scorecardresearch
 

फूलन देवी की जंयती, यूपी की सियासत में इन दिनों चर्चा का केंद्र क्यों बनी हैं 'बैंडिट क्वीन'

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव है, यही वजह है कि राजनीतिक दल फूलनदेवी के बहाने निषाद समाज के बीच अपनी पकड़ बनाना चाहते हैं. वो फूलन देवी के नाम और उनकी विरासत को अपना सहारा बना रहे हैं. इस बार पहले के मुकाबले फूलनदेवी को कहीं ज्यादा जोरशोर से मंगलवार को उनकी 58वीं जयंती पर याद किया जा रहा है. 

Advertisement
X
पूर्व सांसद फूलनदेवी
पूर्व सांसद फूलनदेवी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • फूलनदेवी की 58वीं जयंती पर सियासत तेज है
  • फूलन देवी के बहाने निषाद वोटों को साधने का दांव
  • यूपी में 5 फीसदी निषाद निर्णायक भूमिका में हैं

बेहमई नरसंहार के चार दशक के बाद फूलन देवी उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों चर्चा के केंद्र में बनी हुई हैं. इसकी वजह अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाला विधानसभा चुनाव है. राजनीतिक दल फूलन देवी के बहाने निषाद समाज के बीच अपनी पकड़ बनाना चाहते हैं. वो फूलन देवी के नाम और उनकी विरासत को अपना सहारा बना रहे हैं. इस बार पहले के मुकाबले फूलन देवी को कहीं ज्यादा जोरशोर से मंगलवार को उनकी 58वीं जयंती पर याद किया जा रहा है. 

फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को जालौन जिले के पुरवा गांव में हुआ था. इसीलिए समाजवादी पार्टी का पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ ने जालौन में ही फूलन देवी की 58वीं जयंती मनाएगा. वहीं, निषाद समुदाय के नाम पर बिहार से सियासत शुरू करने वाले मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी ने उत्तर प्रदेश में फूलन देवी की जयंती पर घर-घर 50 हजार फूलन की तस्वीरों वाले कैलेंडर और लाखों लाकेट बांटने का ऐलान किया है. 

उत्तर प्रदेश की 50 फीसदी से अधिक पिछड़ी आबादी में तकरीबन 5 फीसद निषाद हैं जो अति पिछड़ी उपजातियों में माने जाते हैं. मोटे तौर पर देखें तो निषादों में 150 से ज्यादा उप जातियां हैं और पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश के 18 जिलों में इनकी अच्छी-खासी तादाद है. लेकिन, निषाद समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं का दावा है कि राज्य की 403 विधानसभा सीटों में से उनके समाज का 160 सीटों पर ठीक-ठाक प्रभाव है और इन सीटों पर 60 हजार से लेकर एक लाख तक वोट निषाद समाज का है.

Advertisement

निषाद समाज अपने मजबूत वोटबैंक से बड़े राजनीतिक दलों का खेल कई सीटों पर बिगाड़ सकते हैं. यही कारण रहा है कि निषाद समाज के वोटबैंक पर सभी राजनीतिक पार्टियों की सदैव नजर रही है, इस वोटबैंक को साधने के लिए बड़े-बड़े दांव चले भी गए हैं. बीजेपी हो या फिर सपा व अन्य दल, सभी का प्रयास है कि निषाद समाज उनके साथ रहे. इन्हें भी किसी बड़ी पार्टी के साथ जाने में कोई गुरेज नहीं है, लेकिन निषाद भी अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ाने के लिए इसकी बड़ी कीमत वसूलने की कोशिश में भी हैं.

गोरखपुर की वजह से बढ़ी निषाद पार्टी की बार्गेनिंग पावर

बता दें कि 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद संजय निषाद को सपा का साथ मिला और उन्होंने अपने इंजीनियर बेटे प्रवीण निषाद को सांसद बनाने में कामयाब रहे. योगी के गढ़ में इस हैरतअंगेज जीत ने निषाद पार्टी की बार्गेनिंग पावर बढ़ा दी. इसके बाद अगले साल जब लोकसभा चुनाव हुए तो बीजेपी ने संजय निषाद को अपने शीशे में उतार लिया. लेकिन अब 2022 के चुनाव को देखते हुए निषाद पार्टी ने अपनी डिमांड बढ़ा दी है.

संजय निषाद मल्लाह नेता के रूप में फूलन देवी की विरासत पर पहला दावा ठोक रहे हैं. संजय निषाद ने निषाद समाज को अनुसूचित जाति के तहत आरक्षण देने की मांग को तेज कर दिया है. समाज को आरक्षण मिलने पर ही वह भाजपा के साथ रहेंगे. संजय निषाद कहते हैं कि जब किसी ने इसके बारे में सोचा भी नहीं था, उसके पहले से उनकी पार्टी फूलन देवी की जयंती और बरसी का कार्यक्रम कर रही है. फूलनदेवी ने समाज के कमजोर तबकों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए बंदूक उठाई थी. यूपी की सत्ता में आने पर निषाद पार्टी फूलन देवी के नाम पर महिला आत्मरक्षा केंद्र बनाएगी. 

Advertisement

निषाद समुदाय के सहारे बिहार की सियासत में किंगमेकर बनकर उभरे विकासशील इंसान पार्टी के चीफ मुकेश सहनी 25 जुलाई को फूलन देवी की पुण्यतिथि पर उनकी विशाल प्रतिमाएं भदोही में लगाना चाहते थे, लेकिन उत्तर पुलिस ने ऐसा होने नहीं दिया. सहनी को वाराणसी एयरपोर्ट से बाहर निकलने नहीं दिया और उन्हें वापस बिहार भेज दिया था. फूलन के जरिए निषादों में पैठ की वीआइपी की कोशिश है. सहनी की पार्टी बिहार में एनडीए में शामिल है, लेकिन अगले साल यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सूबे में पांव जमाना चाहते हैं. 

वीआईपी के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष लोटनराम निषाद ने बताया कि फूलन देवी की जयंती पर उन्हें निषाद समाज के घर-घर तक पहुंचाने की फैसला किया है. ऐसे में निषाद समाज के घरों में फूलन देवी की प्रतिमाएं लगाने का काम करेंगे. उनकी तस्वीर वाले कैलेंडर और लाकेट बांटेंगे, क्योंकि वो हमारे सम्मान की प्रतीक है और मसीहा है.

काजल निषाद सपा में शामिल

सपा ने हाल ही में भोजपुरी फिल्मों की अभिनेत्री काजल निषाद को अपने साथ लेकर निषाद समाज को अपने से जोड़ने की कोशिश की है. पार्टी पिछले दिनों वाराणसी में मल्लाहों की नाव यात्रा निकाल चुकी है और पार्टी के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ की कमान भी निषाद समुदाय से आने वाले राजपाल कश्यप के हाथों में अखिलेश यादव ने दे रखी है, जो फूलन देवी के सहारे पार्टी के सियासी जनाधार को बढ़ाने में जुटे हैं.

Advertisement

सपा के पिछड़े वर्ग प्रकोष्ठ के अध्यक्ष राजपाल कश्यप कहते हैं कि पार्टी हर साल फूलन देवी की जयंती और पुण्यतिथि पर पूरे राज्य में कार्यक्रम करती है. इस साल हम फूलन देवी के गृह जनपद में उनकी जयंती को मना रहे हैं. सपा की सरकार बनने पर फूलन देवी के नाम पर स्मारक स्थल व उनकी प्रतिमा लगाई जाएगी. सपा सरकार ने फूलन देवी पर लगे तमाम केस हटवाए, मिर्जापुर से उन्हें सांसद भी बनवाया. निषाद समुदाय इस बेहतर तरीके से जानता भी है.

यूपी की सत्ता पर काबिज बीजेपी की नजर भी निषाद वोटबैंक पर हैं. बीजेपी ने 17 जुलाई को पांच सदस्यों वाला निषाद सेल बनाया. इसका मकसद है असेंबली इलेक्शन में निषादों का सपोर्ट हासिल करना. जय प्रकाश निषाद को इस सेल का राज्य संयोजक बनाया गया है. राज्यसभा सदस्य बनाकर जय प्रकाश निषाद के जरिए बीजेपी इस समाज के बीच पैठ मजबूत करने में जुट गई है. 

बिहार सरकार के मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के बेटे संतोष मांझी की पिछले दिनों पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और फिर दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के भी निहितार्थ निकाले जा रहे हैं. इसके अलावा बीजेपी ने निषाद पार्टी के साथ भी सूबे में हाथ मिला रखा है. हालांकि, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने आजतक के पंचायत कार्यक्रम में नाम लिए बगैर कहा था कि जाति की राजनीति में कुछ पार्टियां हत्यारों के मूर्तियां लगा रहे हैं. यह इशारा उनका विपक्षी पार्टियों पर था, जो फूलनदेवी की मूर्ती लगाने के लिए कमर कस रहे हैं. 

Advertisement

माना जाता है कि साल 2007 में बसपा, 2012 में सपा और फिर 2017 में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में निषाद समाज की खास तौर से पूर्वांचल में बड़ी भूमिका रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और मुख्यमंत्री के गृह नगर गोरखपुर में तो निषाद वोटबैंक निर्णायक भूमिका तक में रहा है. छह माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर एक बार फिर निषाद समाज के वोट को अपने पाले में लाने में सभी पार्टियां जुटी हैं. ऐसे में ये सभी पार्टियां फूलनदेवी के सियासी हथियार के तौर पर भी इस्तेमाल कर रही हैं.

 

Advertisement
Advertisement