उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के सियासी नफा-नुकसान को लेकर राजनीतिक दल अपने-अपने समीकरण बनाने में जुट गए हैं. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने मंगलवार को यूपी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह से मुलाकात की है, जिसके बाद एनडीए में उनकी वापसी के कयास लगाए जा रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि राजभर क्या असदुद्दीन ओवैसी का साथ छोड़कर बीजेपी के करीबी बनने की तैयारी में हैं और 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' 2022 के चुनाव से पहले ही बिखर जाएगा?
यूपी में एनडीए का कभी हिस्सा रहे ओमप्रकाश राजभर की वापसी का ताना-बाना बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह बुन रहे हैं, क्योंकि दोनों ही नेता बलिया से आते हैं. दयाशंकर ही राजभर को अपने साथ लेकर स्वतंत्रदेव सिंह से मिलाने गए थे. दयाशंकर सिंह ने कहा कि उनकी कोशिश है कि ओमप्रकाश राजभर को एनडीए में लाया जाए क्योंकि राजनीति में कोई परमानेंट मित्र या शत्रु नहीं होता. राजभर शुरू से प्रधानमंत्री मोदी के दलित और पिछड़े वर्गों के लिए किए गए कार्यों के समर्थक रहे हैं. ऐसे में वह हमारे साथ दोबारा आ सकते हैं.
ओमप्रकाश राजभर ने भी कहा कि असदुद्दीन ओवैसी उनके 'जनधिकार भागीदारी मोर्चा' का अभी तक हिस्सा नहीं हैं. ओवैसी ने भी मोर्चे में शामिल होने का कोई ऐलान नहीं किया है. साथ ही राजभर ने कहा कि बीजेपी अगर उनकी शर्तों को मान ले तो वह एनडीए में दोबारा शामिल हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि बीजेपी अगर जातिगत जनगणना, सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को लागू कर दे तो हम पूरे मन के साथ एनडीए का हिस्सा बन जाएंगे.
अब सूत्रों के हवाले से कहा भी जा रहा है कि ओमप्रकाश राजभर अब ओवैसी के साथ में न जाकर, बीजेपी के साथ ही गठबंधन करेंगे. ओमप्रकाश राजभर गृहमंत्री अमित शाह से मिलकर बीजेपी गठबंधन का ऐलान करेंगे.
असदुद्दीन ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर लखनऊ में मुलाकात करने से लेकर पूर्वांचल तक का दौरा भी कर चुके हैं. साथ ही दोनों ही नेताओं ने कई बार साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात भी सार्वजनिक रूप से कही है. इसके बावजूद अब ओमप्रकाश राजभर का यह कहना कि असदुद्दीन ओवैसी अभी भागीदारी संकल्प मोर्चा का हिस्सा ही नहीं हैं. इससे साफ जाहिर होता है कि असदुद्दीन ओवैसी से ओमप्रकाश राजभर दूरी बना रहे हैं और बीजेपी के साथ जाने की जुगत में जुट गए हैं.
AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने पिछले दिनों बहराइच का दौरा किया था, जहां उन्होंने सालार मसूद गाजी की मजार पर जियारत की थी. सालार मसूद गाजी और महाराज सुहेलदेव के बीच युद्ध हुआ था. इसी महाराज सुहेलदेव के नाम पर ओम प्रकाश राजभर ने अपनी पार्टी बनाई है. यही वजह है कि ओवैसी का मसूद गाजी की मजार पर जाने को लेकर बीजेपी ने ओम प्रकाश राजभर को कठघरे में खड़ा कर दिया था. बीजेपी ने कहा था जिस मुस्लिम शासक से महाराज सुहेलदेव से लड़ाई हुई, उसकी मजार पर जाने वाले ओवैसी के साथ राजभर कैसे गठबंधन कर सकते हैं?
मसूद गाजी की मजार पर जाने के बाद से ही ओमप्रकाश राजभर ने असदुद्दीन ओवैसी से दूरी बना ली थी. इसीलिए 15 जुलाई को असदुद्दीन ओवैसी की पश्चिम यूपी में यात्रा से ओमप्रकाश राजभर ने खुद को अलग कर लिया था जबकि दोनों नेताओं को साथ में गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, बुलंदशहर और संभल के पार्टी के कार्यकर्ताओं से मुलाकात के साथ-साथ मंच भी साझा करते हुए मुरादाबाद पहुंचना था.
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो ओमप्रकाश राजभर के बदले मिजाज से ओवैसी ने भी दूरी बना रखी है. ऐसे में ओवैसी और राजभर दोनों ही नेता यूपी में अलग-अलग सियासी राह तलाश रहे हैं. ओवैसी का सियासी आधार मुस्लिम वोटों पर है तो ओमप्रकाश राजभर का राजभर समुदाय पर है.
हालांकि, पूर्वांचल में राजभर समुदाय पर बीजेपी की नजर है और उसे साधने के लिए तमाम कवायद कर रही है. इसीलिए ओम प्रकाश राजभर से अनबन होने के बाद बीजेपी अपने तरीके से अनिल राजभर और दूसरे पिछड़ों के नेताओं के जरिए धीरे धीरे इन इलाकों में पैठ बनाने में जुटी थी, लेकिन पंचायत चुनाव के नतीजे पार्टी के हित में नहीं रहे. ऐसे में बीजेपी और ओमप्रकाश राजभर के बीच नजदीकियां दोबारा से बढ़ने लगीं.
ओमप्रकाश राजभर ने पहले मुरादाबाद में योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री भूपेंद्र सिंह से मुलाकात की और अब बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह से मिले हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि राजभर और बीजेपी एक बार फिर से मिलकर चुनाव लड़ने की संभावना तलाश रहे हैं. हालांकि, बीजेपी इस बार उनके साथ गठबंधन को लेकर अभी नफा-नुकसान को तौल रही है.
बता दें 2017 के विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और योगी सरकार में मंत्री बने थे. इसके बाद वह लोकसभा चुनाव के बाद मई 2019 में योगी सरकार से बाहर किए गए थे और उन्होंने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. इस वजह से बीजेपी इस बार उनके बारे में जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करना चाहती है.