
इंडियन सिनेमा लवर्स को जब भी रूटीन फिल्मों से अलग, कुछ हटके और दमदार कंटेंट की तलाश शुरू होती है, मलयालम सिनेमा कभी निराश नहीं करता. बॉलीवुड से साउथ तक फिल्म इंडस्ट्रीज जहां अद्भुत हीरो वाली, दमदार सुपरहीरो फिल्में बनाने की कोशिश पिछले कई सालों से कर रही हैं. वहीं मलयालम ने देश की पहली फीमेल सुपरहीरो फिल्म बना डाली- लोका: चैप्टर 1- चंद्रा'.
अगस्त में रिलीज हुई, कल्याणी प्रियदर्शन स्टारर इस फिल्म ने अब मलयालम इंडस्ट्री में नया इतिहास रच दिया है. फीमेल सुपरहीरो की कहानी लेकर आई 'लोका' अब मलयालम सिनेमा की सबसे कमाऊ फिल्म बन चुकी है, वो भी सिर्फ इस साल की नहीं, बल्कि ऑल टाइम. सिर्फ 30 करोड़ के बजट में बनी 'लोका' वर्ल्डवाइड 292 करोड़ कलेक्शन कर चुकी है और 300 करोड़ के बहुत करीब है.

इंडस्ट्री की टॉप फिल्म बनने के लिए इसने अपनी इंडस्ट्री की जिस फिल्म को पछाड़ा है, वो सुपरस्टार मोहनलाल की 'एम्पुरान' है. मोहनलाल की फिल्म ने वर्ल्डवाइड करीब 268 करोड़ ग्रॉस कलेक्शन किया था. 'लोका' का ये रिकॉर्ड सिर्फ एक बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड भर नहीं है. बल्कि पुरुष-प्रधान मलयालम इंडस्ट्री में महिलाओं के लिए एक लैंडमार्क है. आइए बताते हैं कैसे...
टॉप मलयालम फिल्मों में गायब होती हैं महिलाएं
सेंसिटिव, टेक्निकली दमदार, इमोशंस की गहराई और रियलिटी भरी कहानियां दिखाने के लिए मलयालम सिनेमा की तारीफ हमेशा होती रही है. लेकिन 'इंटेलेक्चुअल' फिल्में बनाने के मामले में सबसे आगे माने जाने वाली इस इंडस्ट्री में महिलाओं का रिप्रेजेंटेशन बहुत कमजोर रहा है. इसका सीधा उदाहरण 'लोका' से पहले मलयालम इंडस्ट्री की बाकी टॉप फिल्में हैं.
मोहनलाल की ही 'एम्पुरान' में केवल मंजू वारियर का निभाया एक महत्वपूर्ण फीमेल किरदार कहानी में हाईलाइट हो पाता है. मगर वो भी मुश्किलों में फंसी महिला का किरदार है, जिसे हीरो और बाकी पुरुष सपोर्टिंग किरदार बचाते रहते हैं. 'मंजुमेल बॉयज' की कहानी दोस्तों के एक ग्रुप पर थी मगर इसमें एक भी सपोर्टिंग फीमेल किरदार असरदार नहीं था.
मोहनलाल की ही 'थुडरम' में महिला किरदार के नाम पर बस उनकी पत्नी का रोल है, जो हीरो की इमोशनल एंकर जैसा भी नहीं है. और फहाद फाजिल की 'आवेशम' में तो आपको किसी फ्रेम में कोई औसत लेंग्थ वाला महिला किरदार भी नहीं मिलेगा. ये मलयालम सिनेमा की बहुत पुरानी कहानी रही है.
तेलुगू-तमिल से भी बहुत पीछे है मलयालम सिनेमा
तेलुगु और तमिल सिनेमा पर अक्सर आरोप लगता है कि वहां फिल्मों में हीरो पूजे जाते हैं. वहां बड़े-बड़े स्टार्स अपने फैन क्लब्स और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के दम पर हर फिल्म की कहानी अपने इर्द-गिर्द ही बुनवाते हैं. मगर इन हीरो सेंट्रिक फिल्मों में भी हीरोइनें कम से कम पर्दे पर दिखती तो हैं.
टॉप ग्रॉस कलेक्शन वाली तमिल फिल्मों का उदाहरण देखिए— '2.0' की कहानी में भले किसी महिला किरदार का रोल ना बनता हो, मगर इसके प्रीक्वल 'रोबोट' में ऐश्वर्या राय के किरदार के बिना कहानी का कनफ्लिक्ट ही पूरा नहीं हो सकता. वो हीरो की इमोशनल एंकर का भी रोल करती हैं.
हाल ही में आई रजनीकांत की 'कुली' में श्रुति हासन का किरदार बहुत महत्वपूर्ण था और उनके पास फिल्म के कई वजनदार सीन्स भी थे. मणिरत्नम की 'पोन्नियन सेल्वन' है ही दो महिला किरदारों की कहानी. इसी तरह 'अमरन' एक सोल्जर की बायोपिक है फिर भी अगर साई पल्लवी का किरदार ना हो तो इस फिल्म का सारा वजन खत्म हो जाएगा.
तेलुगू सिनेमा पर महिलाओं को 'सजावटी' किरदारों में दिखाने का आरोप अपनी जगह सही तो लगता है. मगर यहां की सबसे बड़ी फिल्मों भी महिलाएं पर्दे पर तो रहती ही हैं और वो भी यादगार किरदारों में. श्रीवल्ली के बिना 'पुष्पा' की कहानी क्या वैसी ही रहेगी? शिवगामी देवी और देवसेना के बिना 'बाहुबली' की कहानी कही जा सकती थी क्या? 'RRR' में आप महिला किरदारों की कमी की शिकायत कर सकते हैं, मगर दूसरी तरफ 'कल्कि 2898 AD' है ही दीपिका पादुकोण के किरदार की कहानी.
तमिल और तेलुगू इंडस्ट्रीज में कई साल ऐसी फिल्में सबसे कमाऊ रही हैं जो लीड फीमेल किरदारों की कहानी थीं. नयनतारा का लेडी सुपरस्टार कहलाना इन्हीं दो इंडस्ट्रीज की देन है. समांथा, अनुष्का शेट्टी, त्रिशा, कीर्ति सुरेश, मालविका मोहनन, ऐश्वर्या राजेश जैसी फीमेल स्टार्स की मौजूदगी बताती है कि इन इंडस्ट्रीज में एक्ट्रेसेज के लिए दमदार काम तो है ही. इनकी फिल्मों ने बिजनेस भी सॉलिड किया है.
इसके सामने, क्या आपको आज के दौर में किसी मलयालम फीमेल स्टार का नाम झट से याद आता है? इस सवाल का जवाब ही सबूत है कि कल्याणी की 'लोका' कितनी ऐतिहासिक है.

डर, संघर्ष और बदलाव की आहट
2017 में बना वीमेन इन सिनेमा कलेक्टिव (WCC) मलयालम इंडस्ट्री की असली तस्वीर सामने लाया. मलयालम एक्ट्रेसेज, डायरेक्टर्स और दूसरे फिल्म डिपार्टमेंट्स में काम करने वाली महिला आर्टिस्ट इस इनिशिएटिव का हिस्सा बनीं. WCC ने महिलाओं की कम फीस, अवसरों की कमी, फिल्म सेट्स पर हैरेसमेंट और सैनिटेशन की कमी जैसे मुद्दे पहली बार खुले मंच पर रखे. इस इनिशिएटिव ने मलयालम सिनेमा की कलई खोलकर रख दी.
इसी बैकग्राउंड में 'उयरे', 'द ग्रेट इंडियन किचन', 'जय जय जय हे' जैसी फिल्में आईं. मगर ये धारणा बनी रही कि फीमेल लीड वाली फिल्में सिर्फ अवॉर्ड जीतती हैं, कमाई नहीं करतीं. 'लोका' ने सीधा इस धारणा पर कुल्हाड़ी मारी है. अब प्रोड्यूसर्स फीमेल लीड वाली कहानी सामने रखे होने पर ये बहाना नहीं बना सकते कि ऐसी फिल्में कमाई नहीं करतीं.
सिनेमा में प्रतीक बहुत मायने रखते हैं और इस मामले में भी 'लोका' का कमाल बहुत तगड़ा है. कल्याणी प्रियदर्शन इस फिल्म में सिर्फ ऐसा महिला किरदार नहीं निभा रहीं, जिसे बार-बार पुरुष बचाते रहें. या बिना सपोर्टिंग पुरुष किरदार के उसकी कहानी आगे ही नहीं बढ़ सकती.
वो अच्छे-तगड़े पुरुष विलेन्स को धूल चटा देने वाली सुपरहीरो हैं. जहां आजतक हॉलीवुड एक दमदार फीमेल हीरो तैयार करने में स्ट्रगल करता लग रहा है, तब मलयालम सिनेमा का इस जॉनर में कामयाब हो जाना एक बहुत बड़ा प्रतीक भी है कि दर्शक महिला कलाकारों के कंधों पर टिकी फिल्मों के लिए तैयार हैं, आप बस इस तरह का कंटेंट बनाइए.