
बॉलीवुड सुपरस्टार आमिर खान एक 3 साल के गैप के बाद अब अपनी नई फिल्म के साथ ऑडियंस को एंटरटेन करने आ रहे हैं. 2007 में आई 'तारे जमीन पर' के इस स्पिरिचुअल सीक्वल के साथ आमिर एक बार फिर से जनता को सोशल मैसेज देने वाली एक और कहानी लेकर आ रहे हैं. डायरेक्टर आर प्रसन्ना के साथ आमिर ने जो फिल्म बनाई है वो ट्रेलर से ही एक दमदार और इमोशनल कहानी नजर आ रही है. 'सितारे जमीन पर' का ट्रेलर देखकर लगता है कि ये आमिर के परफेक्शनिस्ट अवतार की दमदार वापसी होने वाली है.
आमिर की पिछली फिल्में 'लाल सिंह चड्ढा' और 'ठग्स ऑफ हिंदोस्तान' केवल फ्लॉप ही नहीं रहीं बल्कि इन्हें देखते हुए सिनेमा के क्राफ्ट का वैसा परफेक्शन भी नहीं नजर आया, जैसा आमिर की फिल्मों में नजर आता है. मगर परफेक्शन के लिए आमिर की भूख ने ही उनकी फिल्मों को इतना आइकॉनिक बनाया है कि जनता उन्हें कभी भूल नहीं सकती. और आमिर के यादगार काम की लिस्ट में ऐसी ही एक फिल्म है 'सरफरोश'.
आमिर खान के 2.0 वर्जन की शुरुआत थी 'सरफरोश'
90s के अंत में बॉलीवुड के सुपरस्टार्स इंडियन सिनेमा के एक बदलते दौर की शुरुआत के साथ एडजस्ट करने की कोशिश कर रहे थे. ये दौर अब केवल कमर्शियल एंटरटेनर फिल्मों का नहीं था बल्कि जनता को फिल्मों में वजन भी चाहिए था, यानी वो चीज जिसे आज 'कंटेंट' बोला जाता है. हालांकि, आमिर शुरुआत से ही इस 'कंटेंट' से भरपूर फिल्में करना चाहते थे. इसका नतीजा ही उनकी पहली फिल्म 'होली' और बाद में आई 'राख' थीं. लेकिन एक बार जब वो बतौर रोमांटिक हीरो 'कयामत से कयामत तक' में पॉपुलर हुए तो ये रोमांटिक हीरो का टैग उनके साथ चिपक गया.

'दिल है कि मानता नहीं', 'हम हैं राही प्यार के', 'दिल' और 'राजा हिंदुस्तानी' जैसी बड़ी हिट्स के बाद तो आमिर को इसी तरह के किरदार ज्यादा मिलने लगे. मगर 'सरफरोश' उनके लिए वो नए तरह की कहानी बनकर आई जिसकी तलाश में वो हमेशा रहते थे. एक गंभीर फिल्म जिसमें सोशल मैसेज और नैरेटिव की गंभीरता थी. यही तलाश बाद में आमिर को 'लगान' और 'दिल चाहता है' जैसी फिल्मों पर लेकर गई.
इनसे पहले आई 'सरफरोश' एक विशुद्ध कॉप ड्रामा थी और फिल्म में आमिर का निभाया एसीपी अजय राठौर का किरदार आज भी आइकॉनिक है. इस फिल्म से आमिर को कमर्शियल और गंभीर सिनेमा का वो बैलेंस मिला जो बाद में उनकी फिल्मों की पहचान बन गई. मगर ये जानकर आप हैरान हो जाएंगे कि 'सरफरोश' जब बन के तैयार हुई तो उसमें एक ऐसी कमी सामने आई जो थिएटर्स में फिल्म को बड़ा नुक्सान पहुंचा सकती थी. वो तो शुक्र है कि अपने डायरेक्टर्स के साथ मिलकर आमिर ने अपनी फिल्मों के लिए एक ऐसा सिस्टम बना लिया था जो रिलीज से पहले ही फिल्म की हालत बताने में कारगर साबित होता है.
आमिर खान का टेस्ट स्क्रीनिंग प्रोसेस
आमिर अपनी फिल्मों को थिएटर्स तक लाने से पहले उनकी टेस्ट स्क्रीनिंग रखते हैं. इस स्क्रीनिंग में वो ऐसे लोगों को बुलाते हैं जो फिल्ममेकिंग से जुड़े नहीं हैं और फिल्म दिखाने के बाद उनके रिएक्शन से तय करते हैं कि कुछ बदलाव करना है या नहीं.
मिड डे को दिए एक इंटरव्यू में आमिर ने बताया था कि टेस्ट स्क्रीनिंग के पीछे उनका क्या मकसद होता है और कैसे इस प्रोसेस ने उनकी फिल्मों को बेहतर बनाने में मदद की है. आमिर ने कहा कि फिल्म मेकिंग बेसिकली डायरेक्टर और दर्शक के बीच एक कहानी का कम्यूनिकेशन है और कई बार ऐसा होता है कि डायरेक्टर अपनी बात जिस तरह कह रहा होता है, उसे दर्शक अलग तरह से समझ रहे होते हैं.

उन्होंने कहा, 'हम अब फिल्म बना रहे होते हैं तो अपने मैटेरियल के इतने करीब आ जाते हैं कि हम ऑब्जेक्टिव तरीके से ये नहीं देख पाते कि ये जनता तक किस तरह पहुंच रहा है.' आगे उन्होंने कहा कि इसीलिए वो फिल्मों की टेस्ट स्क्रीनिंग रखते हैं 'ये सुनिश्चित करने के लिए कि कहानी जिस इरादे से कही जा रही है, वो जनता तक वैसी ही पहुंचे जैसा डायरेक्टर का इरादा है.' इसी सिलसिले में आमिर ने बताया था कि कैसे इस टेस्ट स्क्रीनिंग से उन्हें 'सरफरोश' की कमी पता चली थी और उन्होंने तीन महत्वपूर्ण सीन्स जोड़कर इस कमी को दूर किया था.
'सरफरोश' की कमी और बाद में जोड़े गए सीन
आमिर की 'सरफरोश' एक पुलिस इन्वेस्टिगेशन ड्रामा थी, लेकिन टेस्ट स्क्रीनिंग में बार-बार उन्हें दर्शकों से ये रिस्पॉन्स मिल रहा था कि पुलिसिंग कहां है? जबकि फिल्म में मोटे तौर पर वो सारे सीन्स थे जो आज भी फिल्म देखने वालों को याद हैं. चाहे खेड़ा नाका पर सुल्तान को अरेस्ट करने पहुंचे आमिर का एक्शन सीन हो, या इसके बाद हॉस्पिटल में उनपर अटैक होने के बाद वाला फाइट सीक्वेंस. लेकिन टेस्ट स्क्रीनिंग की ऑडियंस को फिल्म में 'पुलिसिंग' वाला मामला कम फील हो रहा था. बल्कि दर्शकों ने आमिर को कहा कि 'एसीपी राठौर तो गजलें सुन रहा है.'
आमिर ऐसा रिएक्शन सुनकर हैरान रह गए. फिर उन्होंने डायरेक्टर जॉन मैथ्यू के साथ मिलकर इस कमी को रिव्यू किया. फिल्म की क्रिएटिव टीम के साथ आमिर ने स्क्रीनप्ले में तीन पॉइंट्स चुने और वहां तीन नए सीन जोड़े गए. जिसके बाद लोगों को 'सरफरोश' में पुलिसिंग भी नजर आने लगी. 'सरफरोश' का स्क्रीनप्ले समझा जाए तो ये तीन सीन असल में ऐसे सीन थे जो एसीपी अजय राठौर और दूसरे पुलिसवालों को केवल एक्शन में नहीं दिखा रहे थे, बल्कि उनके काम करने के तरीके, उनके पुलिसिंग-ब्रेन को एक्शन में दिखा रहे थे. ये तीन सीन थे:
1. चंद्रपुर में पुलिसवाले के घर छापा
'सरफरोश' की शुरुआत में ही जब आमिर के किरदार की नींव रखी जा रही है, तभी ये सीन है. इसमें चंद्रपुर के आदिवासी इलाके में अवैध हथियारों की सप्लाई का पता चलने के बाद स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम के एसीपी राठौर और उनके साथी वहां के एक पुलिस ऑफिसर के घर पहुंचते हैं. उनके आने से ठीक पहले एक आदमी पुलिसवाले को रिश्वत के पैसे देकर गया है, जो अभी भी उसकी पत्नी के हाथों में हैं. रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद ये पुलिसवाला एसीपी राठौर को रिश्वत में हिस्सा ऑफर करता है.

यहां आमिर की आंखें ही उनके किरदार का चरित्र बताने के लिए काफी हैं. राठौर से एक तमाचा पड़ते ही पुलिसवाला झट से सारी सच्चाई उगलने लगता है. इस सीन से आमिर का किरदार भ्रष्टाचार से बिल्कुल भी समझौता ना करने वाले ऑफिसर के तौर पर स्थापित होता है.
2. सुल्तान की मां से पूछताछ
'सरफरोश' में सुल्तान वो गैंगस्टर है जिससे पूरे केस की गुत्थी सुलझनी शुरू होती है. उसकी तलाश में इन्वेस्टिगेशन टीम उसके घर पहुंचती है जहां सिर्फ उसकी बूढ़ी मां रहती है. अपने दमदार काम के लिए याद की जाने वालीं ब्रिलियंट एक्ट्रेस सुरेखा सीकरी ने इस किरदार में छोटा सा कैमियो किया है. सुल्तान की मां जिस तरह पलटकर पुलिस वालों को देखती है और बताती है कि पहली बार मर्डर करने के बाद उसने अपने बेटे को घर से निकाल दिया था फिर आजतक बात नहीं की, वो इंटेंसिटी बहुत कमाल की थी.

एसीपी राठौर को एक मां की बातों का सच दिख जाता है और वो माफी मांगते हुए कहता है कि उसका काम ऐसा है कि कभी-कभी सख्ती करनी पड़ती है. इस सीन से आमिर के किरदार में इंसानियत और दया भी नजर आती है.
3. नवाजुद्दीन का इंटेरोगेशन सीन
फिल्म में विक्टोरिया हाउस पर छापे का एक सीन है जिसमें राठौर और उसके साथी मकरंद देशपांडे को अरेस्ट करने में चूक जाते हैं. लेकिन गैंगस्टर्स का अवैध माल का गोदाम जब्त कर लेते हैं और गोदाम में काम करने वाले दो लोगों को पकड़कर उन्हें रिमांड पर लिया जाता है.

इसमें से एक का किरदार नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने निभाया था. आमिर इस सीन में अपने साथी मुकेश ऋषि को जिस तरह गोली चलाकर नवाजुद्दीन से सच उगलवाने को कहते हैं, उससे ये स्पष्ट हो जाता है कि एसीपी राठौर सिर्फ बहादुर ही नहीं, चालाक भी है. उसके पास काम निकलवाने वाली ट्रिक्स भी भरपूर हैं.
डिटेल में समझने पर ये नजर आता है कि कैसे इन तीन सीन्स ने ना सिर्फ एसीपी राठौर, बल्कि पुलिसवालों के काम करने के तरीकों और उनके व्यवहार को स्क्रीनप्ले में उभारा था. इस तरह इन तीन सीन्स में जनता को वो पुलिसिंग दिखने लगी, जिसकी कमी पहले 'सरफरोश' का माहौल फीका कर रही थी.