
लॉकडाउन के बाद वाले दौर में एक ये अनकहा नियम सा बनता जा रहा है कि सोशल मैसेज वाली फिल्मों से दमदार बिजनेस के उम्मीद करना बेमानी है. मगर इस परसेप्शन के उलट साउथ के एक फिल्ममेकर ने साबित किया है कि अगर फिल्ममेकिंग दमदार है, तो जनता अभी भी सोशल मैसेज वाली फिल्मों को सम्मान देने में नहीं चूकेगी.
डायरेक्टर मारी सेल्वराज की लेटेस्ट फिल्म 'बाइसन' दिवाली पर रिलीज हुई थी. करीब 30 करोड़ की बजट में बनी इस फिल्म के हीरो ध्रुव विक्रम हैं, जो खुद अभी करियर की शुरुआत ही कर रहे हैं. मगर इसके बावजूद 'बाइसन' वर्ल्डवाइड 100 करोड़ कमाने की दहलीज पर है और बड़ी हिट बन चुकी है. मारी सेल्वराज की ये सक्सेस इसलिए भी बड़ी हो जाती है कि वो लगातार दलित स्ट्रगल को बड़े पर्दे पर दिखा रहे हैं. इसके लिए वो आलोचनाएं और ट्रोलिंग भी झेल रहे हैं. मगर ना सिर्फ वो सोशल मैसेज डिलीवर कर रहे हैं बल्कि हिट भी दे रहे हैं.
खुद दलित परिवार से आते हैं मारी सेल्वराज
मारी सेल्वराज खुद एक दलित परिवार से आते हैं. उन्होंने इंटरव्यूज में ये कहा है कि उन्होंने जाति के भेदभाव की वजह से अपने पिता को बहुत संघर्ष करते देखा. उनका खुद का संघर्ष और अनुभव उनकी फिल्मों में भी खूब नजर आता है. उन्होंने इंटरव्यूज में बताया है कि जब वो अपने गांव से पढ़ने के लिए चेन्नई पहुंचे तो उनके लिए ये बहुत बड़ा कल्चरल शॉक था. उनकी जेब भी खाली थी और सर्वाइव करने के लिए कई छोटे-मोटे काम करने पड़े.

नौकरी खोजते हुए ही वो जानेमाने तमिल डायरेक्टर राम के पास पहुंचे थे, जिन्होंने उन्हें ऑफिस बॉय का काम दिया. राम ने मारी में स्टोरीटेलिंग का टैलेंट पहचाना और उन्हें फिल्ममेकिंग में ग्रूम किया. फिल्म के लिए जब मारी ने अपनी पहली कहानी लिखी तो उसमें दलित पहचान का मुद्दा बहुत प्रमुख था. तमिल इंडस्ट्री में 'एंटी-कास्ट' मूवमेंट स्टार्ट करने वाले बड़े नामों में से एक, पा रंजित ने मारी की इस कहानी को प्रोड्यूस किया. पहली ही फिल्म से मारी ने साबित किया कि वो उनके पास सिर्फ ये एक मुद्दा ही नहीं है, बल्कि फिल्ममेकिंग का सीरियस हुनर भी है.
बड़े पर्दे पर लगातार दलित हक की बात कर रहे हैं मारी
अपनी लेटेस्ट फिल्म 'बाइसन' में मारी ने एक कबड्डी प्लेयर की कहानी दिखाई है, जिसे उसकी जाति की वजह से बहुत स्ट्रगल करना पड़ता है. प्रतीकों के बेहतरीन इस्तेमाल से उन्होंने जिस तरह अपने हीरो के स्ट्रगल और जाति संघर्ष को दिखाया, उसकी बहुत तारीफ हुई. मगर ये पहली बार नहीं है जब उनकी फिल्म दलित स्ट्रगल को हाईलाइट कर रही है.
अपनी पहली ही फिल्म 'परियेरुम पेरुमल' (2018) से वो लगातार इस टॉपिक को हाईलाइट कर रहे हैं. उनकी इस फिल्म में एक ऐसी लव स्टोरी थी जिसमें लड़के का दलित होना, लड़की के घरवालों को नहीं पचता. इसी साल दलित स्ट्रगल को दिखाने के लिए तारीफ बटोरने वाली बॉलीवुड फिल्म 'धड़क 2', मारी की 'परियेरुम पेरुमल' का ही रीमेक है.
अगली फिल्म 'कर्णन' (2021) में मारी ने धनुष को लीड हीरो लिया. इस बार बार वो एक गांव की कहानी लेकर आए जिसमें अधिकतर दलित लोग हैं और उन्हें अपने पड़ोस के इलाकों से लगातार अपनी जाति के लिए अपमान झेलना पड़ता है. फिल्म को क्रिटिक्स की तारीफ के साथ बॉक्स ऑफिस पर बड़ी कामयाबी भी मिली. ये 2021 की सबसे कमाऊ तमिल फिल्मों में से एक थी. 'मामन्नन' (2023) में मारी ने फिर से दलित स्ट्रगल को हाईलाइट करने वाली कहानी दिखाई और इस बार भी उन्हें बॉक्स ऑफिस पर एक बड़ी हिट मिली.
'वालई' (2024) में मारी ने केले के बागानों में काम करने वाले मजदूरों की लाइफ को कहानी का हिस्सा बनाया. हमेशा की तरह दलित स्ट्रगल उनकी इस कहानी में भी था. बिना बड़े स्टार, एक स्कूल जाने वाले लड़के की कहानी दिखाती इस फिल्म ने फिर से ट्रेड को सरप्राइज किया. माना जाता है कि ये फिल्म मारी की तरफ से ये दिखाने की कोशिश थी कि वो बिना बड़े स्टार्स के भी, अपनी कहानियों के साथ हिट फिल्म दे सकते हैं. और अब 'बाइसन' के साथ उन्हें फिर बड़ी कामयाबी मिली है. मगर इस फिल्म के लिए उन्हें ट्रोलिंग और आलोचनाओं का भी खूब सामना करना पड़ा.
फिल्म के लिए क्यों हुई मारी सेल्वराज की ट्रोलिंग?
पिछले कुछ सालों में किसी भी इंडस्ट्री की बॉक्स ऑफिस सक्सेस का पैमाना 1000 करोड़ वर्ल्डवाइड कलेक्शन बन चुका है. बॉलीवुड और तेलुगू इंडस्ट्रीज ने तो कई बार ये लैंडमार्क पार किया ही है. यश की 'KGF 2' के सहारे कन्नड़ सिनेमा भी इस खास क्लब में एंट्री ले चुका है. मगर देश की कुछ सबसे बड़ी फिल्में दे चुके तमिल सुपरस्टार रजनीकांत का साथ भी तमिल इंडस्ट्री को 1000 करोड़ तक नहीं ले जा पा रहा. ऐसे में तमिल सिनेमा फैन्स थोड़े नाराज हैं. मगर ऐसे फैन्स ने अपने गुस्से की तोप मारी सेल्वराज की तरफ मोड़ दी.
एक्स और रेडिट जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर तमिल सिनेमा फैन्स ने इस तरह का नैरेटिव क्रिएट किया कि बाकी इंडस्ट्रीज तो लगातार अपना स्केल बढ़ा रही हैं. मगर मारी जैसे फिल्ममेकर्स जाति संघर्ष जैसे 'अप्रासंगिक' मुद्दों से ही चिपके हुए हैं. वो मेनस्ट्रीम एंटरटेनमेंट छोड़कर ऐसी फिल्में बना रहे हैं जो जाति के नैरेटिव को ही आगे बढ़ाती हैं. सोशल मीडिया पर जब ये नैरेटिव बढ़ा तो मारी के साथ, तमिल इंडस्ट्री से ही उनके दो और साथी वेट्री मारन और पा रंजित भी लपेटे गए. दरअसल, ये तिकड़ी तमिल सिनेमा में एक 'एंटी-कास्ट' वेव लेकर आई है जिसमें कहानियों में दलितों के लिए एक समान अधिकारों की मांग करने वाला प्लॉट होता है.
मारी ने दिया करारा जवाब
'बाइसन' मारी के करियर की पांचवीं फिल्म है और उनकी पांचों फिल्में लगातार हिट रही हैं. ये अपने आप में इस बात का सबूत है कि वो दलित एंगल वाली कहानियों के साथ भी, अपनी इंडस्ट्री के लिए बॉक्स ऑफिस सक्सेस लेकर आ रहे हैं. मगर 'बाइसन' की सक्सेस के बाद भी मारी से लगातार उनकी फिल्मों को लेकर सवाल किया जाता रहा है. हाल ही में उन्होंने इस सवाल का करारा जवाब दिया है.
'बाइसन' की सक्सेस मीट पर मारी ने कहा कि फिल्मों से दो ही उम्मीदें की जानी चाहिए— वे एंटरटेन करें, या तो एजुकेट करें. 'मुझसे ये मत पूछिए कि मैं ऐसी ही फिल्में क्यों बनाता हूं. ये सवाल मुझे बहुत परेशान करता है. मैं इस बात पर बहुत दृढ़ हूं कि मैं जाति के मुद्दों को हाईलाइट करने वाली फिल्में बनाता रहूंगा. हर साल 300 फिल्में पूरी तरह एंटरटेनमेंट के लिए बनाई जाती हैं. मुझे बख्श दीजिए', मारी ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा.
नित नए बॉक्स ऑफिस कीर्तिमान रचते भारतीय सिनेमा में जमीन से जुड़े लोगों और उनके संघर्षों की कहानियां वैसे भी गायब होती जा रही हैं. मारी की तरह गिने-चुने फिल्ममेकर्स ही ऐसी थीम को थामे हुए हैं और उसमें भी दमदार फिल्ममेकिंग से इन कहानियों के साथ न्याय करने वाले कम हैं. अब ये फैसला तो जनता के हाथ में है कि वो मारी की फिल्मों को आगे भी प्यार देते रहेंगे या नहीं.