
यूट्यूब पर टीवीएफ का चैनल है और इस चैनल पर आई है वेब सीरीज 'संदीप भैया'. ये वही संदीप भैया हैं, जो टीवीएफ की दूसरी सीरीज ‘एस्पिरेंट्स’ में नजर आए थे. सभी के फेवरेट संदीप भैया इस शो में अपनी जिंदगी संवारने में लगे हैं. उनके साथ है उनका दोस्त प्रिंस मिश्रा. यूपीएससी की तैयारी में संदीप के साथ-साथ प्रिंस भी जद्दोजहद कर रहे हैं. इस कॉमिक किरदार को निभाया है एक्टर पुनीत तिवारी ने.
पुनीत को सीरीज ‘संदीप भैया’ में अपने काम के लिए काफी सराहना मिल रही है. सोशल मीडिया पर उनके मीम्स और मोटिवेशनल मैसेज वायरल हो रहे हैं. पुनीत को मिली सफलता से वो बेहद खुश हैं. इस बीच उन्होंने aajtak.in से बातचीत की. यहां पुनीत ने बताया कि अपने प्रिंस मिश्रा के किरदार की तैयारी उन्होंने कैसे, सनी हिंदुजा संग काम करने का एक्सपीरिएंस उनके लिए कैसा था. और भी कई बातें पुनीत ने हमारे साथ की. डालिए इस बातचीत पर एक नजर.
कौन हैं पुनीत तिवारी?
मैं चितरंजन ने आता हूं. मेरे दादा जी रेलवे में थे, मेरे पिता जी रेलवे से थे. मूल रूप से हम बिहार, आरा के रहने वाले हैं. लेकिन स्कूलिंग जो है चितरंजन से हुई है. ये झारखंड और बिहार के बॉर्डर इलाके पर है. 12 वीं के बाद मैन चितरंजन से बाहर निकाल गया था. मैं एक बॉयज स्कूल में पढ़ा लिखा हूं. पहली बार जब मैंने अपने स्कूल में नाटक परफॉर्म होते देखा, तब मैन छठी क्लास में था. एनुअल डे पर ये परफॉरमेंस हुई थी. मैंने इसे देखा तो मन में आया कि मुझे भी ये करना है. तो मैंने एक साल का इंतजार किया कि जब एनुअल डे आएगा तो मैं उसका हिस्सा बनूंगा. जब अगले साल ड्रामा के लिए प्रतिभागी चुने जा रहे थे तो मैंने भी अपना नाम दिया. क्योंकि बॉयज स्कूल था तो फीमेल पार्ट्स भी लड़कों को ही करना पड़ता था. तो मुझे एक फीमेल किरदार करने को किया गया.
मेरे सर ने मुझे काफी मोटिवेट किया कि चाची 420 में कमल हासन ने किया था, आंटी नं 1 में गोविंदा ने किया था. जो लोग फीमेल किरदार करते हैं वो अमर हो जाते हैं, तो तुम भी करोगे तो बढ़िया करोगे. मैंने वो किरदार निभाया, तो मेरे साथियों ने मुझे मेरे फीमेल किरदार के नाम से चिढ़ाने लगे थे. उन दिनों में ये होता था कि पिता जी ने किसी फोटोग्राफर को बुला लिया और स्कूल में नाटक करते हुए मेरी फोटो खींची गई. वो तस्वीरें आज भी हैं मेरे पास. स्कूल के बाद नाटक की दुनिया विलुप्त हो गई. इसके बाद कोई मेंटर नहीं था. आप वहां से निकलकर या तो इंजीनियर बनते हैं या फिर डॉक्टर बनते हैं. पिता जी चाहते थे कि मैं रेलवे में कोई नौकरी कर लूं. मैंने कहा था कि मुझे इंजीनियरिंग नहीं करनी. फिर मैं आगे चलकर दिल्ली आया. जेएनयू में एक खास तरह का थिएटर ग्रुप होता है, मैंने उसमें भाग लिया. साथ-साथ में मैं जामिया से पीजी डिप्लोमा इन टीवी जर्नलिज्म कर रहा था. इसके बाद फिर एमपी स्कूल ऑफ ड्रामा चला गया. वहां से निकलने के बाद मैंने बहुत सारी फिल्में और सीरीज की. अब संदीप भैया से मुझे और आगे बढ़ने का मौका मिला है.

संदीप भैया में काम करने का मौका आपको कैसे मिला?
मुझे टीवीएफ की स्टोरीटेलिंग हमेशा पसंद आती है. हालांकि जो भी एक्टर आता है उसे अपनी काबिलियत साबित करनी पड़ती है. मुझे भी साबित करना था. नवरत्न मेहता कास्टिंग डायरेक्टर हैं इसके. तो जब उन्होंने टेस्ट किया मुझे, उन्हें लगा कि जैसा मैंने प्रिंस मिश्रा ऑडिशन में इंटेरप्रेट किया है वो अच्छा है. मैंने फिर डायरेक्टर के हिसाब से उसे ट्राई किया. प्रिंस मिश्रा का जो किरदार है वो एकदम अलग है. उसकी भी अपनी जिंदगी में ट्रैजडी है. अपनी जिंदगी की मुश्किलों को वो अलग तरीके से देखता है.
मैं अपनी जिंदगी में काफी इंट्रोवर्ट हूं. लेकिन मेरा किरदार बहुत खुलकर बोलने वाला है. ये बहुत चैलेंजिंग किरदार था मेरे लिये. मेरी पर्सनैलिटी से एकदम अलग था. मैंने बहुत मेहनत की है और कितना दिख रहा है वो दर्शक जानते हैं. डायरेक्टर और राइटर को भी क्रेडिट है, जिस तरह वो मेरे किरदार को प्रोसेस में लेकर गए. मैंने उन्हें कहा था कि भई मुझे प्रयागराज भेज दो. मैं शूटिंग से 7 दिन पहले प्रयागराज चला गया था सिटी की वाइब लेने. उस शहर का एक स्टाइल है और प्यार है. मैं चाहता था कि ऐसा न लगे कि कोई बंबई वाला प्रयागराज वाले का किरदार कर रहा है.

सनी हिंदुजा संग काम करने के एक्सपीरिएंस के बारे में कुछ बताइए!
इतने कमाल के एक्टर हैं सनी हिंदुजा. जब वो काम कर रहे होते हैं तो आपको लगता है कि आप बस देख लो उन्हे. मैजिकल है. उन्हें देखना ही अपनेआप में अद्भुत एक्सपीरिएन्स है. एक ये भी भावना है कि इनसे सीख लूं. एक सीन है जिसमें वो मुझे डांटते हैं. हमने इसकी रिहर्सल नहीं की थी. और वो अचानक से जब मुझे जोर से चिल्लाकर बोले न तो मुझे लगा कि ‘हे भगवान क्या कार दिया मैं’ और टप से एक आंसू टपक गया मेरी आंख से. वो शॉट लगा नहीं शो मे, लेकिन वो बहुत अच्छा था. सनी इनपुट भी देते हैं कि ऐसे करके देखो क्या पता हो जाए और हो जाता है. टीवीएफ की टीम भी बढ़िया थी.
आपके इंडस्ट्री में शुरुआती दिन कैसे थे?
दो फिल्मों के साथ मैं बंबई आया था. मैं दो फिल्में कार चुका था जब बंबई आया. बंबई में सबकी एक अपनी यात्रा है. आप उसी के दौरान आप अवसर तलाश रहे होते हैं. खुद को बचाकर भी रखना होता है. कभी होता है कि आप एक्टर बनने आए हैं और कुछ और बन गए. खुद को बचाए रखना जरूरी है.
मैं रिजेक्शन को इतना तूल नहीं देता. ये जिंदगी का हिस्सा है. एक्टर बनना मेरी खुद की चॉइस है. इंडस्ट्री अगर काम कर रही तो अच्छे लोग भी हैं और बुरे भी हैं. ये जरूरी है कि आप सही लोगों के साथ सही काम करें, उनके विजन का हिस्सा बनें या फिर उसमें अपना कुछ जोड़ पाएं. प्रिंस मिश्रा के बारे में मैं आपको बताऊं तो मुझे याद है कि संदीप भैया सीरीज में एक सीन है जिसमें संदीप से प्रिंस मिश्रा कहता है कि फोकस जरूरी है लाइफ में. मुझे इससे अचानक विचार आया कि कई बार हम अपनी निजी जिंदगी में मोटिवेशन के लिए कुछ अंग्रेजी के क्वोट्स बोल देते हैं.
इस शो के जो राइटर हैं सिद्धार्थ तिवारी, तो मैंने उन्हें कहा कि ऐसा ही कोई क्वोट बोल सकता है यहां किरदार तो फिर मैं ढूंढने लगा. तो अंग्रेजी के बहुत बड़े लेखक है उनका ये क्वोट है कि ‘योजना के बिना लक्ष्य सिर्फ इच्छा है’, ये मैंने अपनी स्क्रिप्ट में लिख लिया. फिर टेक में मैंने ये अपने सीन में बोला और अब ये हर तरफ फेमस हो रहा है. तो लाइन बोलना तक अभिनेता की जिंदगी में नहीं है. उसमें अपना योगदान भी देना होता है.

मुश्किलों दिनों का सामना आपने कभी किया है?
ट्रैजिक दिन तो हम सबने देखा है. कोविड का ऐसा वक्त था ना शूटिंग हो रही थी, ना कुछ हो रहा था. उस दौरान मैं एक शो लिख रहा था. मैंने सोचा कुछ नहीं हो रहा तो मैं कुछ लिखता हूं. तो मैंने कुछ अपने अंदर की कहानियां जिनसे मैं वाबस्ता रखता हूं, जो मुझे लगता है कि कही जानी चाहिए. ये कहानी मेरे रेलवे स्कूल के बारे में है जिसमें मैंने पढ़ाई की थी. देखते हैं कि क्या होगा. कई बार होता है कि आप किरदार ढूंढ रहे होते हैं. कभी कभी किरदार एक्टर को चुनते हैं. तो प्रिंस मिश्रा के किरदार ने मुझे चुना है. वैसे तो मुश्किल दिन ही रहे ही हैं, लेकिन उसके बारे में सोचकर क्या करना.
तो आप मानते हैं कि आपने अपने अभी तक करियर में रिजेक्शन झेला है?
जी हां, बिल्कुल. हर किसी की जिंदगी का ये हिस्सा है. सबसे पहले तो मिडल क्लास सोसाइटी को इसी बात के लिए मनाने में समय लग जाता है कि मैं कुछ करना चाहता हूं. मैं इंजीनियरिंग और डॉक्टरी नहीं करना चाहता, मैं एक्टर बनना चाहता हूं. आप उस समय को याद रखिए जब सुशांत सिंह राजपूत के साथ जो हादसा हुआ था, जो चीजें हुई थीं. और उसके बाद मीडिया ने बॉलीवुड के बारे में कहीं और इसका जो परिणाम हुआ वो हम देख रहे हैं कि मिडल क्लास सोसाइटी के जो पेरेंट्स हैं वो बहुत ही इनसिक्योर हो गए हैं इस इंडस्ट्री को लेकर. बॉलीवुड को लेकर ये सोच बैठ गई है कि ये करते हैं, वो हैं, नशाखोर हैं, ऐसा है वैसा है. और मुझसे कहा जाने कहा कि अब तुम्हारी शादी नहीं हो पाएगी तुम गलत लाइन में चले गए भाई. मैं इस मानसिकता से लड़ रहा था. मैं वो कर रहा था, जो मैं करना चाहता था, इससे बढ़िया और क्या होगा. एक समय होता है जब आपको अपने परिवार को समझाना होता है कि मुझे ये करना है. मैं एक्टिंग नहीं करूंगा तो मर जाऊंगा, मैं नौकरी भी नहीं कर पाऊंगा यार. फिर वो बंदिश नहीं बर्दाश्त होगी.
आपने सुशांत के बारे में बात की, आपने कहा कि मीडिया में बॉलीवुड के बारे में बहुत कुछ कहा जा रहा. तो जो बातें कही गईं उसमें से कुछ ऐसा है जो आपने अपनी नजरों के सामने देखा है?
नहीं, मैं बहुत ही नया हूं इस चीज में. मैं जानता भी नहीं हूं इसके बारे में. आपको जो पता है वो ही मुझे पता है. चीजें बुरी भी नहीं हैं, जहां अच्छाई है वहां बुराई भी है. तो इंडस्ट्री के बारे में यही कहूंगा कि अच्छे लोग भी हैं अगर बुरे लोग भी हैं. अभी तक कुल-मिलाकर मेरा सामना नहीं हुआ है. ना ही तो भी अच्छा होगा. एक्टर अपने सर्वाइवल को लेकर इनसिक्योर भी हो जाता है. तो हर तरह की चीज है. एक्टर की कम्यूनिटी बहुत सेंसीटिव होती है. ख्याल रखना चाहिए समाज के तौर पर. इनका भी बचाव होना जरूरी है. अच्छे एक्टर्स का बचाव होना जरूरी है. हमें एक दूसरे का ख्याल रखना है. एक दूसरे का हाथ पकड़कर आगे बढ़ना है. कुछ लोगों का कहना है कि जाने-पहचान होने चाहिए, इनका ब्रांड वैल्यू होना चाहिए, तभी मैं फलाना किरदार इन्हें देने का अवसर दे सकता हूं. कुछ ऐसे भी लोग हैं जो सिर्फ किरदार ढूंढते हैं और आपके ऊपर भरोसा भी करते हैं.
क्या कभी आपको फ्री में काम करना पड़ा है? कभी ऐसा हुआ है कि मेकर्स ने कहा हो कि काम कर लो और बाद में पैसों के बारे में बात करेंगे?
नहीं, देखिए पैसों को मैं ऐसे देखता हूं कि पैसा रहता तो मैं कुछ और कर रहा होता. मैं यहां मुंबई में हूं. मैं कुछ और करना चाहता हूं, कुछ अच्छा करना चाहता हूं. कुछ अच्छे परफॉरमेंस देना चाहता हूं. ये नहीं होगा तो मैं मर जाऊंगा ऐसा है. तो ऐसा नहीं है कि पैसा ही जरूरी है मेरे लिये. मैं कोई और नौकरी कर रहा होता, ये नहीं कर रहा होता ना. मेरे लिए कहानी जरूरी है. अगर कोई प्रॉब्लम है बजट को लेकर दिक्कत है तो हम उसपर बात कर सकते हैं ना. कई बार होता है कि आप सही में कोई कहानी कहना चाहते हैं. मैं तो अपने लेवल पर जो कर सकता हूं, करता हूं. अगर मुझे कहानी जबरदस्त मिल जाए तो मैं फ्री में काम कर भी लूं. (अगर कोई मेकर मुझे कहेगा कि काम कर लो और पैसे बाद में देखेंगे) तो मतलब कुछ तो मुझे आकर्षित करे ना, या तो पैसा करे या स्क्रिप्ट करे या किरदार करे. पॉइंट ऑफ इंटेरेस्ट होना चाहिए ना. ऐसा अभी कुछ नहीं हुआ मेरे साथ.
आप फ्यूचर में कैसे रोल्स करना चाहेंगे? क्या आपके पास कोई नया प्रोजेक्ट है?
मैंने एक अनटाइटल फिल्म में काम किया है. उसमें मेरा छोटा सा किरदार लेकिन महत्वपूर्ण है. फिल्म छतरीवाली के डायरेक्टर इसे बना रहे हैं. अभी इस फिल्म का ऐलान नहीं हुआ है. मैं अपने लिये ऐसे किरदार ढूंढ रहा हूं जो मुझे असहज करें. जैसे प्रिंस मिश्रा का किरदार था. कई डायरेक्टर भी हैं, जिनके साथ मैं काम करना चाहूंगा. राजकुमार हिरानी हैं, संजय लीला भंसाली के ग्रैंड सेट में काम करना चाहूंगा. अनुराग कश्यप हैं, विक्रमादित्य मोटवाने हैं, अनुभव सिन्हा के साथ काम करना चाहूंगा. सुधीर मिश्रा अगर कुछ करें तो मैं जरूर उसका हिस्सा बनना चाहूंगा. और भी कुछ चीजें हैं पाइपलाइन में जो मैं अभी आपको बता नहीं सकता.
आम ने अभी तक आम इंसान के किरदारों को निभाया है, जो साधारण दिखते हैं. क्या आपको लगता है कि आप बिना बॉडी बनाए आप सक्सेस पा सकते हैं?
अगर मेरे किसी किरदार की डिमांड है कि तो मैं जरूर मेहनत करके बॉडी बनाऊंगा. मेरा पर्सोनली तो आप पूछेंगे तो इंडिया में इतने रिच फूड हैं जिन्हें खाए बिना मैं नहीं रह पाऊंगा. लेकिन हां अगर किरदार के लिए डाइट करनी पड़े तो मैं करूंगा.