दिल्ली नगर निगम के 12 वार्ड क्षेत्रों में उपचुनाव हो रहे हैं, जो बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच त्रिकोणीय लड़ाई मानी जा रही है. ऐसे में 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में लौटी बीजेपी ने एमसीडी उपचुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है. मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने खुद मोर्चा संभाल रखा है और बीजेपी प्रत्याशियों को जिताने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं.
वहीं, आम आदमी पार्टी के बड़े नेता एमसीडी उपचुनाव से दूरी बनाए हुए हैं. आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से लेकर मनीष सिसोदिया, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष आतिशी, राज्यसभा सांसद संजय सिंह और राघव चड्ढा प्रचार करते नजर नहीं आए हैं.
दिल्ली एमसीडी उपचुनाव में आम आदमी पार्टी को जिताने का बीड़ा प्रदेश अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज, दुर्गेश पाठक सहित प्रदेश के नेताओं ने संभाल रखा है. भारद्वाज और पाठक हर रोज पांच से सात जनसभाएं कर रहे हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी की टॉप लीडरशिप के न उतरने से कई सवाल खड़े हो गए हैं.
दिल्ली में 'आप' के लिए कितना अहम है उपचुनाव?
दिल्ली एमसीडी की जिन 12 पार्षद सीटों पर उपचुनाव के लिए 30 नवंबर को वोटिंग है, उनमें से 9 सीटें बीजेपी के पास थीं तो 3 सीटें आम आदमी पार्टी ने 2022 के एमसीडी चुनाव में जीती थीं. चांदनी महल से आले मोहम्मद इकबाल, चांदनी चौक से पुरनदीप सिंह सहनी और दिचाऊं कलां से प्रेम कुमार चौहान आम आदमी पार्टी से पार्षद चुने गए थे. इसके बाद 2025 के विधानसभा चुनाव में तीनों पार्षद अपने-अपने इलाके से आम आदमी पार्टी के टिकट पर विधायक बन गए. इसके चलते ये सीटें रिक्त हो गई हैं और अब उपचुनाव हो रहे हैं.
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चांदनी महल, चांदनी चौक और दिचाऊं कलां वार्ड के अलावा दक्षिणपुरी, संगम विहार-ए, ग्रेटर कैलाश, विनोद नगर, शालीमार बाग-बी, अशोक विहार, द्वारका-बी, मुंडका और नारायणा पार्षद सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं. शालीमार बाग-बी से पार्षद रहीं रेखा गुप्ता अब दिल्ली की मुख्यमंत्री बन चुकी हैं, जबकि द्वारका-बी सीट से पार्षद रहीं कमलजीत सहरावत पश्चिमी दिल्ली सीट से बीजेपी की सांसद हैं.
दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद एमसीडी की 12 पार्षद सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, जितने बीजेपी के लिए अहम हैं, उससे कहीं ज्यादा आम आदमी पार्टी के लिए हैं. बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता कमान संभाल रखी है, लेकिन आम आदमी पार्टी की तरफ से कोई बड़ा नेता अभी तक प्रचार करने दिल्ली में नहीं उतरा है.
एमसीडी उपचुनाव से केजरीवाल-सिसोदिया दूर
आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया अभी तक उपचुनाव में किसी भी सीट पर प्रचार करने नहीं उतरे हैं. केजरीवाल और मनीष दोनों ही पंजाब में हैं. पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया 2013 से लेकर 2025 तक जिस पटपड़गंज विधानसभा सीट से लगातार तीन बार विधायक रहे, उसी क्षेत्र के विनोद नगर वार्ड में उपचुनाव हो रहे हैं, लेकिन अभी तक प्रचार करने नहीं उतरे.
सिसोदिया की तरह राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा भी जिस राजेंद्र नगर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने थे, उसी राजेंद्र नगर के नारायणा की पार्षद सीट पर उपचुनाव हो रहा है. इसके बावजूद राघव चड्ढा अपने पुराने विधानसभा क्षेत्र के वार्ड में सक्रिय नहीं हुए। बताया जा रहा है कि राघव चड्ढा अपने नवजात बच्चे की देखभाल में लगे हैं.
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राज्यसभा सांसद और आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेता संजय सिंह एमसीडी चुनाव प्रचार करने के बजाय इन दिनों उत्तर प्रदेश में 'रोजगार दो, सामाजिक न्याय दो' यात्रा निकाल रहे हैं. इसके अलावा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष आतिशी भी एमसीडी उपचुनाव से दूरी बनाए हुए हैं. आतिशी के कालकाजी विधानसभा से सटी हुई ग्रेटर कैलाश की पार्षद सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं। इसके बाद भी आतिशी चुनाव प्रचार में अभी तक नहीं उतरीं.
सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं टॉप लीडरशिप
एमसीडी चुनाव प्रचार में उतरने की बात तो दूर, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, आतिशी, संजय सिंह और राघव चड्ढा जैसे टॉप नेताओं की सोशल मीडिया के जरिए भी एमसीडी चुनाव की कोई भी पोस्ट नहीं दिख रही है. न ही फेसबुक और न ही 'एक्स' हैंडल पर एमसीडी उपचुनाव को लेकर कोई पोस्ट की गई है. दिल्ली में 12 वार्डों में आम आदमी पार्टी ने अपने प्रत्याशी उतार रखे हैं, लेकिन उन्हें वोट देने की अभी तक कोई भी अपील इन टॉप नेताओं के द्वारा नहीं की गई.
शालीमार बाग वार्ड के उपचुनाव का जिम्मा संभाल रहे आप तिमारपुर विधानसभा क्षेत्र के संगठन मंत्री कुमार गौतम कहते हैं कि एमसीडी का चुनाव पार्टी संगठन के जरिए लड़ रही है. संगठन से जुड़े हुए नेताओं को पार्टी ने उपचुनाव में प्रत्याशी भी बनाया है. ये लोकल स्तर का चुनाव है, उसे हम स्थानीय नेताओं के जरिए लड़ रहे हैं. दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष से लेकर तमाम विधायक और नेता प्रचार कर रहे हैं, अभी वोटिंग में पांच दिन का समय है. ऐसे में आखिरी समय में हमारी लीडरशिप के कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं.
2021 में केजरीवाल-सिसोदिया ने झोंकी ताकत
2025 के विधानसभा चुनाव के बाद जिस तरह से एमसीडी की 12 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उसी तरह से 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद 2021 में दिल्ली की पांच एमसीडी सीटों पर उपचुनाव हुए थे. ये पांच सीटें 'आप' के चार पार्षदों के विधायक बनने और एक भाजपा पार्षद के निधन के कारण खाली हुई थीं। ऐसे में 2021 के उपचुनाव में अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया सहित आम आदमी पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता सक्रिय रहे थे.

केजरीवाल और सिसोदिया ने उपचुनाव में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों के लिए प्रचार और रोड शो किए थे. इनमें चार सीट पर आम आदमी पार्टी और एक सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. अब जब 12 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं तो केजरीवाल से लेकर मनीष सिसोदिया, संजय सिंह सहित तमाम नेता गायब हैं, 'आप' के प्रत्याशियों के लिए प्रचार करते टॉप नेताओं में सौरभ भारद्वाज और दुर्गेश पाठक ही नजर आ रहे हैं.
पंजाब की सत्ता को बचाए रखने की चुनौती
दिल्ली की राजनीति को लंबे समय से कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार नवनीत शरण कहते हैं कि विधानसभा चुनाव हारने के बाद से अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से दूरी बना ली है और उनका फोकस पंजाब पर है. दिल्ली चुनाव और अब बिहार चुनाव में जिस तरह बीजेपी की लहर दिखी है, उसी के साये में एमसीडी की 12 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. इसके चलते भी केजरीवाल से लेकर सिसोदिया तक दूरी बनाए रखने की रणनीति अपनाई है, लेकिन इससे पार्टी के प्रत्याशियों को झटका लगा है.
नवनीत शरण कहते हैं कि केजरीवाल और सिसोदिया जैसे नेताओं के उतरने के बाद भी आम आदमी पार्टी एमसीडी उपचुनाव जीत नहीं पाती है तो उसका सीधा असर केजरीवाल की राजनीति पर पड़ेगा। इसीलिए आम आदमी पार्टी की टॉप लीडरशिप ने यह जिम्मेदारी दिल्ली के नेताओं को सौंप रखी है ताकि जीत-हार को उनसे न जोड़ा जा सके.
उपचुनाव से दूरी रणनीति या मजबूरी
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार आनंद राणा कहते हैं कि एमसीडी उपचुनाव में असल परीक्षा बीजेपी की होनी है. 27 साल बाद बीजेपी सत्ता में आई है और रेखा गुप्ता सरकार का 6 महीने से भी ज्यादा का कार्यकाल हो गया है। इस तरह रेखा गुप्ता के कामकाज का चुनाव है, लेकिन आम आदमी पार्टी के लिए भी उतनी ही अहमियत रखता है. केजरीवाल, सिसोदिया और संजय सिंह जैसे नेताओं ने दूरी बनाने के पीछे वजह यही है कि फायदा कम और घाटा ज्यादा है. केजरीवाल जानते हैं कि अगर चुनाव प्रचार में उतरने के बाद भी पार्टी को नहीं जिता पाए तो उनकी राष्ट्रीय छवि को झटका लगेगा, उसका असर दूसरे राज्यों में आम आदमी पार्टी की सियासत पर पड़ेगा.

राणा कहते हैं उपचुनाव में अधिकतर सत्ता के प्रभाव वाला नतीजा माना जाता है, इसलिए कई विपक्षी दल उपचुनाव से बचते भी हैं. केजरीवाल इस बात को समझ रहे हैं कि एमसीडी चुनाव जीतकर भी बहुत कुछ नहीं कर सकते हैं. ऐसे में उनके लिए पंजाब की सत्ता को बचाए रखना ज्यादा अहम है, जहां 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं. दिल्ली के बाद पंजाब की भी सत्ता आम आदमी पार्टी के हाथों से निकल गई तो फिर सियासी वजूद ही खत्म हो जाएगा. इसीलिए दिल्ली चुनाव प्रचार से दूरी बनाए हुए हैं ताकि किसी तरह से उनके साथ उपचुनाव नतीजे को न जोड़ा जा सके.
दिल्ली की हार के बाद से केजरीवाल दूर
दिल्ली विधानसभा चुनाव हारने के तुरंत बाद केजरीवाल ने राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) की बैठक बुलाने में ज़्यादा समय नहीं गंवाया था. साल 2027 के आखिर तक का रोडमैप तैयार किया, ज़िम्मेदारिया सौंपीं और फेरबदल किए गए. पंजाब, गोवा और गुजरात में 2027 के विधानसभा चुनावों पर खास फोकस कर रखा है. ऐसे में अरविंद केजरीवाल पंजाब का किला गंवाने का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं। इसीलिए केजरीवाल ने पंजाब में डेरा जमा रखा है. केजरीवाल ने पंजाब में पार्टी संगठन को धार देने का काम किया है और सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं.
गुरु तेग बहादुर जी की 350वीं शहीदी वर्षगांठ पर अरविंद केजरीवाल अपने पूरे परिवार सहित श्री आनंदपुर साहिब में माथा टेकते नजर आए. इस दौरान राज्य की तरक्की और पंजाबियों की खुशहाली के लिए अरदास भी की. इस तरह सिख समुदाय को साधते हुए नजर आए. इससे समझा जा सकता है कि केजरीवाल के लिए दिल्ली से कहीं ज्यादा पंजाब में रहना सियासी रूप से मुफीद लग रहा है.