर स्वास्थ्य और सुरक्षा निरीक्षण जैसे अहम प्रावधान जो कार्यस्थलों पर मजदूरों की जान की रक्षा करते हैं. उन्होंने कहा, 'श्रमिकों से लगभग सारी कानूनी सुरक्षा छीन ली गई है.और उसके बदले ये दिखावा किया जा रहा है कि अब उन्हें किसी और तरीके से सुरक्षित किया जाएगा.'
सम्मेलन में क्या हुआ तय?
एक दिवसीय इस सम्मेलन में वकीलों, लॉ फर्म्स, उद्योग प्रतिनिधियों और ट्रेड यूनियन नेताओं ने हिस्सा लिया.चारों नए श्रम कानूनों के हर पहलू पर चर्चा की गई. SILF के चेयरमैन और वरिष्ठ अधिवक्ता ललित भसीन ने इंडिया टुडे से बातचीत में बताया कि सम्मेलन के अंत में एक व्हाइट पेपर तैयार किया जाएगा.इसमें सभी पक्षों की चिंताओं और तर्कों को शामिल किया जाएगा और इसे सरकार, वकीलों और उद्योग जगत के नेताओं के साथ साझा किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि अभी तक इन कानूनों को लागू करने के नियम अधिसूचित नहीं हुए हैं, ऐसे में ये सम्मेलन सभी हितधारकों को एक मंच पर लाकर ये समझने का मौका देता है कि कानूनों को जमीनी स्तर पर कैसे लागू किया जाए.
सरकार का पक्ष: 'संतुलन जरूरी'
सम्मेलन में उठी आलोचनाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए विधि एवं न्याय मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव मनोज कुमार ने कहा कि हर देश के अपने लक्ष्य, हित और ज़िम्मेदारियां होती हैं. उन्होंने कॉलिन गोंसाल्विस की उस दलील पर जवाब दिया जिसमें उन्होंने ब्रिटेन और जर्मनी के सख्त श्रम कानूनों का उदाहरण दिया था.मनोज कुमार ने कहा कि 'उत्तर और दक्षिण के देश श्रम, पर्यावरण और मानवाधिकार जैसे मुद्दों को अलग-अलग नजरिए से देखते हैं.'
उन्होंने कहा, 'संविधान के 76वें वर्ष में ये सुधार आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय और संवैधानिक शासन के संगम पर खड़ा है.नए श्रम कानूनों का मकसद यह है कि आर्थिक लचीलापन और मज़दूरों की सुरक्षा एक-दूसरे के विरोधी न हों, बल्कि एक-दूसरे के पूरक बनें.'
'कानून बनना पहला कदम है'
मनोज कुमार ने ये भी साफ किया कि नए श्रम कानूनों का लागू होना केवल पहला कदम है. उन्होंने कहा, 'ये एक समवर्ती विषय है और राज्यों से भी कई अहम कदमों की उम्मीद है, जिनमें नियम बनाना शामिल है.सभी हितधारकों के साथ मिलकर एक सहयोगी माहौल बनाना जरूरी होगा.पूरे देश में एक समान श्रम व्यवस्था का सपना तभी पूरा हो सकता है जब राज्यों में नियम बनाने की प्रक्रिया एक साथ आगे बढ़े.'
उद्घाटन सत्र के बाद इंडिया टुडे से बातचीत में उन्होंने ये भी कहा कि राज्यों को इन कानूनों को लागू करने के लिए अपने-अपने नियम तैयार करने होंगे और इसमें समय लगेगा.