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Film Review: 'गुड्डू की गन' खाली है

यह कहानी है बिहार के रहने वाले सेल्समैन 'गुड्डू' (कुणाल खेमू) की जो इश्कबाज प्रवृत्ति का है. वो अपने दोस्त लड्डू (सुमित यास) के साथ पूरे शहर में घूम घूमकर शादीशुदा महिलाओं के साथ इश्कबाजी करता है.

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फिल्म 'गुड्डू की गन' का पोस्टर
फिल्म 'गुड्डू की गन' का पोस्टर

फिल्म का नाम: गुड्डू की गन
डायरेक्टर: शांतनु रे छिब्बर और शीर्षक आनंद
स्टार कास्ट: कुणाल खेमू, पायल सरकार, सुमित व्यास
अवधि: 2 घंटा 10 मिनट
सर्टिफिकेट: A
रेटिंग: 1 स्टार

कहानी
यह कहानी है बिहार के रहने वाले सेल्समैन 'गुड्डू' (कुणाल खेमू) की जो इश्कबाज प्रवृत्ति का है. वो अपने दोस्त लड्डू (सुमित यास) के साथ पूरे शहर में घूम घूमकर शादीशुदा महिलाओं के साथ इश्कबाजी करता है. वैसे तो गुड्डू की अच्छी खासी जिंदगी चल रही थी लेकिन एक दिन एक महिला के दादाजी ने गुड्डू को श्राप दे दिया. जिसकी वजह से उसका गुप्त अंग सोने (गोल्ड) का हो जाता है और गुड्डू ज्यादा डिमांड में आ जाता है. चीजें और दिलचस्प हो जाती हैं जब इन सबके बीच माफिया का भी दखल होने लगता है. सभी की एक ही चाहत रहती है, 'गुड्डू की गन'. अब दादा के श्राप से गुड्डू खुद को कैसे बचा पाता है? इसका जवाब आपको फिल्म देखकर ही मिलेगा.

स्क्रिप्ट
फिल्म को एक 'सेक्स कॉमेडी' कहा गया है. लेकिन मुश्किल से एक-दो सीन ही ऐसे थे जो इस विधा को न्यायसंगत कर रहे थे. डायरेक्टर की कोशिश थी की काल्पनिक किरदार को कामुक दिखाया जाए जो हो ना सका. इंटरवल के बाद तो यह फिल्म और भी दिशाहीन हो जाती है. अचानक से रोमांस और प्यार की तरफ अग्रसित होने लगती है. स्क्रिप्ट को और भी बेहतर लिखा जा सकता था. इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है जो आपको बांध कर रख सके. कई सीक्वेंस ऐसे हैं जो जबरदस्ती फिट किए हुए लगते हैं.

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क्यों देखें
कुणाल खेमू ने बिहारी का किरदार निभाने की कोशिश की है जो ठीक ठाक ही है. सुमित व्यास और पायल ने भी अच्छा काम किया है. अगर आप कुणाल खेमू के दीवाने हैं और साथ में एडल्ट हैं तो ही ये फिल्म देखें नहीं तो पैसे जरूर बचाएं.

 

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