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एक नाकाम डिपोर्टेशन पर पूरे देश का वीजा रद्द, अमेरिका क्यों हुआ साउथ सूडान पर नाराज?

डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने साउथ सूडान के लोगों का अमेरिकी वीजा न केवल निरस्त कर दिया, बल्कि आने वाले समय में उन्हें यूएस में एंट्री की भी इजाजत नहीं होगी. ये फैसला इसलिए किया गया क्योंकि कथित तौर पर दक्षिण सूडान की सरकार अवैध प्रवासियों को लेकर ट्रंप प्रशासन से सहयोग नहीं कर रही.

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साउथ सूडान को लेकर ट्रंप प्रशासन फिलहाल नाराज है. (Photo- Reuters)
साउथ सूडान को लेकर ट्रंप प्रशासन फिलहाल नाराज है. (Photo- Reuters)

वाइट हाउस की मौजूदा सरकार अवैध प्रवासियों को लेकर सख्ती तो बरत रही है, लेकिन अफ्रीकी देश साउथ सूडान को लेकर उसकी कड़ाई काफी ज्यादा है. शनिवार को एक बयान देते हुए ट्रंप प्रशासन ने न केवल इस देश के लोगों का मौजूदा वीजा रद्द कर दिया, बल्कि अब इस देश के लोगों को अमेरिका में आने की इजाजत भी नहीं होगी. ये सब कुछ सिर्फ एक फेल्ड डिपोर्टेशन केस की वजह से हुआ, जिसमें अमेरिका से भेजे जा रहे एक शख्स को साउथ सूडान ने अपनाने से इनकार कर दिया. 

यहां कई सवाल हैं.

ट्रंप के इस ब्लैंकेट बैन का लगभग दो दशक पहले बने देश पर क्या असर होगा?

ऐसे नागरिकों का क्या होता है, जिन्हें खुद उनके ही देश अपनाना न चाहें?

क्या इंटरनेशनल संधि में कोई नियम है, जहां डिपोर्ट हो रहे अवैध प्रवासियों की बात होती है?

बात करते हैं साउथ सूडान की. यह अफ्रीका का सबसे नया देश है, जो धर्म और कल्चर के अंतर से बना. दरअसल सूडान के उत्तर भाग में ज्यादातर लोग अरबी भाषा बोलते हैं और इस्लाम धर्म के अनुयायी हैं, जबकि दक्षिण भाग में ईसाई और स्थानीय आदिवासी धर्मों को मानने वाले लोग रहते आए. इस फर्क की वजह से सूडान में लंबे समय तक अंदर ही अंदर लड़ाइयां चलती रहीं. युद्ध इतना हिंसक था कि इसमें लाखों मौतें हुईं और लाखों लोग बेघर हो गए. वे कई देशों की तरफ जाने लगे जिसमें अफ्रीकी देशों के अलावा अमेरिका ऊपर था. 

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why america revoked visas of south sudan amid strict policy on illegal immigrants photo AFP

साल 2011 में साउथ सूडान ने खुद को अलग देश बनाने की घोषणा की. संयुक्त राष्ट्र (UN) ने इसे तुरंत मान्यता दे दी ताकि दशकों से जलते आ रहे हिस्से में कुछ शांति आ सके लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इंटरनेशनल सपोर्ट के बाद भी आंतरिक हिंसा चलती ही रही. अबकी बार वहां के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति में लड़ाई छिड़ी. दो अलग समुदायों से आने वाले नेताओं की सत्ता की जंग ने फिर से गृहयुद्ध की चिंगारी जला दी. यहां दूसरी बार मास पलायन हुआ. 

सूडानी रिफ्यूजियों की स्थिति 

लगभग 2.3 मिलियन दक्षिण सूडानी नागरिक अलग-अलग देशों में शरणार्थियों की तरह रह रहे हैं. ज्यादातर युगांडा, सूडान, इथियोपिया और केन्या जैसे पड़ोसी देशों में बसे हुए हैं. अमेरिका में इनकी संख्या ज्यादा तो नहीं लेकिन फिर भी है. पहले रिफ्यूजी रीसैटलमेंट प्रोग्राम के तहत यूएन चुने हुए रिफ्यूजियों को यूएस भेजता था. हाल के समय में वहां रिफ्यूजी पॉलिसी में काफी बदलाव हुए, जिसके चलते लोगों को अमेरिका जाना मुश्किल हो गया. लेकिन सुरक्षा और अच्छी जिंदगी के लिए यहां से भी लोग अवैध ढंग से वहां पहुंचने लगे. 

अमेरिकी रिकॉर्ड पर सूडान का एतराज

अमेरिकी विदेश विभाग ने इसी फरवरी में दक्षिण सूडान के 23 नागरिकों की पहचान की, जिन्हें निकाला जाना था. इनपर कुछ कानून तोड़ने के आरोप थे. हालांकि सारे वैसे नहीं, लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि किसी देश के नागरिकों का एक समूह अपराध में शामिल पाया जाए तो पूरी कम्युनिटी पर सख्ती बढ़ जाती है. नए प्रशासन ने इन लोगों को वापस भेजने की कोशिश की लेकिन साउथ सूडानीज सरकार ने इनमें से एक शख्स को वापस लेने से मना कर दिया. 

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why america revoked visas of south sudan amid strict policy on illegal immigrants photo Unsplash

नतीजा ये रहा कि यह मामला एक फेल्ड डिपोर्टेशन केस बन गया. अमेरिका को लगा कि साउथ सूडान सरकार सहयोग नहीं कर रही और जान-बूझकर अमेरिकी उदारता का फायदा उठा रही है. इसके बाद ही बड़ा कदम लेते हुए यूएस ने वहां के सभी पासपोर्ट धारकों के वीजा रद्द कर दिए, साथ ही नए वीजा जारी करने पर रोक भी लगा दी. ये अमेरिकी अंदाज में चेतावनी है कि कोई देश अगर घुसपैठ के मामले में सहयोग न दे तो वाइट हाउस का रुख क्या हो सकता है. 

यहां दक्षिणी सूडान का पक्ष कुछ अलग है. वहां के अधिकारियों की दलील है कि जिसे यूएस सूडानी मान रहा है तो असल में कांगो रिपब्लिक से है. दोनों के पास अपने-अपने रिकॉर्ड्स हैं लेकिन सच तो यही है कि एक व्यक्ति के चलते दो देशों की ठनी हुई है. 

कई देश नागरिकों को स्वीकार नहीं रहे

इससे अलग भी कई मामले हैं, जिनमें यूएस से डिपोर्ट हो रहे लोगों को कई देश अपनाने से मना करते रहे, जैसे वेनेजुएला, क्यूबा, इराक और ईरान. अमेरिका में इन देशों के अवैध प्रवासी तो हैं, लेकिन वो चाहकर भी उन्हें डिपोर्ट नहीं कर सकता क्योंकि ये देश अपने ही लोगों को स्वीकार करने से मना करते रहे. कई देशों का तर्क है कि सालों यूएस में रहते हुए ये लोग वहीं के हो चुके और अपने देश का कल्चर नहीं अपना पाएंगे. कई देश अमेरिका से अपने तनाव के चलते जासूस भेजे जाने का शक जताते रहे. 

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why america revoked visas of south sudan amid strict policy on illegal immigrants photo Reuters

स्टेटलेस डिटेंशन झेलना होता है

जब कोई व्यक्ति अवैध प्रवासी साबित हो जाता है और उसे देश से निकाला जाना होता है, लेकिन उसका मूल देश उसे स्वीकार करने से इनकार कर दे, तो वह एक अजीब और बेहद अस्थिर स्थिति में फंस जाता है. इसे स्टेटलेस डिटेंशन या लीगल लिंबो भी कहा जाता है. ऐसे में अमेरिका जैसे देश इन लोगों को डिटेंशन सेंटरों में बंद कर देते हैं.

कानून के मुताबिक, 180 दिनों में अगर डिपोर्टेशन न हो तो उस शख्स को जमानत या निगरानी पर छोड़ा जा सकता है. रिहाई के बाद जिंदगी आसान नहीं होती. ऐसे लोग अपनी जगह छोड़कर जा नहीं सकते. उन्हें लगातार अपनी रिपोर्ट देनी होती है. लेकिन इन सबसे खराब चीज ये कि उन्हें काम करने की इजाजत नहीं होती. वे सूप सेंटरों से खाते और बेघर रहते हैं. 

तीसरे देश का विकल्प भी कम जोखिम वाला नहीं

कई बार यूएस या यूरोप के कुछ देश किसी तीसरे देश को चुनते रहे ताकि स्टेटलेस डिटेनी को वहां भेजा जा सके. अक्सर ये गरीब देश होते हैं जो पैसों के बदले इस काम के लिए राजी हो जाते हैं, लेकिन वहां जाना अवैध प्रवासियों के लिए आग के दरिया में तैरने से कम नहीं. स्थानीय लोग उन्हें नहीं अपनाते, न ही सरकार बढ़िया इंतजाम कर पाती है. यहां भी वे काम नहीं कर पाते और अलगाव झेलते हैं. 

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एक रास्ता है. यूएन अगर उन्हें स्टेटलेस पर्सन घोषित कर दे तो विशेष शरण मिल सकती है, लेकिन ये प्रोसेस बेहद धीमी और सीमित है, जिसमें कमजोर नागरिक लंबी क्यू में पड़े रह जाते हैं. 

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