क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा दावा किया कि बलात्कार के दोषियों को अब देश में कुछ ही दिनों में फांसी पर लटकाया जा रहा है? बुधवार को सूरत में इस बारे में दिए पीएम मोदी के बयान को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी है. इस बहस का मुख्य आधार न्यूज एजेंसी एएनआई की ओर से पोस्ट किया गया एक ट्वीट है. इस ट्वीट में मोदी के हवाले से ये कहा गया- “अब दोषियों को 3 दिन में, 7 दिन में, 11 दिन में और एक महीने में फांसी दी जा रही है.”
इंडिया टुडे फैक्ट चेक ने पाया कि एएनआई ने पीएम मोदी के भाषण का गलत अनुवाद किया.
प्रधानमंत्री मोदी ने सूरत में हिन्दी में भाषण दिया. वह अपने भाषण में बलात्कार के मामलों में सजा-ए-मौत और मुकदमे तेज गति से चलाए जाने की बात कर रहे थे. पीएम मोदी के भाषण को गौर से सुनने पर पता चलता है कि उन्होंने ‘फांसी’ शब्द का इस्तेमाल उस पर अमल को लेकर नहीं किया था.
एएनआई के ट्वीट पर प्रतिक्रिया में कई लोगों ने सवाल उठाए कि इन फांसियों पर अमल कब हुआ. ये स्टोरी लिखे जाने तक इस पोस्ट पर एक हजार से ज्यादा कमेंट आ चुके थे.
PM Narendra Modi in Surat: There used to be rapes in this country earlier too, it is a shame that we still hear about such cases. Now, culprits are hanged within 3 days, 7days, 11 days & a month. Steps are being taken continuously to get daughters justice & results are evident. pic.twitter.com/eA1SBipQUH
— ANI (@ANI) January 30, 2019
एएनआई के ट्वीट को यहां देखा जा सकता है .
एएनआई ने मोदी के भाषण के उपरोक्त को इस हैडलाइन के साथ ट्वीट किया- ‘बलात्कारियों को एक महीने के अंदर फांसी दी जा रही है: पीएम मोदी’
हमने पीएम मोदी के सूरत में दिए भाषण को सुना. उन्होंने हिन्दी में कहा- “इस देश में बलात्कार पहले भी होते थे, समाज की बुराई, कलंक ऐसा है कि आज भी उस घटनाओं को सुनने को मिलता है, लेकिन आज 3 दिन में फांसी, 7 दिन में फांसी, 11 दिन में फांसी, 1 महीने में फांसी...(थोड़ा रुककर) लगातार, उन बेटियों को न्याय दिलाने के लिए एक के बाद एक कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि बलात्कार की घटना तो सात दिन तक टीवी पर चलाई जाती है, लेकिन फांसी की सजा की खबर आ करके चली जाती है. फांसी की खबर जितनी ज्यादा फैलेगी, उतनी बलात्कार करने की विकृति लेकर के बैठा हुआ आदमी भी डरेगा, 50 बार सोचेगा.”
जुलाई 2018 में मध्य प्रदेश के कटनी में निचली अदालत ने नाबालिग से बलात्कार के दोषी को मौत की सजा दी थी. ये मुकदमा सिर्फ पांच दिन चला था.
बलात्कार के एक और मामले और नाबालिग की हत्या की कोशिश के दो दोषियों को मध्य प्रदेश के मंदसौर की निचली अदालत ने मौत की सजा दी थी. ये मुकदमा 13 दिन में पूरा हो गया.
जहां तक किसी बलात्कार के दोषी की फांसी की सज़ा पर अमल का सवाल है तो बीते 15 साल में एक ही ऐसा केस सामने आया है. पश्चिम बंगाल के कोलकाता की अलीपोर सेंट्रल जेल में 2004 में नाबालिग लड़की से बलात्कार और फिर उसकी हत्या के दोषी धनंजय चटर्जी को फांसी पर लटकाया गया था.
मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान सिर्फ फांसी पर अमल का एक ही वाकया है और वह है आतंकवादी याकूब मेमन को जुलाई 2015 में फांसी पर लटकाया जाना.
अदालतों की ओर से मौत की सजा सुनाए जाने और फांसी पर अमल किए जाने के बीच लंबी कानूनी प्रक्रिया और समय का अंतराल होता है.
दिल्ली में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की रिसर्च प्रोजेक्ट 39A के मुताबिक देश में पिछले साल अदालतों की ओर से मौत की सजाएं सुनाए जाने में खासी बढोतरी हुई. ट्रायल कोर्ट्स ने 162 दोषियों को मौत की सजा सुनाई.
पिछले साल मोदी सरकार ने बलात्कार से जुड़े कानून को सख्त बनाने के लिए बिल पास किया था. इसमें बलात्कार के अपराधों में मुकदमों की त्वरित सुनवाई और नाबालिग से बलात्कार के दोषी को मौत की सजा सुनिश्चित करने के प्रावधान किए गए.