scorecardresearch
 

मनोज बाजपेयी बोले- 'अलीगढ़' के गे प्रोफेसर आज होते तो उन्हें मरना नहीं पड़ता

मनोज बाजपेयी ने कहा, कमजोर लोगों की मदद के लिए हम सबको सरकार और कानून की जरूरत है.

Advertisement
X
अलीगढ़ में मनोज बाजपेयी
अलीगढ़ में मनोज बाजपेयी

सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी के अनुच्छेद 377 को निरस्त कर दिया गया है. फिल्म 'अलीगढ़' में मुख्य भूमिका निभा चुके अभिनेता मनोज बाजपेयी समलैंगिकता को अपराध मानने वाले कठोर कानून को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खत्म किए जाने से खुश हैं.

मनोज ने कहा, "मैंने 'अलीगढ़' में जब समलैंगिक प्रवक्ता रामचंद्र सिरास का किरदार निभाया, तब मैंने जाना कि अकेलापन क्या होता है. मेरे लिए व्यक्ति का अकेलापन उसकी यौन उन्मुक्तता से ज्यादा मायने रखता है. मुझे लगता है कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला देशभर के ऐसे सताए गए और भेदभाव से पीड़ित लोगों की जीत है."

उन्होंने कहा, "कमजोर लोगों की मदद के लिए हम सबको सरकार और कानून की जरूरत है. 'अलीगढ़' का प्रोफेसर अगर आज होता तो उसे मरना नहीं पड़ता."

अभिनेता ने समलैंगिक प्रोफेसर का किरदार निभाने के दौरान के अपने संघर्ष को याद करते हुए कहा, "मैं तब अकेलेपन से परेशान एक आदमी जैसा महसूस करता था, जिसे सेक्स से ज्यादा किसी के साथ की जरूरत थी. एलजीबीटी समुदाय के हमारे सभी साथियों को हमारे समर्थन और मदद की जरूरत है. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से समलैंगिक लोगों के लिए स्थिति सामान्य करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा है. लेकिन उनके अधिकारों के लिए हमें अभी लंबा सफर तय करना है." कई लोगों के विपरीत, मनोज को यह नहीं लगता कि फिल्म उद्योग में समलैंगिकों के लिए भेदभाव है.

Advertisement

उन्होंने कहा, "अन्य क्षेत्रों की तरह यहां भी यह समुदाय है. लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमारे फिल्म उद्योग में विशेष रूप से समलैंगिकों से भेदभाव किया जाता है. जब 'अलीगढ़' के सामने कई बाधाएं आईं, तो मीडिया ने इसका बचाव किया. यद्यपि ट्रेलर को 'ए' प्रमाण पत्र मिला था, जिससे हम इसे टीवी पर नहीं दिखा सकते थे. इसके बावजूद चैनलों ने हमें संगीत और डांस शोज में फिल्म का प्रचार करने के लिए आमंत्रित किया."

मनोज ने कहा, "नई फिल्म 'गली गुलियां' में मैंने 'अलीगढ़' में अकेलेपन के शिकार समलैंगिक व्यक्ति से भी ज्यादा अकेले व्यक्ति का किरदार निभाया है. ऐसी फिल्मों को समर्थन मिलना चाहिए. ऐसे किरदार निभाकर मैं गर्व महसूस करता हूं.ऐसी फिल्मों के लिए थिएटरों की कमी और फिल्म के लिए उपयुक्त समय नहीं दिए जाने से मुझे गुस्सा आता है."

Advertisement
Advertisement