अल-फलाह अरबी भाषा का शब्द है जिसका मतलब होता है- सफलता, संपन्नता और खुशहाली. दस नवंबर के दिल्ली धमाके से पहले ये शब्द फरीदाबाद के अल-फलाह मेडिकल कॉलेज के लिए एकदम सटीक थे.
महज 6 साल पहले 2019 में अल-फलाह प्राइवेट यूनिवर्सिटी के तहत शुरू हुए इस कॉलेज के पास अब एक शानदार कैंपस था, जहां हमेशा डॉक्टरी पढ़ रहे सैकड़ों स्टूडेंट्स की रौनक रहती थी.
इंजीनियरिंग के एक लेक्चरर के तौर पर अपना करियर शुरू करने वाले इस यूनिवर्सिटी के चांसलर जवाद अहमद सिद्दीकी अब अल-फलाह ग्रुप ऑफ कंपनीज के मालिक थे, जिसके तहत दर्जनभर से ज्यादा कंपनियां थीं. जाहिर है, वो सुखी और संपन्न थे.
देश के अलग-अलग हिस्सों से आकर फरीदाबाद के धौज गांव में बने इस कॉलेज में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे लोगों को भी भरोसा था कि वो जल्द ही एक उम्दा डॉक्टर बनकर अपने परिवार और समाज में खुशहाली लाएंगे.

लेकिन लाल किले के पास i20 कार में हुए धमाके ने सबकुछ उलट कर रख दिया. इस ब्लास्ट ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी की साख के भी चित्थड़े उड़ा दिए. अब उसे आतंकवादियों का संस्थान कहा जा रहा है.
अगर कार ब्लास्ट ने अल-फलाह की नींव नहीं हिला दी होती तो अब से दो दिन बाद चांसलर जवाद अहमद सिद्दीकी दिल्ली के जामिया नगर के अपने शानदार घर में अपना 61वां जन्मदिन मना रहे होते. 15 नवंबर, 1964 को जन्मे जवाद अहमद का परिवार मध्य प्रदेश के महू में रहता था. महू वही शहर है, जहां बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का जन्म हुआ था. उन्हीं के नाम पर अब शहर का नाम बदलकर डॉ. भीमराव आंबेडकर नगर कर दिया गया है.
बड़ी हसरतों ने खिलाई जेल की हवा
जवाद अहमद के लिंक्डइन प्रोफाइल के मुताबिक, (जो काफी समय से अपडेट नहीं हुआ है), उन्होंने इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से इंड्रस्टियल प्रोडक्ट डिजाइन में बीटेक की पढ़ाई की. बाद में उनका परिवार महू छोड़कर दिल्ली आ गया.

नाम नहीं छापने की शर्त पर उनके साथ काम कर चुके जामिया के एक टीचर ने हमें बताया कि जवाद को 1993 में दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया कॉलेज के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में लेक्चरर की नौकरी मिल गयी थी. लेकिन जल्द ही ये लेक्चरर की नौकरी उन्हें छोटी लगने लगी.
नौकरी करते हुए उन्होंने अपने भाई सउद अहमद से साथ मिलकर कुछ कंपनियां बनाईं. इन्हीं में से एक कंपनी थी अल-फलाह इन्वेस्टमेंट. ये वही कंपनी थी जिसकी वजह से उन्हें अपने भाई के साथ तीन साल से भी ज्यादा जेल की हवा खानी पड़ी.

जामिया में काम करते हुए उन्होंने अपने बिजनेस का जाल वहां भी फैलाया. उनके कुछ साथियों ने उन पर भरोसा करने उनकी कंपनी में पैसा लगा भी दिया. लेकिन जल्द ही अल-फलाह इन्वेस्टमेंट के खिलाफ ठगी, धोखाधड़ी और पैसा हड़पने जैसी शिकायतों का अंबार लग गया.
साल 2000 में के आर सिंह नाम के एक आदमी ने उनके खिलाफ दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में एफआईआर (FIR No.43/2000) दर्ज करा दी. मामले की जांच दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के इकोनॉमिक ऑफेंस विंग को सौंपी गई और दोनों भाइयों को गिरफ्तार करके तिहाड़ जेल भेज दिया गया. बेल के लिए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद भी जावेद और साउद को तीन साल तक राहत नहीं मिली. वजह थी, उनके खिलाफ लगाए गए गंभीर आरोप और उसके ठोस सबूत.
तीन साल बाद मिली जमानत
साल 2003 में उनकी जमानत की अर्जी को नामंजूर करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, “आरोपियों पर निवेशकों के नकली हस्ताक्षर बनाने का जो आरोप लगा है, फॉरेंसिक साइंस लैब की रिपोर्ट ने इसकी पुष्टि की है. यही नहीं, ऐसी फर्जी कंपनियों के नाम पर निवेशकों से पैसे जमा कराए गए, जो असल में हैं ही नहीं. याचिकार्ताओं ने निवेशकों से जमा किए गए पैसों को हेराफेरी से अपने बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर लिया.”
आखिरकार, फरवरी 2004 में जवाद और सउद को जमानत मिल गयी. उसके एक साल बाद, 2005 में पटियाला कोर्ट ने दोनों को इस शर्त पर आरोपों से बरी कर दिया कि सभी निवेशकों के पैसे लौटा दिए जाएं.
अल-फलाह मेडिकल कॉलेज के एक विश्वस्त सूत्र ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर हमें बताया कि साल 2019 में जब मेडिकल कॉलेज शुरू हुआ था तो सब कुछ ठीक-ठाक था. गड़बड़ तब शुरू हुई जब कम तनख्वाह देने के चक्कर में कश्मीर के तमाम डॉक्टरों को वहां नौकरी दी जाने लगी. हालत ये हो गयी कि अल-फलाह अस्पताल और हॉस्टल के भीतर कश्मीर के लोगों का एक अलग कुनबा बन गया. कॉलेज के भीतर माहौल जरूरत से ज्यादा इस्लामिक हो गया. पांच वक्त की नमाज, पर्दा और यहां तक कि बुर्के पर भी कुछ लोग जोर देने लगे. चांसलर जवाद अहमद को भी इस बारे में बताया गया लेकिन उन्होंने इन शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया.
विवादों की झड़ी
हमारे सूत्र ने हमें बताया कि इसी मेडिकल कॉलेज की जिस डॉ. शाहीन सईद को आतंकवादियों के साथ संपर्क में होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है वो अपने कमरे में अकसर लड़कियों को धार्मिक बातें सिखाते हुए देखी जाती थी. उसे इस बारे में टोका भी गया था. कश्मीर से आए कई डॉक्टरों के खिलाफ ड्यूटी से गायब रहने की भी शिकायतें आती थीं.
इन शिकायतों के अलावा अल-फलाह के साथ और भी कई विवाद जुड़ने लगे. कोविड महामारी के दौरान वहां की नर्सों ने आरोप लगाया कि कोरोना के मरीजों का इलाज करने के लिए जब उन्होंने अपने लिए लाइफ-इंश्योरेंस की मांग की तो तो उन्हें नौकरी से ही निकाल दिया गया. फिर पिछले साल, जब कुछ मेडिकल इंटर्न्स ने मेहनताना न मिलने के चलते विरोध प्रदर्शन किया तो उन्हें सस्पेंड कर दिया गया.
इन मुसीबतों से तो शायद तेज-तर्रार जवाद अहमद सिद्दीकी निपट भी लेते. लेकिन दिल्ली धमाकों की जांच एनआईए को सौंप दी गयी है. जाहिर है, अब उनकी पूरी जन्मकुंडली देखी जाएगी. उनके पुराने कारोबारों से लेकर हर बिजनेस की गहराई से पड़ताल होगी. जांच का फंदा अल-फलाह के चारों तरफ कसने भी लगा है.
जवाद अहमद सिद्दीकी इस साल अपने जन्मदिन पर पार्टी नहीं बल्कि शायद यही दुआ करेंगे- खुदा खैर करे.