दशरथ मांझी, एक ऐसा नाम जो इंसानी जज्बे और जुनून की मिसाल है. वो दीवानगी, जो प्रेम की खातिर जिद में बदली और तब
तक चैन से नहीं बैठी, जब तक कि पहाड़ का सीना ना चीर दिया.
जुनून और दर्द की दास्तां
हाथ में हथौड़ा-छेनी और सीने में फौलाद, 22 साल की इंसानी मेहनत के आगे पत्थर भी पिघलकर
रास्ता देने पर मजबूर हो गया. केतन मेहता की फिल्म 'माउंटेन मैन' आ रही है और आपको नवाजुद्दीन सिद्दकी की आंखों में दशरथ
मांझी का अक्स दिख सकता है. लेकिन दशरथ की जिंदगी में झांकेंगे, तो जुनून भी मिलेगा और दर्द भी...
22 साल दिन-रात की मेहनत
पत्नी के चले जाने के गम से टूटे दशरथ मांझी ने अपनी सारी ताकत बटोरी और पहाड़ के सीने पर
वार करने का फैसला किया. लेकिन यह आसान नहीं था. शुरुआत में उन्हें पागल तक कहा गया. दशरथ मांझी ने बताया था, 'गांववालों
ने शुरू में कहा कि मैं पागल हो गया हूं, लेकिन उनके तानों ने मेरा हौसला और बढ़ा दिया.'
जिसने रास्ता रोका, उसे ही काट दिया
बिहार में गया के करीब गहलौर गांव में दशरथ मांझी के माउंटन मैन बनने का सफर
उनकी पत्नी का जिक्र किए बिना अधूरा है. गहलौर और अस्पताल के बीच खड़े जिद्दी पहाड़ की वजह से साल 1959 में उनकी बीवी
फाल्गुनी देवी को वक्त पर इलाज नहीं मिल सका और वो चल बसीं. यहीं से शुरू हुआ दशरथ मांझी का इंतकाम
अकेला शख्स पहाड़ भी फोड़ सकता है
साल 1960 से 1982 के बीच दिन-रात दशरथ मांझी के दिलो-दिमाग में एक ही चीज ने कब्जा कर रखा था. पहाड़ से अपनी पत्नी की
मौत का बदला लेना. और 22 साल जारी रहे जुनून ने अपना नतीजा दिखाया और पहाड़ ने मांझी से हार मानकर 360 फुट लंबा, 25
फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता दे दिया.
दुनिया से चले गए लेकिन यादों से नहीं!
दशरथ मांझी के गहलौर पहाड़ का सीना चीरने से गया के अतरी और वजीरगंज ब्लॉक का फासला 80 किलोमीटर से घटकर 13
किलोमीटर रह गया. केतन मेहता ने उन्हें गरीबों का शाहजहां करार दिया. साल 2007 में जब 73 बरस की उम्र में वो जब दुनिया छोड़
गए, तो पीछे रह गई पहाड़ पर लिखी उनकी वो कहानी, जो आने वाली कई पीढ़ियों को सबक सिखाती रहेगी.
नवाज बनेंगे दशरथ मांझी!
अब दशरथ मांझी की जिंदगी पर फिल्म बन रही है मांझी- 'माउंटेन मैन', इस फिल्म में नवाजुद्दीन मांझी का चोला ओढ़े पहाड़ से दो-दो
हाथ करने को तैयार हैं. इस फिल्म का ट्रेलर रिलीज हो चुका है. जिसमें मांझी के किरदार में नवाज कहते नजर आ रहे हैं कि, 'भगवान
के भरोसे मत बैठिए, क्या पता भगवान हमारे भरोसे बैठा हो!' दशरथ मांझी ने अपनी पूरी जिंदगी इसी बात को सही ठहराने में झोंक दी
और उनके हौसले ने पहाड़ का गुरूर भी मिट्टी बना दिया. मांझी पर ना जाने कितना कुछ लिखा-बोला जा सकता है, लेकिन उनके जुनून
की तारीफ में शब्द भी कम रह जाएंगे...वाकई इंसान और पहाड़ का यह दंगल बड़ा लंबा चलने वाला है.