अगले कुछ महीनों में रूस और यूक्रेन की जंग शुरू हुए चार साल हो जाएंगे. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हालांकि बीच-बचाव की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मॉस्को के सामने वे भी लाचार हैं. इस लड़ाई से यूक्रेन अकेला प्रभावित नहीं, बल्कि पूरे पश्चिम को डर है कि रूस उसके खिलाफ हाइब्रिड वॉर छेड़ चुका. क्या है हाइब्रिड युद्ध और कितना खतरनाक हो सकता है?
हाइब्रिड वॉर को असल युद्ध का दूर-दराज का रिश्तेदार ही मान लीजिए. लेकिन ये ज्यादा शातिर है और इसलिए ज्यादा खतरनाक भी है.
इसमें शांति और जंग के बीच की लाइन हल्की पड़ जाती है. सैनिक सीधी जंग नहीं लड़ते, बल्कि छिप-छिपाकर हमले होते हैं. इस युद्ध का असर नागरिकों पर भी होता है और अर्थव्यवस्था पर भी.
यह पारंपरिक और आधुनिक तौर-तरीकों का मिलाजुला रूप है. इसमें खुले युद्ध का रिस्क लेने की बजाए पीछे से हमले होते हैं. जैसे साइबर अटैक के जरिए इकनॉमी का नुकसान करना. या फिर दुश्मन देश में अगर चुनाव होने वाले हों तो उसमें हस्तक्षेप करते हुए ऐसे दल को जिता देना, जो आपके पक्ष में हो. कई बार सीमा पर तस्करी को बढ़ाया जाता है, जैसे ड्रग तस्करी, जिससे देश के युवा नशे में पड़ जाएं.
सुनने में ये युद्ध जैसा भले न लगे, लेकिन काम ये खुले युद्ध से भी ज्यादा मारक करता है. इसमें चूंकि लड़ाई का एलान नहीं होता, लिहाजा दूसरे देश को संभलने का पलटवार करने का मौका भी नहीं मिलता. और न ही सीजफायर हो पाता है.

रूस ने इसी तरीके से यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था और मानने को भी राजी नहीं था कि क्रीमिया में अस्थिरता लाने वाले उसके अपने थे. इसी तरह से यूक्रेन के कई हिस्सों में रूस समर्थक बढ़ रहे हैं. ये यूं ही नहीं हुआ, बल्कि मॉस्को ने असंतुष्टों के गुस्से को हवा देते हुए अलगाव की आग भड़काई. ये सारी चीजें हाइब्रिड युद्ध ही हैं.
किन कारणों से यूरोप को शक हो रहा है कि रूस ने उसके खिलाफ हाइब्रिड वॉर शुरू कर दिया.
हाल में पोलैंड, डेनमार्क और एस्टोनिया जैसे देशों ने दावा किया कि रूस के ड्रोन उनके हवाई इलाके में घुस आए. ये हमला नहीं, बल्कि चेतावनी देने और डर पैदा करने जैसा कदम माना जा रहा है.
रूस यूरोप की गैस सप्लाई पर पहले से पकड़ रखता है. अब यूरोप को डर है कि रूस पाइप लाइन या बिजली नेटवर्क में दिक्कत पैदा करके सर्दियों में ऊर्जा संकट बढ़ा देगा.
कई यूरोपीय एजेंसियों का कहना है कि मॉस्को सोशल मीडिया और हैकिंग के ज़रिए यूरोप में अफवाहें फैला रहा है. इसका मकसद लोगों के बीच डर और अविश्वास पैदा करना है ताकि सरकारों पर दबाव बढ़े.
रूस पर यह भी आरोप है कि वह यूरोप के देशों में आपसी मतभेद बढ़ा रहा है, ताकि NATO और यूरोपीय संघ कमजोर पड़ जाएं और यूक्रेन को मिल रहा समर्थन घटे.
रूस की ये चालें सीधी जंग नहीं हैं, इसलिए यूरोप तुरंत जवाब नहीं दे पा रहा. पर इन छोटे-छोटे हमलों का असर धीरे-धीरे बड़ा हो रहा है. डरे हुए यूरोप की अमेरिका से बहस हो रही है. कभी पक्के साथी रहे अमेरिका के बारे में उसे लगता है कि वो उसकी सुरक्षा पर ज्यादा गंभीर नहीं. यूरोपीय देश एक-दूसरे पर भी शक कर रहे हैं कि उनकी कमजोर सीमाओं के चलते खतरा बढ़ा है.

क्या रूस किसी भी नुकसान के लिए इम्यून है
नहीं. ऐसा नहीं है. जंग में मॉस्को खुद अब तक छह लाख से ज्यादा सैनिक और नागरिक गंवा चुका. उसकी मुद्रा रूबल में गिरावट है. वो हर तरफ से पाबंदियों से घिरा हुआ है. फिर भी अड़ा हुआ है कि यूक्रेन से जंग नहीं रोकेगा, जब तक वो अपने कुछ हिस्से उसके हवाले न कर दे. जीत इसमें भी नहीं. रूस का टारगेट बड़ा है. वो इस बहाने पश्चिम को कमजोर कर रहा है.
यूरोप के पास क्या हैं तैयारियां
फिलहाल खुली लड़ाई न होने की वजह से उसके पास खास चारा नहीं, सिवाय इसके कि वो अपनी सुरक्षा बढ़ाए. वो रूस पर प्रतिबंध बढ़ा चुका. मॉस्को के करीबी रहे देशों को धमका रहा है. यहां तक कि नाटो के लिए अपना डिफेंस बजट भी बढ़ाने को राजी है. साथ ही वैकल्पिक सेना की भी बात हो रही है. लेकिन इससे रूस को खास फर्क नहीं पड़ रहा. वो पश्चिम को अपने तरीके से परेशान कर रहा है. इधर अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में भी अपनी प्रॉक्सी सेना वैगनर्स के जरिए पहुंच बढ़ा चुका.