scorecardresearch
 

पूर्वी यूक्रेन पर पुतिन की नजर, क्या नोबेल के लिए जेलेंस्की को झुकाएंगे ट्रंप, या रूस के खिलाफ खुलेगा बड़ा मोर्चा?

साढ़े तीन साल से ज्यादा समय से रूस और यूक्रेन के बीच जंग जारी है. बहुत से देशों ने बीच-बचाव की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो सके. अब डोनाल्ड ट्रंप बीच में आ चुके हैं. हाल में उनकी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात हुई. इसमें पुतिन ने कथित शर्त रख दी कि अगर पूर्वी यूक्रेन को उसके नाम कर दिया जाए तो वे लड़ाई रोक सकते हैं.

Advertisement
X
पूर्वी यूक्रेन के बड़े हिस्से पर रूसी सेना पहले ही कब्जा कर चुकी. (Photo- Aaj Tak)
पूर्वी यूक्रेन के बड़े हिस्से पर रूसी सेना पहले ही कब्जा कर चुकी. (Photo- Aaj Tak)

यूरोप का माहौल इन दिनों गरमाया हुआ है. वजह है, रूस और यूक्रेन की जंग. साल 2022 से चली आ रही लड़ाई में अब नया मोड़ आ चुका. रूस के लीडर व्लादिमीर पुतिन ने शर्त रख दी है कि अगर यूक्रेन अपना डोनबास क्षेत्र उसे दे देता है, तो लड़ाई रुक जाएगी. पूर्वी यूक्रेन में आने वाले इस इलाके के बड़े भाग पर कुछ समय पहले ही रूसी सेना का कंट्रोल हो चुका. अब मॉस्को इसपर अपनी आधिकारिक मुहर चाहता है. 

हाल ही में अलास्का में ट्रंप और पुतिन की मुलाकात हुई. इस दौरान यूक्रेन को लेकर बात हुई और तभी मॉस्को ने अपनी कंडीशन्स रखीं. सीजफायर के बदले रूस चाहता है कि यूक्रेन अपना पूर्वी हिस्सा उसके नाम कर दे. डोनेट्स नदी के इस इलाके में डोनेत्स्क और लुहान्स्क आते हैं. दोनों को संयुक्त रूप से डोनबास कहा जाता है. सीमा से लगे हुए इस क्षेत्र पर लंबे समय से पुतिन की नजर रही. यहां तक कि युद्ध के दौरान रूसी सेना इसमें भीतर तक पहुंच चुकी है, और फिलहाल वहीं से ऑपरेट कर रही है. 

रूसी नेता ने साफ कहा कि अगर यूक्रेनी फौजें डोनेत्स्क से पीछे हट जाएं, तभी सीजफायर की बात हो सकेगी. फिलाहाल लुहान्स्क तो लगभग पूरा ही रूस के कब्जे में है, जबकि डोनेत्स्क का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा अब भी यूक्रेन के पास है. मॉस्को इसी हिस्से को अपने लिए खाली चाहता है. 

Advertisement

क्यों रूस चाहता है पूर्वी यूक्रेन पर कब्जा

खनिजों से भरे डोनबास को लेकर पुतिन लंबे समय से आग्रही रहे. ये सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं, बल्कि एक तरह की लॉटरी साबित हो सकती है. दरअसल डोनबास कोयले और कई तरह के खनिजों से भरपूर इलाका है. यहां भारी उद्योग और फैक्ट्रियां हैं, जो रूस के लिए बड़ी आर्थिक ताकत बन सकते हैं. 

donald trump meeting with vladimir putin (Photo- Reuters)

डोनबास रणनीतिक महत्व भी रखता है. यूक्रेन के ईस्ट में आता ये भाग रूसी सीमा से सटा है. अगर ये पूरा इलाका रूस के कब्जे में आ जाए तो रूस को सुरक्षा की दृष्टि से एक बफर जोन मिल जाएगा और यूक्रेन को वेस्ट की तरफ धकेला जा सकेगा. 

डोनबास में रशियन बोलने वालों का प्रतिशत ज्यादा है जो खुद को रूस के करीब मानते हैं. आखिरी सेंसस के मुताबिक, इसमें शामिल डोनेत्स्क की लगभग 75 फीसदी जनसंख्या रूसी बोलती है. वे कल्चरली भी रूस से जुड़े हुए हैं. साल 2014 में रूस-यूक्रेन संघर्ष के पहले यहां के लोग रूस के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की वकालत करते रहे. हालांकि संघर्ष के बाद दोनों देशों की दूरियां बढ़ीं, इस दौरान इस पूरे इलाके के लोग रूस से और भी ज्यादा जुड़ने लगे. 

साल 2014 में क्रीमिया के रूस में मिलने के बाद यहां के लोग खुलकर मॉस्को के सपोर्ट में आने लगे. यूक्रेनी सेना और रूसी सपोर्टरों के बीच भारी जंग भी हो चुकी. 

Advertisement

यहां कई अलगाववादी गुट हैं, जो रूस के पक्ष में आंदोलन चलाए रखते हैं. डोनेत्स्क के अलावा लुहान्स्क भी रूस का समर्थन करने वाले अलगाववादियों से भरा हुआ है. यहां तक कि इन इलाकों के सेपरेटिस्ट्स ने अपने-आप को यूक्रेन से अलग करने की भी घोषणा कर दी थी. यूक्रेन इन्हे अपना क्षेत्र मानता है, जबकि रूस इनके विद्रोह को हवा देता रहा. कुछ सालों पहले यहां के लड़ाकों ने खुद को पीपल्स रिपब्लिक घोषित कर दिया, जो अपने-आप को रूसी फेडरेशन का हिस्सा मानता है. 

क्या है भूगोल का गणित

अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स में दावे हैं कि डोनबास का करीब 88% हिस्सा अब रूस के कब्जे में है. इसमें लगभग पूरा लुहान्स्क और डोनेत्स्क का करीब 75% हिस्सा शामिल है. रूस ने अपना ज्यादा ध्यान डोनेत्स्क की फ्रंटलाइन पर लगाया हुआ है और धीरे-धीरे आगे की तरफ जा रहा है. 

ukraine leader zelensky (Photo- AFP)

क्या है खतरा

यूक्रेनी आबादी के लिए इस शांति प्रस्ताव के बदले इस शर्त का मतलब है, अपने घर कभी वापस न जा पाना. जिन इलाकों पर अब रूस का कब्जा है, वो अगर रूस का मान लिया जाए, तो वहां के लोग या तो विस्थापित हो जाएंगे, या फिर भेदभाव और हिंसा के बीच रहने को मजूबर होंगे. अंदेशा ये भी है कि मॉस्को यहीं नहीं रुकेगा, वो आगे बढ़ता रहेगा और पूरा का पूरा यूक्रेन गप कर जाएगा. 

Advertisement

लाखों लोग हो चुके विस्थापित 

फिलहाल ये साफ नहीं है कि जिन इलाकों पर रूस की सेना भारी पड़ी, वहां कितने यूक्रेनी नागरिक बाकी हैं. कई जगहों पर तो पूरे के पूरे शहर मलबे में बदल गए. ऐसे में यूक्रेनी आबादी देश के सुरक्षित शहरों में चली गई, या फिर पोलैंड से होते हुए दूसरे देशों की शरण में जा चुकी. खुद यूएन ये बात मानता है कि जंग की वजह से करीब 30 लाख यूक्रेनी अपने ही देश में दूसरे ठिकानों पर जा चुके, जबकि 60 लाख से ज्यादा विदेशों में शरण लिए हुए हैं.

क्या कह रही यूक्रेनी लीडरशिप

रूस की शर्तों का यूक्रेन को पहले से अंदेशा था. पिछले हफ्ते की शुरुआत में ही जेलेंस्की ने इसका डर जताते हुए कहा था कि वे डोनबास को कभी नहीं छोड़ेंगे, वरना पुतिन उन्हीं के इलाकों को उन्हीं पर हमले के लिए इस्तेमाल करने लगेंगे. 

अमेरिका यहां कहां फिट होता है

डोनबास के ज्यादातर भाग पर रूस का कंट्रोल है. इधर रूस-यूक्रेन लड़ाई रोकना अमेरिकी लीडरशिप के लिए करो या मरो वाली स्थिति हो चुकी. ऐसे में हो सकता है कि ट्रंप शांति समझौते के लिए यूक्रेन पर दबाव बनाने लगें. वैसे अमेरिका अभी तक खुलकर ऐसा दबाव नहीं बना रहा, क्योंकि उसे डर है कि इससे नाटो देशों और यूक्रेन का भरोसा टूट जाएगा और उसकी खुद की इमेज पर खरोंच लगेगी. ये हो सकता है कि बंद कमरे की बातचीत में जमीन के बदले शांति वाले ऑप्शन पर चर्चा हो रही हो, या ऐसी तैयारियां हों. 

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement