Lung Cancer No Longer A Smoker's Disease: दिल्ली-NCR में प्रदूषण का कहर बीते कुछ महीनों से बना हुआ है और रोजाना हम लोग वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के बारे में अखबारों और न्यूज चैनल में देख और पढ़ रहे हैं. हर बढ़ते दिन के साथ प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है और यह हमारी सेहत पर बुरा असर डाल रहा है.
कई लोग भले ही वायु प्रदूषण को बहुत गंभीरता से नहीं ले रहे हैं लेकिन ये प्रदूषण अब जानलेवा साबित हो रहा है. ऐसा ही नीति आयोग में काम करने वाली एक युवा अधिकारी के साथ हुआ, जिन्हें स्टेज 4 फेफड़ों का कैंसर हो गया है.
आपने कभी अपनी लाइफ में एक भी सिगरेट नहीं पी हो. मगर एक दिन अचानक पता चले कि आपको स्टेज 4 का लंग कैंसर हो गया है, 35 साल की उर्वशी प्रसाद के साथ यही हुआ है, जो दिल्ली की रहने वाली हैं और नीति आयोग में काम करती हैं.
उर्वशी ने इंडिया टुडे से बात करते हुए कहा, 'मैंने कभी भी सेकेंड हैंड स्मोकिंग का भी एक्सपीरियंस नहीं लिया. डॉक्टरों की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. मैंने एक बहुत ही हेल्दी लाइफ जी है, इसलिए मुझे यह बहुत गलत लगा. मेरे मामले में ट्रिगर जो म्यूटेशन शुरू करता है वो वायु प्रदूषण था.' नीति आयोग की अधिकारी उर्वशी ने इस जानलेवा बीमारी को बेबसी की सजा बताया.
सर गंगा राम अस्पताल के चेयरपर्सन और सर्जिकल ऑन्कोलॉजी डॉ. चिंतामणि के अनुसार, हमारे 70 प्रतिशत फेफड़ों के कैंसर मरीज नॉन-स्मोकर्स हैं. पिछले कुछ समय से महिलाओं में इतनी तेजी से फेफड़ों के कैंसर के केस बढ़ रहे हैं, जिससे पुरुषों में अधिक लंग कैसर होने की धारणा धीरे-धीरे बदल रही है.
मेदांता अस्पताल के चेयरमैन, इंस्टीट्यूट ऑफ चेस्ट सर्जरी डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि फेफड़ों का कैंसर अब सिर्फ 50 साल से अधिक उम्र के लोगों की समस्या नहीं रह गई है. उन्होंने यह भी बताया कि जिस सबसे कम उम्र के मरीज का उन्होंने ऑपरेशन किया, उसकी उम्र सिर्फ 24 साल थी. लंग कैंसर के मामले में अब पुरुष और महिला अनुपात लगभग 60:40 हो गया है, दोनों लगभग बराबरी पर है.
डॉ. अरविंद के अनुसार, यह अब सिर्फ स्मोकर्स की समस्या नहीं रह गई है, वो उसे सीधे तौर पर वायु प्रदूषण से जोड़ते हैं. उनका कहना है कि वातावरणीय कारक इतने मजबूत हैं कि धूम्रपान के प्रभाव को भी वो पीछे छोड़ देते हैं.
डॉ. चिंतामणि कहते हैं, दिल्ली में रहकर लगातार प्रदूषित हवा में सांस लेना, लंबे समय में धूम्रपान जितना या उससे भी ज्यादा खतरा पैदा कर सकता है.
सर गंगा राम अस्पताल के चेस्ट सर्जरी केंद्र की 30 साल की स्टडी में सामने आया है कि फेफड़ों के कैंसर मरीजों का प्रोफाइल बदल गया है. 2018 में दिल्ली के मरीजों में आधे से ज्यादा गैर-स्मोकर्स थे. 2015 में 63,700 और 2025 में बढ़कर 81,200. पहले 1998 में 90 प्रतिशत मरीज स्मोकर्स थे, अब 50-70% गैर-स्मोकर्स हैं.