कुछ समय पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के काटने की घटनाओं पर चिंता जताते हुए उसपर बड़ा फैसला लेना चाहा लेकिन एनिमल-लवर संस्थाओं के दखल की वजह से ऐसा हो नहीं सका. इधर देश में डॉग बाइट केस लगातार बढ़ रहे हैं. साथ ही रेबीज से मौत की खबरें भी आ रही हैं. इसी बीच ऑस्ट्रेलियाई हेल्थ विभाग ने हमारे यहां रेबीज वैक्सीन पर ही सवाल उठा दिए.
इन देशों ने जताई चिंता
ऑस्ट्रेलिया के हेल्थ डिपार्टमेंट ने कहा कि भारत में नवंबर 2023 से फेक वैक्सीन बेची जा ररही है. साथ ही यहां अभयरब वैक्सीन लगवा चुके लोग रेबीज जैसी जानलेवा बीमारी से पूरी तरह सेफ नहीं. यह वैक्सीन सरकारी कंपनी इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स के ह्यूमन बायोलॉजिकल्स इंस्टीट्यूट में बनती है, जिनमें नकली बैच को लेकर ऑस्ट्रेलिया ने चेताया है. ऑस्ट्रेलिया के मुताबिक, नकली वैक्सीन लगवा चुके लोगों को पर्याप्त सुरक्षा के लिए टीके की नई डोज लेनी चाहिए.
अभयरब वैक्सीन पर चिंता जताने वाला ऑस्ट्रेलिया अकेला देश नहीं. इसी साल नवंबर में अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने कहा था कि भारत से आए एक यात्री में रेबीज का मामला आया. उन्होंने भी देश में फेक अभयरब वैक्सीन का हवाला दिया.
ब्रिटेन के हेल्थ विभाग ने भी दो महीने पहले अभयरब पर सलाह जारी की थी. अपनी चेतावनी में उसने कहा था कि ब्रिटेन की हेल्थ एजेंसियां उन यात्रियों की पहचान कर कर रही हैं जिन्होंने नवंबर 2023 के बाद भारत में किसी जानवर के काटने पर रेबीज वैक्सीन लगवाई थी. 
अभयरब बनाने वाली कंपनी ने ऑस्ट्रेलियाई स्वास्थ्य अधिकारियों के आरोपों पर इनकार करते हुए कहा कि नकली वैक्सीन का पता तुरंत ही लग गया था. ये बैच दिल्ली, मुंबई, आगरा, लखनऊ, कानपुर समेत पटना तक फैल चुके थे. रेड डालते हुए उन्हें आनन-फानन बाजार से हटा लिया गया. चूंकि फेक बैच अब है ही नहीं, ऐसे में वैक्सीन को नकली बताना बेहद गलत है.
भारत में रेबीज के कई टीके मिलते हैं, जिन्हें देशी और विदेशी दोनों कंपनियां बनाती हैं. इनमें अभयरब सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले टीकों में से एक है. देश के करीब 40 फीसदी बाजार में यही फैला हुआ है.
क्या कहना है भारतीय अधिकारियों का
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में एसोसिएशन फॉर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ रेबीज इन इंडिया के अधिकारी डॉ एमके सुदर्शन के हवाले से कहा गया कि देश में जानवरों के काटने पर आम तौर पर रेबीज के पांच इंजेक्शन लगते हैं. अगर इनमें से कोई एक इंजेक्शन संदिग्ध भी हो, तब भी अगर बाकी इंजेक्शन और इम्युनोग्लोब्युलिन लगे हों, तो मरीज सुरक्षित रहेगा.

क्या हाल में वैक्सीन फेल होने के मामले दिखे
साल 2022 में केरल में रेबीज के मामलों में अचानक बढ़ोतरी देखी गई. उस समय कुछ लोगों शक जताया कि टीके असरदार नहीं हैं, क्योंकि मरने वालों में से कई लोगों ने रेबीज का टीका लगवा रखा था. हालांकि, सेंटर की बनाई गई एक कमेटी ने जांच में पाया कि मौत की असली वजह टीका नहीं, बल्कि इलाज में हुई लापरवाही थी. रिपोर्ट के मुताबिक, घाव को सही तरीके से और अच्छे से नहीं धोया गया था और कई मामलों में इम्युनोग्लोब्युलिन नहीं दिया गया.
जब किसी शख्स को एक से ज्यादा बार काटा जाए, या जानवर की खरोंच से स्किन में कट आ जाए, या कटी हुई त्वचा को जानवर चाट ले, तो उसे कैटेगरी 3 की बाइट मानते हैं. ऐसे मामलों में सिर्फ टीका ही नहीं, बल्कि इम्युनोग्लोब्युलिन देना भी बेहद जरूरी होता है.
कैसे काम करता है टीका
रेबीज वैक्सीन शरीर को इस खतरनाक वायरस से लड़ना सिखाती है. जब किसी जानवर के काटने से वायरस शरीर में जाता है, तो वैक्सीन एंटीबॉडी बनवाती है, जो वायरस को दिमाग तक पहुंचने से पहले ही खत्म करने लगती हैं. इसलिए काटने के बाद समय पर वैक्सीन लगवाना बहुत जरूरी होता है. गहरे या कई जगह काटने के मामलों में इम्युनोग्लोब्युलिन भी दिया जाता है. यह पहले से तैयार सुरक्षा लेयर होती है, जो वायरस पर तुरंत असर दिखाती है.