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वेनेजुएला से क्यूबा तक, क्यों बार-बार भड़कता है अमेरिका, क्या सच में इन छोटे देशों से खतरा है उसे?

अमेरिका लगातार वेनेजुएला पर हमलावर है. वजह? वॉशिंगटन का कहना है कि वो ड्रग तस्करी कर रहा है और अमेरिकी युवाओं को खत्म कर रहा है. डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने कथित नार्को-टेररिस्ट समूहों को खत्म करने के लिए पूरा तामझाम जुटा लिया. वेनेजुएला ही नहीं, कैरेबियन में तमाम छुटपुट देश उसके निशाने पर रहे.

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डोनाल्ड ट्रंप वेनेजुएला पर नार्को टेररिज्म का आरोप लगा रहे हैं. (Photo- AP)
डोनाल्ड ट्रंप वेनेजुएला पर नार्को टेररिज्म का आरोप लगा रहे हैं. (Photo- AP)

अमेरिका की रूस से तगड़ी दुश्मनी की कहानियां लगभग हर जगह मिलेंगी. रूस एक वक्त पर सैन्य और आर्थिक तौर पर यूएस की टक्कर पर रह चुका, लिहाजा उससे डर समझ आता है. लेकिन वॉशिंगटन कैरेबियन देशों से भी घबराया दिखता है जो शक्लो-सूरत में कहीं उसकी जोड़ पर नहीं. वो वेनेजुएला से कट्टर दुश्मनी ठाने हुआ है. क्यूबा से संबंध टूट चुके. और मेक्सिको को दूर रखने के लिए लंबी-चौड़ी दीवार बनानी शुरू कर दी. महाशक्ति अमेरिका को कैरेबियन देशों से आखिर क्या डर है?

क्या है कैरेबियन

यह द्वीपों और तटीय देशों का समूह है जो अमेरिका के दक्षिण में कैरेबियन सागर और अटलांटिक महासागर के बीच फैला है. इसमें क्यूबा, जमैका, डोमिनिकन रिपब्लिक, हैती, प्यूर्टो रिको जैसे बड़े देश आते हैं. वहीं छोटे द्वीप देशों में त्रिनिदाद और टोबैगो, बारबाडोस, ग्रेनेडा, सेंट लूसिया, सेंट विंसेंट जैसे देश शामिल हैं. वेनेजुएला, कोलंबिया, निकारागुआ और पनामा जैसे देश भी कैरेबियन क्षेत्र का हिस्सा माने जाते हैं क्योंकि इनका समुद्री संपर्क इसी इलाके से है. ये सारा इलाका अमेरिका के पिछले हिस्से की तरफ फैला हुआ है. 

कई देशों के लिए शांति-शांति का आलाप कर रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने ही इस आंगन में लड़ाई-झगड़ा छेड़ रहे हैं. बीते दो महीने में यूएस मिलिट्री ने कैरेबियन सागर में पूरा जमावड़ा खड़ा कर दिया. ये कई दशकों में अमेरिका की सबसे बड़ी तैयारी है. इस बीच उसके हमले में छोटी वेसल्स पर सवाल कई वेनेजुएली नागरिक भी मारे गए, जो कथित तौर पर ड्रग तस्कर थे. 

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nicolas maduro (Photo- Reuters)
अमेरिका लगातार वेनेजुएला की निकोलस मादुरे सरकार पर निशाना साधता रहा. (Photo- Reuters) 

वॉशिंगटन उन्हें नॉरकोटिक्स और नार्को-टेररिस्ट कह रहा है. उसका आरोप है कि वेनेजुएला उसकी सीमा पर ड्रग्स सप्लाई कर रहा है. यहां तक कि वो सरकार और सेना पर भी शक जताता है कि वे या तो ड्रग तस्करों को मदद दे रहे हैं या खुद उस नेटवर्क का हिस्सा हैं. अमेरिका का दावा है कि कोलंबिया से आने वाली कोकीन की बड़ी खेपें वेनेजुएला के रास्ते होकर अमेरिका तक पहुंचती हैं. ट्रंप सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में भी आरोप लगाया था कि वेनेजुएला कोकीन के जरिए अमेरिकी युवाओं को खत्म कर रहा है. 

क्या कहना है वेनेजुएला का

वेनेजुएला इस आरोप को अमेरिका की साजिश कहता रहा. उसका कहना है कि बड़ा देश अमेरिका उसकी कम्युनिस्ट सोच से चिढ़ता है और  उसे भी अपनी तरह पूंजीवादी बनाना चाहता है. वेनेजुएला के पास तेल भी है, जिसे वो कम कीमत पर हड़पने के फेर में रहा. बात न बनने पर नार्को-टेररिज्म जैसे आरोप लगाने लगा. ड्रग सप्लाई के कुछ सबूत मिले भी, लेकिन यह पक्का नहीं हो सका कि इसमें सरकार या सेना की मिलीभगत है. 

इस बार बात छुटपुट संघर्ष से कहीं आगे जा चुकी. अमेरिका ने हरदम कहा कि वो वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो को देश का आधिकारिक नेता नहीं मानता. इसी अगस्त में ट्रंप प्रशासन ने मादुरो की पक्की जानकारी देने वाले के लिए पहले 15 और फिर 50 मिलियन डॉलर का इनाम रख दिया. 

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बाकी देशों से क्यों रहता आया तनाव

कैरेबियन में वेनेजुएला ही नहीं, क्यूबा और निकारागुआ समेत लगभग पूरे के पूरे लैटिन अमेरिका को यूएस सख्ती से ट्रीट करता रहा. दरअसल ये इलाका अमेरिका के ठीक पीछे स्थित है. यही वजह है कि कैरेबियन को यूएस का बैकयार्ड भी कहा जाता है. अगर किसी के आंगन में कोई गड़बड़ी हो जाए तो घर के भीतर मुश्किल पहुंचते देर नहीं लगेगी. यही हिसाब-किताब अमेरिका यहां भी देख रहा है. 

Venezuela Nicolas maduro  supporter (Photo- AFP)
वेनेजुएला में मादुरे सरकार के समर्थक अमेरिका के खिलाफ प्रोटेस्ट कर रहे हैं. (Photo- AFP)

उसने 19वीं सदी से इन इलाकों को अपने प्रभाव क्षेत्र की तरह देखना शुरू कर दिया. साल 1904 में राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने कहा था कि यूरोपीय ताकतें अगर यहां हस्तक्षेप करें तो अमेरिका इसे खुद पर खतरा मानेगा. संदेश साफ था, यह इलाका हमारा है. इसके बाद से अमेरिका ने बार-बार कैरेबियन देशों की राजनीति में दखल दिया. कभी क्यूबा में सैन्य हस्तक्षेप, कभी पनामा में सरकार बदलवाना, तो कभी हैती और डोमिनिकन रिपब्लिक में सैनिक भेजना. निकारागुआ जैसे देशों के खिलाफ भी उसने आर्थिक और राजनीतिक दबाव बनाए रखा. 

मेक्सिको बन गया गेहूं में घुन

मेक्सिको वैसे उत्तरी अमेरिका में है लेकिन इसका पूर्वी हिस्सा कैरेबियन सागर से जुड़ता है. इसे सीधे-सीधे कैरेबियन का हिस्सा तो नहीं कहा जाता, लेकिन इस क्षेत्र की राजनीति और व्यापार पर इसका बड़ा असर रहा. नतीजा ये रहा कि अमेरिका मेक्सिको से नाराज रहने लगा.

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यह सारा सिस्टम उस क्लासिक थ्योरी पर काम करता है, जिसमें दुश्मन का दोस्त भी दुश्मन दिखने लगे. तनाव तब और बढ़ा, जब मेक्सिको की सीमा से न सिर्फ मेक्सिकन, बल्कि दूसरे देशों के लोग भी यूएस पहुंचने लगे. अमेरिका ने इसे भी आतंकवाद के रूप की तरह देखा. ड्रग्स को लेकर भी वो उसपर आरोप लगाता रहा. 

कुल मिलाकर, महाशक्ति अमेरिका इन चुनिंदा छोटे देशों पर हमेशा ही हमलावर रहा. इसमें मसला ड्रग्स कम, विचारधारा ज्यादा है. क्यूबा और वेनेजुएला में अब भी कम्युनिस्ट ताकतें काम करती हैं. ऐसे में बहुत संभव है कि वे रूस से जुड़ जाएं, या चीन से हाथ मिला लें. अमेरिका के लिए ये बड़ी हार होगी. यही वजह है कि वो इन्हें साधने की कोशिश में रहा.

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