चार बार नाम बदलने के बाद एक नाम फाइनल किया गया, तब जाकर बनी मिशन रानीगंज. नाम चाहे कितनी बार भी बदला गया हो, लेकिन कहानी वही रही. कभी 'कैप्सूल गिल', तो कभी 'द ग्रेट इंडियन एस्केप', तो फिर 'द ग्रेट इंडियन रेस्क्यू'. फिर फाइल हुआ 'मिशन रानीगंज', जो एक हादसे की कहानी को बयां करता है, जहां कई लोगों की जान दांव पर लगी थी. पर जसवंत सिंह गिल वो मसीहा बने, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला.
फिल्म में अक्षय कुमार जसवंत सिंह गिल का रोल निभा रहे हैं. वहीं उनकी पत्नी के रोल में परिणीति चोपड़ा हैं. दोनों की जोड़ी बेमिसाल है, फैंस इस ऑनस्क्रीन पेयर को खूब पसंद करते हैं. इन्हें हम केसरी फिल्म में भी साथ देख चुके हैं. फिल्म तो 6 अक्टूबर को सिनेमाघरों में रिलीज होगी, लेकिन उससे पहले हम आपको बताते हैं कि आखिर साल 1989 में रानीगंज में क्या हुआ था?
एक दर्दनाक हादसे की कहानी है रानीगंज
पश्चिम बंगाल के रानीगंज में साल 1989 एक 'काला पत्थर' जैसी घटना हुई थी. 1774 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा गठित रानीगंज कोल माइन में बड़ी ही बेतरतीबी से काम किया जाता था. ना कोई पिल्लर्स होते थे, ना ही कोई ऐसी दीवार जो होने वाले हादसों को रोक सके. 13 नवंबर 1989 की रात को खदान में काम करते हुए वर्कर्स ने नोटिस किया कि कोई ब्लास्ट हुआ है, जिससे कोयला खदान के बाहर की सतह क्रैक हो गई हैं. उस ब्लास्ट से पूरी खदान हिलने लगी थी. इस दरार की वजह से पानी का तेज बहाव अंदर आ गया. बाढ़ इतनी तेज आई कि अंदर फंसे 6 लेबर्स ने मौके पर ही अपनी जान गंवा दी. वहीं जो लिफ्ट के पास थे, वो तुरंत बाहर निकल गए. लेकिन अंदर 65 मजदूर और थे, जो बुरी तरह फंस गए थे.
पानी का बहाव लगातार बढ़ता ही जा रहा था. ऐसे में हर किसी ने उम्मीद खो दी थी. लेकिन एक कर्मचारी वहां ऐसा था, जिसने अभी तक विश्वास बनाए रखा था. वो थे जसवंत सिंह गिल. 34 साल पहले माइनिंग इंजीनियर जसवंत सिंह गिल ने 1989 में पश्चिम बंगाल में रानीगंज कोयले की खान में फंसे 65 मजदूरों को बाहर निकालकर उनकी जान बचाई थी. तब जसवंत सिंह की तैनाती वहीं थी.
उम्मीद की किरण जसवंत सिंह गिल
करीब 104 फीट गहरी रानीगंज की इस कोयले की खान में उस दिन तकरीबन 232 मजदूर काम कर रहे थे. ट्रॉली की मदद से जैसे-तैसे 161 मजदूरों को तो बाहर सुरक्षित निकाल लिया गया, लेकिन बाकी मजदूर अंदर ही फंसे रहे उनके लिए जसवंत सिंह उम्मीद की किरण बने. जसवंत ने उन्हें सुरक्षित निकालने के लिए जी जान लगा दी. उन्होंने फंसे मजदूरों को बाहर निकालने के लिए विशेष तरह का कैप्सूल बनाया. इसकी मदद से मजदूरों को बाहर लाया जा सका और उनकी जान बच गई थी. इसके बाद से ही जसवंत सिंह गिल को 'कैप्सूल गिल' के नाम से पुकारा जाने लगा था.
जसवंत ने 6 फुट का लोहे का एक ऐसा कैप्सूल बनाया था, जो 21 इंच का था. इस कैप्सूल की मदद से एक नया बोरहोल बनाया गया. उन्होंने 12 टन के क्रेन की मदद से उस कैप्सूल को नीचे पहुंचाया और फंसे हुए उन 65 मजदूरों को एक-एक कर बाहर निकाला. इस रेस्क्यू ऑपरेशन में पूरे 6 घंटे लगे थे. इसे जो हजार मजदूरों ने अपनी आंखों से देखा था. हर साल 16 नवंबर को कोल माइनर्स आज भी इस मिशन को सेलिब्रेट करते हैं. इस ब्रेवरी के लिए जसवंत सिंह गिल को कई सम्मान से नवाजा गया था.