अंग्रेजों के दौर में बने तीन कानून बदलने जा रहे हैं. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इन तीनों कानूनों को बदलने के लिए बिल पेश कर दिए हैं. ये बिल इंडियन पीनल कोड (आईपीसी), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (सीआरपीसी) और इंडियन एविडेंस एक्ट में बदलाव करेंगे.
इन तीनों बिलों को बदलने के लिए पहले जो बिल पेश किए गए थे. इन्हें संसद की स्टैंडिंग कमेटी के पास भेज दिया गया था. कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद इन बिलों को वापस ले लिया गया था. और अब इन्हें रिड्राफ्ट करके फिर से पेश किया गया है.
अमित शाह ने मंगलवार को भारतीय न्याय (सेकंड) संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (सेकंड) संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य (सेकंड) बिल 2023 है. प्रस्तावित बिल आईपीसी, सीआरपीसी और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह लेंगे.
अगस्त में इन बिलों को पेश करते हुए अमित शाह ने कहा था कि इन कानूनों को ब्रिटिश शासन को मजबूत करने और उसकी सुरक्षा करने के लिए बनाया गया था. इनका मकसद दंड देना था, न्याय नहीं. मगर, इन तीनों मौजूदा कानूनों को बदलने वाले इन तीन नए बिलों का मकसद न्याय देना है, न कि दंड देना.
लेकिन अब फिर से जब इन बिलों को पेश किया गया है, तो इनमें कुछ बड़े बदलाव भी हुए हैं. स्टैंडिंग कमेटी की कुछ सिफारिशों को माना गया है, तो कुछ खारिज हो गईं हैं. नए बिल में मॉब लिंचिंग के लिए उम्रकैद से लेकर मौत की सजा तक का प्रावधान किया गया है.
क्या बदलेगा?
- आईपीसीः ये 1860 में बनी थी. कौन सा कृत्य अपराध है और उसके लिए क्या सजा होगी? ये आईपीसी से तय होता है. इसका नाम बदलकर भारतीय न्याय संहिता रखने का प्रस्ताव है.
- सीआरपीसीः साल 1898 में इसे लागू किया गया था. गिरफ्तारी, जांच और मुकदमा चलाने की प्रक्रिया सीआरपीसी में लिखी हुई है.
- इंडियन एविडेंस एक्टः 1872 में इस कानून को लाया गया था. केस के तथ्यों को कैसे साबित किया जाएगा, बयान कैसे दर्ज होंगे, ये सब इंडियन एविडेंस एक्ट में है. इसका नाम भारतीय साक्ष्य बिल रखा जाएगा.
आतंकवाद के दायरे में आएगा ये सब
आईपीसी में आतंकवाद की परिभाषा नहीं थी. बीएनएस के बिल में इसे परिभाषित किया गया था. इसके मुताबिक, जो कोई भारत की एकता, अखंडता, और सुरक्षा को खतरे में डालने, आम जनता या उसके एक वर्ग को डराने या सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने के इरादे से भारत या किसी अन्य देश में कोई कृत्य करता है तो उसे आतंकवादी कृत्य माना जाएगा.
अब जो नया बिल पेश किया गया है, उसमें 'आर्थिक सुरक्षा' शब्द को भी परिभाषा में जोड़ा गया है. इसके तहत, अब जाली नोट या सिक्कों की तस्करी या चलाना भी आतंकवादी कृत्य माना जाएगा. इसके अलावा किसी सरकारी अफसर के खिलाफ बल का इस्तेमाल करना भी आतंकवादी कृत्य के दायरे में आएगा.
नए बिल के मुताबिक, बम विस्फोट के अलावा बायोलॉजिकल, रेडियोएक्टिव, न्यूक्लियर या फिर किसी भी खतरनाक तरीके से हमला किया जाता है जिसमें किसी की मौत या चोट पहुंचती है तो उसे भी आतंकी कृत्य में गिना जाएगा.
इसके अलावा देश के अंदर या विदेश में स्थित भारत सरकार या राज्य सरकार की किसी संपत्ति को नष्ट करना या नुकसान पहुंचाना भी आतंकवाद के दायरे में आएगा.
प्रस्तावित बीएनएस में धारा 113 में इन सभी कृत्यों के लिए सजा का प्रावधान किया गया है. इसके तहत, आतंकी कृत्य का दोषी पाए जाने पर मौत की सजा या उम्रकैद की सजा हो सकती है.
प्रस्तावित बीएनएस में यूएपीए के भी कुछ प्रावधानों को शामिल किया गया है. प्रस्तावित बिल के मुताबिक, एसपी या उसके ऊपर की रैंक के पुलिस अफसर फैसला कर सकते हैं कि किस मामले में यूएपीए जोड़ा जाए या नहीं.
ये दो सिफारिशें खारिज
संसदीय समिति ने भारतीय न्याय संहिता में अडल्ट्री यानी व्यभिचार और असहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे में लाने की सिफारिश की थी. हालांकि, सरकार ने इन दोनों सिफारिशों को नामंजूर कर दिया है. प्रस्तावित बीएनएस में इन्हें लेकर कोई प्रावधान नहीं है.
व्यभिचार को लेकर आईपीसी में धारा 497 में व्यभिचार यानी विवाहेतर संबंध को अपराध माना जाता था. इसके तहत, अगर कोई पुरुष किसी शादीशुदा महिला से उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है तो महिला के पति की शिकायत पर उस पुरुष पर मुकदमा चलाया जा सकता था. सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को रद्द कर दिया था.
इसी तरह सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 के एक हिस्से को भी रद्द कर दिया था. इससे सहमति से बने समलैंगिक संबंध अपराध के दायरे से बाहर हो गए थे. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बगैर सहमति से बनाए गए यौन संबंधों को अभी भी धारा 377 के तहत अपराध माना जाएगा.
हालांकि, प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता में धारा 377 को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है. इसका मतलब हुआ कि पुरुषों, महिलाओं या ट्रांसजेंडर्स के बीच असहमति से बने यौन संबंध भी अपराध के दायरे से बाहर हो जाएंगे.
आगे की राह क्या?
इन तीनों बिलों को 11 अगस्त को संसद में पेश किया गया था. इसके बाद इन्हें रिव्यू के लिए संसदीय समिति के पास भेजा गया था. संसदीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर इन बिलों को फिर से पेश किया गया है. अब इन बिलों को पहले संसद के दोनों सदनों से पास कराना होगा. इसके बाद राष्ट्रपति के दस्तखत होते ही ये कानून बन जाएंगे. बताया जा रहा है कि ये बिल गुरुवार को लोकसभा से पास हो सकते हैं.