फिल्मः हैप्पी एंडिंग
एक्टरः गोविंदा, सैफ अली खान, इलियान डि क्रूज, रनवीर शौरी, कल्कि कोएचलिन
डायरेक्टरः राज निदिमोरू, कृष्णा डीके
ड्यूरेशनः 2 घंटे 12 मिनट
रेटिंगः 5 में 2.5 स्टार
यूडी जेटली अमेरिका में रहने वाला देसी है. उसकी एक किताब हिट हो गई. दूसरी लिखी ही नहीं. क्योंकि पहली की कमाई पर ही ऐश जारी थी. पर इधर कुछ बरसों से हिंदी फिल्म के हीरो को जो बीमारी हो रखी है, वह उसे भी थी. कमिटमेंट फोबिया. फिर एक रोज उसके बम (पढ़ें पाछा) पर किस्मत की लात पड़ती है. अब वो बेस्ट सेलिंग ऑथर नहीं रहा. ये जगह एक और देसी ने ले ली है. कन्या, नाम आंचल रेड्डी. जो लिखती है लव स्टोरीज. जिन पर यूं तो वह खुद भी यकीन नहीं करती. पर क्या करें, बाजार को यही चाहिए.
यूडी अपनी कार और किस्मत वापस पाने के लिए करता है एक समझौता. खुद पर ही चुम्मा उछालते एक भारतीय सिंगल स्क्रीन फिल्मों के स्टार अरमान के लिए स्क्रिप्ट लिखने का करता है फैसला. वैसे लिखने जैसा कुछ है नहीं. बस बहुत सारी विदेशी फिल्में देखकर, उनसे अन्नू मलिक और प्रीतम मार्का प्रेरणा ले कुछ लिखना है. यहां से यूडी और आंचल की फिल्म के सीन के हिसाब से लव स्टोरी शुरू होती है. पहले झिकपिक. फिर ही इज नॉट दैट बैड. इसके बाद एक ट्रिप, बैड एंड गुड एक्सपीरियंस और अंत बेड पर ट्रिपिंग. अब कहानी में ट्विस्ट आना चाहिए. तो इमोशनल ड्रामा और लास्ट में हैप्पी एंडिंग. टेड़ें.
इन सबके बीच यूडी का दोस्त है, जो अपनी बीवी से डरता है. यूडी की एक्स गर्लफ्रेंड है. जो अब उसकी फ्रेंड फिलॉस्फर और गाइड बन गई है. और एक इरीटेटिंग मौजूदा गर्लफ्रेंड है, जिससे यूडी पीछा छुड़ाना चाहता है.
फिल्म 'हैप्पी एंडिंग' की सबसे बड़ी खासियत हैं इसके डायलॉग्स, जो कि एकदम ताजे डाल के टूटे और मजेदार हैं. ये भचाक से आपके चेहरे पर पड़ते हैं. मगर इसके इर्द गिर्द ही फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है. और वह है कहानी. ऐसा लगता है जैसे सैफ अली खान की कई फिल्मों मसलन, हम-तुम, सलाम नमस्ते, कॉकटेल वगैरह का कॉकटेल बना दिया गया हो. निर्देशक ये कह सकते हैं कि साहब हमने तो पहले ही फिल्म के पोस्टर पर लिख दिया था. ए कॉमेडी ऑन कॉमेडी फिल्म्स. मगर सिर्फ इतने से आपकी कच्ची लोई नहीं हो जाती सर जी. बेईमंटी है ये.
सैफ अली खान पर्दे पर बूढ़े दिखते हैं. अब उनका लोफरों और लड़कपने से भरा किरदार कुछ अश्लील सा जान पड़ता है. पुरानी कढ़ी में उबाल सा. इलियाना डि क्रूज बर्फी के बाद लगातार एक ही तरह के रोल कर रही हैं. न तो कुछ वैराइटी है और न ही बहुत रेंज. इसके अलावा सब उम्दा हैं. कल्कि कोएचलिन को खिझाने वाली गर्लफ्रेंड के रोल का पेटेंट हासिल कर लेना चाहिए. पहले जिंदगी न मिलेगी दोबारा और अब यह फिल्म. वह कमाल की हैं. इसी तरह परेशान दोस्त के रोल रणवीर शौरी के लिए रिजर्व किए जा सकते हैं. बढ़िया कॉमेडी टाइमिंग है उनकी. सुपरस्टार गोविंदा पर्दे पर आते हैं और नब्बे के दशक की तरह हंसी लाते हैं. ये उनके लिए बिल्कुल टेलर मेड रोल था. इसी तरह अरसे बाद प्रीटी जिंटा को पर्दे पर देखना सुकून देता है. वह आज भी बहुत प्यारी और संजीदा दिखती हैं. फिल्म का म्यूजिक महान नहीं है. पर बुरा भी नहीं है. ज्यादातर गाने आसपास बैठी जनता को याद थे. जाहिर है कि हिट हो गए हैं बरास्ते एफएम. फिल्म की रफ्तार ठीक है और लेंथ भी बहुत ज्यादा नहीं है. मगर एंडिंग. जिसके इर्द गिर्द फिल्म का टाइटिल बुना गया, बहुत ही प्रत्याशित है. यहीं फिल्म धराशायी होती लगती है. गोया निर्देशक 'हैप्पी एंडिंग' करने के दबाव में आ गए हों, पूरी फिल्म में उसी फलसफे का मजाक बनाने के बाद. इसके अलावा यूडी का अपने ही डबल रोल वाले शख्स से अकेले में बात करना, सलाह लेना भी घिसा हुआ फॉर्मूला है, जो यहां भी कुछ खास नहीं कर पाता.
डायरेक्ट राज और कृष्णा इससे पहले शोर इन द सिटी और गो गोवा गॉन जैसी फिल्में बना चुके हैं. उनका भी यही हाल था. संभावनाओं से भरी, मगर कई झोल भी. यहां इस डायरेक्टर जोड़ी ने फिल्म के डायलॉग्स पर खूब मेहनत की है. लोकेशन और ट्रीटमेंट के लिहाज से भी कुछ फ्रेशनेस है. मगर स्टोरी को जबरन स्मार्ट बनाने के फेर में घपला हो गया है.
'हैप्पी एंडिंग' देख सकते हैं, अगर तीखे संवादों वाली कॉमेडी पसंद है. अगर सैफ अली खान अब भी हैंडसम लगता है और इलियाना क्यूट. फिल्म को गोविंदा, कल्कि, रणवीर, प्रीटी के लिए भी देख सकते हैं. एवरेज से कुछ ऊपर है ये. बस इसकी 'हैप्पी एंडिंग' एवरेज है.