scorecardresearch
 

धर्मेंद्र की ये फिल्म देखकर अपराधी बनने से बच गया बॉलीवुड का पॉपुलर राइटर, मिला था नेशनल अवॉर्ड

धर्मेंद्र अब अधिकतर लोगों को गरम-धरम या 'हीमैन' जैसे एक्शन अवतारों के लिए ही याद रहते हैं. मगर धर्मेंद्र के खाते में कुछ ऐसी फिल्में हैं जो उनकी लगती ही नहीं हैं. इनमें उनकी एक्टिंग का दम देखने लायक है. 'सत्यकाम' भी ऐसी ही थी. इस फिल्म में उनका किरदार और काम कितना दमदार था, पढ़िए इस कहानी में.

Advertisement
X
धर्मेंद्र की बाकी फिल्मों से बहुत ज्यादा अलग थी 'सत्यकाम' (Photo: Instagram / hindifilmography)
धर्मेंद्र की बाकी फिल्मों से बहुत ज्यादा अलग थी 'सत्यकाम' (Photo: Instagram / hindifilmography)

बॉलीवुड के आइकॉन्स में से एक, वेटरन एक्टर धर्मेंद्र को लोग अधिकतर उनके पावरफुल एक्शन हीरो अवतार के लिए याद रखते हैं. अपनी दमदार कद-काठी, चौड़े सीने और मजबूत हाथों के साथ विलेन के सामने धर्मेंद्र को खड़ा देखते ही दर्शकों का खून उबाल मारने लगता था. मगर उनकी शख्सियत और ऑनस्क्रीन इमेज की इस पॉपुलैरिटी का एक नुकसान भी हुआ. 

सुपरस्टार शब्द का पूरा भौकाल समेटे हुए, एक्शन हीरो इमेज वाले धर्मेंद्र, गंभीर और ठोस एक्टिंग परफॉरमेंस वाले धर्मेंद्र पर भारी पड़ गए. धर्मेंद्र की बिना टिपिकल बॉलीवुडिया तामझाम में डूबी, विशुद्ध दमदार एक्टिंग वाली फिल्में कम ही याद रहती हैं. मगर उनकी ऐसी एक फिल्म 'सत्यकाम' एक आइकॉनिक फिल्म है. इसमें धर्मेंद्र की सॉलिड एक्टिंग ने, उनके किरदार में इस कदर जान फूंक दी थी कि आइकॉनिक एक्टर, स्वर्गीय फारुख शेख ने कहा था वो जब भी 'सत्यकाम' देखते हैं, ये फिल्म उन्हें झिंझोड़ कर रख देती है. 

फिल्म इंडस्ट्री के जानेमाने राइटर रंजित कपूर पर इस फिल्म का क्या असर हुआ था उसकी एक अलग ही कहानी है. रंजित ने बताया था कि करियर की शुरुआत में उनका संघर्ष जब कोई फल नहीं दे रहा था तो वो अपराध की राह पर जाने वाले थे मगर 'सत्यकाम' ने उन्हें बचा लिया था. चलिए बताते हैं ये किस्सा... 

Advertisement
'सत्यकाम' में संजीव कुमार ने निभाया था धर्मेंद्र के दोस्त का रोल (Photo: Instagram / hindifilmography)

क्यों अपराध की राह पर जाने वाले थे रंजित कपूर 
'जाने भी दो यारों' (1983), शाहरुख खान की 'कभी हां कभी ना' (1994) और 'खाकी' (2004) जैसी कई फिल्मों में डायलॉग लिख चुके रंजित कपूर, बॉलीवुड के बड़े राइटर्स में गिने जाते हैं. लेकिन बतौर राइटर इस शानदार करियर की शुरुआत रंजित के लिए बहुत संघर्षों भरी रही थी. एक समय ऐसा भी आया था जब वो अपराध के रास्ते पर जाने वाले थे. और तब ऋषिकेश मुखर्जी की डायरेक्शन में बनी, धर्मेंद्र की फिल्म 'सत्यकाम' ने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोक लिया. 

'द वर्ल्ड ऑफ ऋषिकेश मुखर्जी' में, राइटर जय अर्जुन सिंह ने रंजित का जीवन बदल देने वाले इस मोमेंट का जिक्र किया है. रंजित ने डिटेल्स का खुलासा किए बिना उन्हें बताया, 'मैं गलत रास्ते पर जाने वाला था.' बात आगे बढ़ाते हुए रंजित ने कहा, 'मैं एक दोस्त के साथ था, हमें बस थोड़ा वक्त काटना था और ('सत्यकाम' के) टिकट टैक्स फ्री थे.' 

रंजित के साथ उनका एक दोस्त भी था जो इस धीमी फिल्म से ऊबकर सो गया, मगर वो हॉल में बैठे, बिना आवाज किए रो रहे थे. 'वो फिल्म देखने के बाद दुनिया एक बहुत अलग जगह लगने लगी— मैं एकदम नीचे गिर चुका था, मगर मैंने खुद को फिर से उठाया.' रंजित ने फिर से संघर्ष शुरू किया और वो राइटर बने, जिसका बॉलीवुड में अपना एक ऊंचा दर्जा है. 

Advertisement

धर्मेंद्र की इस फिल्म को रंजित अपना जीवन बदलने का क्रेडिट इतना ज्यादा देते हैं कि जब 2009 में उन्होंने फिल्म 'चिंटूजी' डायरेक्ट की, तो ये फिल्म धर्मेंद्र, ऋषिकेश मुखर्जी और नारायण सान्याल (जिनके उपन्यास पर फिल्म आधारित थी) को डेडीकेट की. ना जाने कितने ही लोग 'सत्यकाम' का जिक्र करते हुए अक्सर ये बात कहते हैं कि पूरी सच्चाई के साथ, सर उठाकर दुनिया में जीने की कोशिश कर रहे हीरो सत्यप्रिय (धर्मेंद्र) के किरदार ने उन्हें बदल दिया. 

'सत्यकाम' में ऐसा क्या था?
धर्मेंद्र की ये फिल्म इस सवाल में उलझी कहानी कहती है कि क्या पूरी तरह सच्चाई और आदर्शवाद के रास्ते पर चलकर जीवन जिया जा सकता है? और क्या थ्योरी में जिसे हम सच समझते हैं, प्रैक्टिस में उसे उतार पाना संभव है? धर्मेंद्र का किरदार, सत्यप्रिय इंजीनियरिंग करके एक नई जिंदगी बनाने के सपने देख रहा है. मगर वो अपनी जिंदगी पूरे आदर्शवाद और 'सच' के साथ जीना चाहता है. फिल्म की कहानी 1940 के दशक में सेट है और भारत आजाद हो चुका है. 

सत्यप्रिय अपने दादाजी के सिद्धांतों पर आगे बढ़ना चाहता है, जो एक नए भारत को आदर्शवादी सिद्धांतों की नींव पर खड़ा देखना चाहते हैं. इसलिए वो भी इन्हीं आदर्शों को अपनाने लगता है. उसे नौकरी के लिए सिफारिशें लगवाना नहीं भाता, ठेकेदारों का काम करवाने के लिए घूस लेना नहीं आता. यहां तक कि पर्सनल कामों के लिए ऑफिस प्रॉपर्टी का इस्तेमाल करने के बारे में वो सोचना तक नहीं चाहता. 

Advertisement

उसकी पहली ही नौकरी एक पूर्व राजकुमार के यहां लगती है, जिसकी राजशाही देश आजाद होने के साथ ही खत्म हुई है. सत्यप्रिय को पता है कि उसका मालिक रंजना (शर्मिला टैगोर) नाम की एक लड़की पर गलत नजर रखता है. मगर अपने मालिक के खिलाफ जाना उसे जमता नहीं. राजकुमार, रंजना का रेप कर देता है. सत्यप्रिय अब इस गिल्ट में भी है कि उसकी वजह से रंजना के साथ ऐसा हुआ. वो रंजना के साथ शादी कर लेता है, मगर आगे आपको दिखता है कि वो दिल से अपनी पत्नी को स्वीकार नहीं कर पा रहा. 

धर्मेंद्र की पत्नी के रोल में शर्मीला टैगोर का काम भी था दमदार (Photo: Instagram / hindifilmography)

एक सीन में रंजना चिल्लाकर ये कहती है कि काश वो मर जाए, ताकि अगले जन्म में वो 'पवित्र' पैदा हो और सत्यप्रिय उसे दिल से स्वीकार कर ले. आदर्शवाद के चक्कर में सत्यप्रिय का परिवार कभी सुखी जीवन नहीं जी पाता. आखिरकार सत्यप्रिय को एक लाइलाज बीमारी हो जाती है और तब वो पहली बार, रंजना और उसके बच्चे के लिए अपने आदर्शों से समझौता करने की सोचता है. मगर तब रंजना उसे 'सत्य' का असली अर्थ समझाती है. 

सत्यप्रिय के आदर्श रहे उसके दादा को भी रंजना एक सबक देती है, जिससे उन्हें एहसास होता है कि वो केवल अपने आश्रम में ही सत्य और आदर्श की लीक पर चल रहे थे. बाहर के संसार में सच्चाई के मुश्किल रास्ते पर असल में रंजना चली, जिसे वो 'अपवित्र' मानते थे. 

Advertisement

नेशनल अवॉर्ड पाने वाली फ्लॉप फिल्म थी 'सत्यकाम'
सच के रास्ते पर चलते हुए अपनी जिंदगी को एक कड़ी संघर्ष कथा बना लेने वाले हीरो के साथ शायद जनता कनेक्ट नहीं कर पाई. इसलिए 'सत्यकाम' बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई. मगर इसकी इमोशनल कहानी, ऋषिकेश मुखर्जी का डायरेक्शन और धर्मेंद्र की मंझी हुई अदाकारी खूब सराही गई. आज भी कई लोग 'सत्यकाम' को धर्मेंद्र के करियर की सबसे दमदार परफॉरमेंस मानते हैं. 

ऋषिकेश मुखर्जी को धर्मेंद्र की एक्टिंग पर बहुत भरोसा था. अपनी नेशनल अवॉर्ड फिल्म 'अनुपमा' (1966) में भी उन्होंने धर्मेंद्र को महत्वपूर्ण रोल दिया था. धर्मेंद्र के साथ उनकी 'सत्यकाम' ने भी नेशनल अवॉर्ड जीता. बाद में ऋषिकेश खुद स्लाइस ऑफ लाइफ और कॉमेडी फिल्मों की तरफ शिफ्ट हो गए और 'गोलमाल', 'चुपके चुपके', 'गुड्डी' जैसी फिल्में बनाईं. 

दूसरी तरफ, 70 के दशक की शुरुआत धर्मेंद्र के लिए पॉपुलर मसाला फिल्में लेकर आई. स्टार पर फोकस करने वाली इंडस्ट्री में धर्मेंद्र एक सुपरहिट स्टार बन गए थे और 'शोले' के बाद तो उनके करियर का डिजाईन ही बिल्कुल बदल गया. और इन सबके बीच 'एक्टर' धर्मेंद्र और उनकी 'सत्यकाम' जैसी गंभीर फिल्में भी लोगों के ध्यान से उतरती गईं. लेकिन अगर मौका लगे तो यूट्यूब पर आराम से मिल जाने वाली 'सत्यकाम' देखिए, 'हीमैन' धर्मेंद्र की दूसरी साइड देखकर आप हैरान रह जाएंगे. 

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement