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Indian Organ Donation Day Special: सीने में धड़क रहा हो दूसरे का दिल, तो कैसी होती है जिंदगी...

इंडियन ऑर्गन डोनेशन डे आज है. अंगदान का महत्व जानने के बावजूद आज भी बहुत कम लोग ऑर्गन डोनेट करते हैं. क्या आपने सोचा है कि किसी व्यक्त‍ि को दूसरे का अंग खासकर हार्ट ट्रांसप्लांट किस कदर बदलकर रख देता है. उसकी सोच, जीवनशैली से लेकर सबकुछ बदल जाता है. इस भावना को समझने के लिए आप बागपत (गांव धनौरा) के राहुल प्रजापति की कहानी उन्हीं की जुबानी पढ़‍िए. ये किसी को भी ऑर्गन डोनेशन के लिए प्रेरित करने को काफी है.

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2018 में राहुल ने कराया था हार्ट ट्रांसप्लांट (Photo: Special Permission)
2018 में राहुल ने कराया था हार्ट ट्रांसप्लांट (Photo: Special Permission)

मेरे हार्ट ट्रांसप्लांट को फरवरी से पांच साल हो गए. इस एक ट्रांसप्लांट से मुझे नई जिंदगी मिली है. मैं अब सोचता हूं कि मेरी जिंदगी ईश्वर का तोहफा है. हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद से मेरी सोच पूरी तरह सकारात्मक हो गई है. एक अहसास हर वक्त मेरे साथ रहता है कि जिसका हार्ट मुझे मिला हुआ है वो हमेशा मेरे साथ है.

मैं जिस किसी भी खेल या प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेता हूं तो मन में आता है कि भले ही मैं अपने लिये नहीं या अपनी फैमिली के लिए नहीं जीत पाया तो कोई बात नहीं. मुझे उसके लिए जीतना है जिसका दिल मेरे भीतर धड़क रहा है. मैं हमेशा खुश रहता हूं ताकि यह दिल कभी न दुखे क्योंकि वो मेरे पास किसी और की अमानत है. अपने जीते-जी इसे खुश रखने की कोश‍िश करूंगा. यहां मेरी कहानी से आप समझेंगे कि मैंने क्या झेला है और आज मैं जिंदा हूं तो उसकी वजह कौन है.... 

12वीं की बोर्ड परीक्षाएं

मेरी कहानी साल 2012 से शुरू होती है. मेरे 12वीं के बोर्ड एग्जाम चल रहे थे. एक दिन अचानक मुझे बुखार आ गया. साथ में खांसी भी आ रही थी. मेरा तीसरा पेपर था, मैंने एक नॉर्मल क्लीनिक में जाकर डॉक्टर को दिखाया और दवा ले ली. लेकिन, मेरी खांसी नहीं जा रही थी. फिर भी मैं बोर्ड परीक्षा देता रहा.

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एग्जाम पूरे हो गए तो मैं बागपत में अपने गांव चला गया. वहां दादी ने घरेलू नुस्खे करने शुरू कर दिए. देसी हल्दी से लेकर लौंग-काली मिर्च सब देकर देख लिया, खांसी नहीं गई. घरवाले मुझे बड़ौत ले गए, यहां डॉ प्रदीप जैन (एमडी मेडिसिन) को दिखाया. डॉक्टर ने मुझे तीन दिन की दवा दी. खांसी आते-आते एक महीना बीत चुका था. मुझे बस यही लगता था कि कोई ऐसी दवा मिल जाए जिससे ये खांसी चली जाए और मैं चैन से सो सकूं.

...पता चली दिल की बीमारी 
मुझे कहां पता था कि 'चैन' शब्द ही मेरी जिंदगी से जाने वाला है. वही हुआ भी तीन दिन के ट्रीटमेंट के बाद भी खांसी टस से मस नहीं हुई तो मैं दोबारा डॉक्टर के पास गया. डॉक्टर ने मुझसे कुछ जांच कराने को कहा. जांच के बाद सामने आया कि मुझे DCMP की समस्या है. इसे dilated cardiomyopathy कहते हैं जो हार्ट से जुड़ी बड़ी समस्या होती है. मैं चूंकि दिल्ली में रहता था तो मुझे वहां से एम्स के लिए रेफर कर दिया. एम्स में डॉक्टर संदीप सेठ के अंडर में आकर अपना इलाज कराने लगा.

मेरे खाने से नमक हटा दिया गया. अब धीरे-धीरे मुझे सांस लेने में दिक्कत होने लगी. थोड़ी देर वॉक करने पर मेरी सांसें तेज चलने लगती थीं. मुझे डॉक्टर ने सलाह दी कि मैं रात में 45 डिग्री पोजिशन में ही सोऊं, सीधा सोने पर भी मुझे हार्ट अटैक आने का खतरा था. मुझे सोते-जागते उठते-बैठते हार्ट अटैक का डर सताता रहता था. जीवन में अचानक यह क्या हो गया? मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? कहीं मुझे कुछ हो न जाए? ऐसे तमाम सवाल मुझे हर वक्त सताते रहते थे. धीरे-धीरे जिंदगी की मुश्किलों ने मेरा स्वभाव भी बदल दिया था. बीमारी के कारण लोगों से कम मिलना-जुलना, कम से कम बातें करना और खाने में भी तमाम परहेज करने पड़ते थे. मेरे खाने से नमक हटा दिया गया था और जिंदगी से उत्साह.

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ऐसे शुरू हुआ इलाज का दौर 
इसी दौरान मेरा 12वीं का रिजल्ट आया. मैंने 51 प्रतिशत नंबर से परीक्षा पास की थी. खांसी और बुखार के कारण पेपर इतने अच्छे नहीं हो पाए थे. मुझे नंबरों और पढ़ाई से कहीं ज्यादा चिंता अपनी सेहत की थी. वो कहते हैं न कि जान है तो जहान है. आगे की पढ़ाई के लिए किसी कॉलेज जा पाना मुमकिन नहीं था. मेरा इलाज शुरू हो गया था अब दो महीने बाद मुझे खांसी से राहत मिली. उधर, मुझसे ढाई साल छोटा भाई शुभम अपनी पढ़ाई में जुटा था. उसका साइकोलॉजिस्ट बनने का सपना था. वो इसे पूरा करने में जुटा हुआ था. बड़ी बहन भी अपनी पढ़ाई में जुटी थी. फिर भी माता-पिता और भाई बहन के जेहन में भी मेरी बीमारी हर वक्त छाई रहती थी. वो अपने काम के साथ-साथ मेरे साथ वक्त बिताते थे.

पहला हार्ट अटैक और वो डर... 
सबकुछ ठीक ठाक चल रहा था तो मैंने ओपन लर्निंग से ग्रेजुएशन करने की सोची. डॉक्टर की सलाह पर पढ़ाई शुरू कर दी. साल 2016 में मेरा ग्रेजुएशन पूरा हो गया. मैंने साथ में होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा की पढ़ाई भी पूरी कर ली थी. भले ही मेरी जिंदगी में खाने की रेसिपी नमक-तेल फ्री थी, पर मुझे कुकिंग का बचपन से शौक था. मैं अपना करियर भी इसी फील्ड में बनाना चाहता था. उस वक्त की सोचता हूं तो लगता है कि बदकिस्मती मेरे साथ-साथ चल रही थी. साल 2017 में जब अपने सपने को जीने का वक्त आया तभी मुझे हार्ट अटैक के साथ पैरालिटिक अटैक आ गया. मेरे शरीर के आधे हिस्से ने काम करना बंद कर दिया. मैं ठीक से बात भी नहीं कर पा रहा था.

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डॉक्टरों ने मुझे बचाने में पूरी ताकत झोंक दी. मेरी हार्ट बीट 12 हो गई थी. मैं एक महीने सीसीयू (क्रिटिकल केयर यूनिट) में रहा. मुझे डॉक्टरों ने हार्ट ट्रांसप्लांट सजेस्ट किया था. यह इतना आसान नहीं होता कि किसी को इतनी जल्दी हार्ट मिल जाए. मेरा ब्लड ग्रुप भी ओ नेगेटिव था जो कि बहुत आसानी से नहीं मिलता. बिस्तर पर लेटे लेटे बीमार की जिंदगी जीते जीते मैं एकदम टूट गया था. मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आने लगा था. इधर, परिवार ने एम्स के ORBO (Organ Retrieval Banking Organization) से संपर्क करके सभी फार्मेल्टी पूरी कर ली थी. एम्स के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ संदीप सेठ मेरा इलाज कर रहे थे. उन्हें मैं पिता की तरह मानता हूं, वो मुझे समझाने की कोशिश करते कि आप धैर्य मत खोइए, सब अच्छा होगा.

फिर एक दिन अचानक पता चला कि मेरा मैच मिल गया है. मेरे लिए ये किसी चमत्कार से कम नहीं था. मुझे 22-23 दिन के भीतर ही हार्ट मिलने जा रहा था. घरवालों ने हामी भर दी और मुझे ऑपरेशन के लिए तैयार किया जाने लगा. मेरा बीमार दिल आज मुझसे दूर हो जाएगा, उसकी जगह कोई दूसरा स्वस्थ दिल मेरे भीतर धड़केगा. मुझे थोड़ा-सा डर तो लग रहा था लेकिन भीतर से मन कह रहा था कि मुझे जिंदगी का तोहफा मिल रहा है. अब मैं इतनी कम उम्र में दुनिया को छोड़कर नहीं जाऊंगा.

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मेरा डोनर मेरी ही उम्र का था
खैर, डॉक्टर इस ट्रांसप्लांट में पूरी तरह सफल हुए. मुझे ऑपरेशन के बाद होश आ गया. ये मेरे लिए एकदम अलग अहसास था. जैसे अचानक मैं अच्छे से सांस ले पा रहा हूं. तेज धड़कनें और दर्द सब जैसे काफूर हो गए थे. लेकिन, मेरे मन में एक सवाल आ रहा था कि ये किसका दिल होगा जो मेरे भीतर धड़क रहा है. किन हालात में ये मुझे दिया गया होगा. डॉक्टर इस मामले में पूरी तरह गोपनीयता बरतते हैं. डोनर को कहां से किससे दिल मिला, ये पता करना मुश्किमल होता है. मुझे बस इतना पता चल पाया कि जिसका दिल मुझे मिला है, वो भी मेरी ही उम्र का लड़का था. एक दुर्घटना में उसका ब्रेन डेड हो गया था, लेकिन अन्य अंग काम कर रहे थे. उसके परिवारवालों की सहमति से उसके अंग दान किए गए थे.

मैं दुआ करता हूं...
भले ही मुझे चिकित्सकीय पहलू पता हैं जिसमें एक अंग को किसी दूसरी बॉडी में ट्रांसप्लांट किया जाता है. फिर भी मैं ईश्वर पर बहुत आस्था रखता हूं, मेरा हर दिन उस परिवार को समर्पित है, जिसे मैं पहचानता भी नहीं हूं. लेकिन मैं हमेशा ये दुआ करता हूं कि वो लोग खुश रहें. उन्हें दुनिया की हर खुशी मिले. जिस व्यक्तिी का हृदय मुझे मिला, उसकी आत्मा को भी शांति मिले. मैं अपने इलाज के समय भी पूरे वक्त महामृत्युंजय मंत्र का जाप करता था. मौत के खौफ से जूझ रही मेरी जिंदगी को आज जो सांसें मिली हैं, उसमें ईश्वर और विज्ञान के साथ साथ ऐसे परिवार का भी रोल है जिसने अंगदान को अपनाया. असल मायने में सबसे बड़े दानी वही हैं जो दूसरों को जिंदगी का तोहफा दे दें.

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ट्रांसप्लांट का वो दौर 
मेरे पिता गुरुग्राम की एक निजी कंपनी में क्लर्क हैं. घर में तीन बच्चों का खर्च उनकी 17 हजार रुपये सैलरी से चलता था. उस पर मुझे दिल की बीमारी हो गई. डॉक्टरों ने जब ऑपरेशन बताया तो पापा के पास पैसे बिल्कुल नहीं थे. इसमें सात से आठ लाख रुपये खर्च आना था. मेरे पिता ने रिश्तेदारों से खेती की कमाई से, जोड़ा हुआ पैसा सब लगा दिया. इस पूरी प्रक्र‍िया में 7 से आठ लाख रुपये खर्च हुए. मेरा 18 फरवरी 2018 में ऑपरेशन हुआ. एक साल तक मुझे घर से नहीं निकलने का सख्त निर्देश था. साथ ही पूरे साल मुझे प्रति माह 40 हजार रुपये की दवाएं खानी थीं. ये दौर पूरे परिवार पर कठ‍िन था, लेकिन इस बीच मेरी बहन और भाई की जॉब लग गई थी तो वो भी हेल्प करने लगे. 

मुश्क‍िल रहा अकेलेपन का वो दौर 
मैं बचपन से स्पोर्ट्स पर्सन था. अपने स्कूल में एनसीसी में था. मुझे डॉक्टर ने किसी गतिविध‍ि के लिए मना कर दिया था. खुद को इनफेंक्शन से बचाने के लिए मुझे घर में ही रहना था. फिर मैंने डॉक्टर से रिक्वेस्ट की कि मैं एक रूम में कैसे इतने दिन रह पाऊंगा. तो पहले उन्होंने मुझे छत पर टहलने को कहा, फिर मैं अपने दोस्तों के साथ सातवें महीने से पार्क में टहलना, एक्सरसाइज करना शुरू कर दिया. धीरे धीरे मैं फिट होने लगा था. आज मैं मध्यप्रदेश टूरिज्म में काम करता हूं, मेरी सैलरी भले ही कम है, लेकिन मुझे जिंदा होने का संतोष ही खुश रखता है.

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मुझे अपने देश के लिए मेडल लाने का मौका मिला
मैं जब ऑपरेशन के बाद फिर से खेल में रुचि लेने लगा तो मुझे वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स में भाग लेने का मौका ऑर्गन इंडिया के द्वारा मिला. वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स 2023 जो कि ऑस्ट्रेलिया के पर्थ शहर में होगा उसमें मैं अपने देश के लिए कांस्य पदक लाया. मुझे और मेरे परिवार को पदक आने पर बहुत खुशी हुई.

 

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