Laal Topi History Samajwadi Party: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 'लाल टोपी' को खतरे की घंटी बताकर देश की सियासत में नई बहस छेड़ दी है, समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की पहचान लाल टोपी रही है. इसलिए समाजवादी पार्टी आक्रामक है और सियासी तीर दोनों तरफ़ से चल रहे हैं.
भारत की राजनीति में कब से हुआ लाल टोपी का चलन, इसका इतिहास क्या है? इस बारे में हमनें सोशलिस्ट, कवि और मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद उदय प्रताप सिंह (Uday Pratap Singh) से विस्तार से बात की.
सवाल: पीएम मोदी ने कहा लाल टोपी खतरे की घंटी है. आपकी प्रतिक्रिया?
उदय प्रताप सिंह: उन्होंने ये अच्छा नहीं कहा, उनके लिए खतरा हो सकता है. अखिलेश और समाजवादी पार्टी का आधार बढ़ता जा रहा है. ये उनके लिए खतरा होगा पर देश के लिए लाल टोपी खतरा नहीं है. लाल टोपी सम्मानित लोग लगाते रहे हैं. समाजवाद के सभी प्रमुख लोग कांग्रेस से ही थे. जय प्रकाश नारायण, लोहिया, कृपलानी सबने व्यवस्था परिवर्तन की बात की थी.
सवाल: पर लाल टोपी की शुरुआत कहां से हुई?
उदय प्रताप सिंह: ये सभी (जेपी, लोहिया और कृपलानी) कांग्रेस के साथ ही थे. 1948 में ये लोग नाराज हो गए कि कांग्रेस गांधीजी के रास्ते से हट रही है. कॉटेज इंडस्ट्री की कल्पना गांधीजी ने की थी, जबकि ये लोग ( नेहरू और कांग्रेस) हैवी इंडस्ट्री में चले गए. जबकि जेपी, लोहिया का मानना था कि चीन-जापान जैसे देश कॉटेज इंडस्ट्री को अपनाकर ही आगे बढ़ रहे. पहले तो इन लोगों ने इस बात को कांग्रेस के अंदर रखा फिर 1948 में अलग होकर सोशलिस्ट पार्टी बनाई. 1948 में जेपी रूस गए. लौटकर उन्होंने इसे (लाल टोपी) पहनना शुरू किया. क्योंकि दुनिया में जहां-जहां जैन क्रांति हुई है वो लाल रंग का प्रयोग करते रहे. भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद ने भी लाल रंग का प्रयोग किया.
हरे रंग से हरियाली है
लाल रंग से लाली
एक हाथ में ईद
एक हाथ में दिवाली...
गांधीजी ने भी कहा था, हमें आजादी के लिए आजादी नहीं चाहिए, व्यवस्था परिवर्तन के लिए आजादी चाहिए. जिसे गांधीजी ने व्यवस्था परिवर्तन कहा, उसे लोहिया ने सामाजिक क्रांति कहा है.
सवाल: उस वक्त ये तय हुआ, सबसे पहले जयप्रकाश नारायण ने लाल टोपी पहनी. पर राजनैतिक रूप से कब अपनायी गई?
उदय प्रताप सिंह: उस वक्त लड़ाई थी व्यवस्था परिवर्तन की. फिर जो सोशलिस्ट थे, इमरजेंसी में सब एक हो गए. गांधीजी की विचारधारा समाजवादियों ने अपनाई. कांग्रेस भी गांधीजी के विचारों से हट गई थी. सोशलिस्ट विचारधारा के लोगों में बिखराव आ गया था. फिर मुलायम सिंह जी ने इसे महसूस किया. 1992 में एक पार्टी बनायी. कई लोग साथ आए. बंगाल से लोग आए.... बद्री विशाल पित्ती आए, जनेश्वर मिश्रा की इसमें बड़ी भूमिका रही. हम 33 लोगों हस्ताक्षर से ज्ञापन दिया कि अयोध्या में माहौल बिगाड़ने का ख़तरा है. फिर हम लोगों ने लखनऊ में पहले अधिवेशन किया जिसमें हम सबने लाल टोपी पहनी थी. मुलायम सिंह जी ने लोगों को प्रेरित किया कि वे लाल टोपी पहनें.
सवाल: आप दुनिया के अन्य देशों की क्रांति की बात कर रहे हैं. पर कम्युनिस्ट भी लाग रंग का प्रयोग करते हैं. वे भी व्यवस्था परिवर्तन की बात करते हैं. पॉलिटिकली उनमें और सोशलिस्ट में क्या फर्क है?
उदय प्रताप सिंह: ये बहुत अच्छा सवाल है. लोहिया जी मार्क्सवादी थे, पर मार्क्स की थ्योरी यहां अलग है. इन देशों में मार्क्सवाद के हिसाब से किसान कैपिटलिस्ट है. क्योंकि उसके पास ज़मीन है. यहां देखें तो किसान आत्महत्या करता है. उनके यहां वर्ग संघर्ष है. वर्ग हैं अमीर और गरीब. हमारे यहां वर्ण संघर्ष है. अमीर गरीब बन सकता है और गरीब अमीर...पर वर्ण में जो जिस जाति का है, उसी जाति का रहता है. पर व्यवस्था परिवर्तन सोशलिस्ट्स चाहते हैं.
सवाल: ...एक काली टोपी भी है. लाल टोपी के जवाब में जिसकी बात हो रही है.
उदय प्रताप सिंह: काली टोपी क्या है? साफ कहिए RSS की टोपी है. मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता. जिसका जो मन करे टोपी लगाए. मैं तो कोई टोपी नहीं लगाता हूं. कभी मीटिंग में जाता हूं तो लगा लेता हूं. और बात टोपी की नहीं है, बात मुद्दे से भटकाने की है. रोजगार, काम, भर्तियां, किसान असल मुद्दे होने चाहिए. पर इससे अलग वो टोपी की बात करते हैं. यूपी के मुख्यमंत्री योगी जी ने एक बार कहा था समाजवाद की जरूरत ही नहीं है. अब ये कोई उनको बताए कि जिस संविधान की उन्होंने शपथ ली है, उसमें समाजवाद शब्द है. ये संविधान का उल्लंघन है.
सवाल: आप लाल टोपी की बात कर रहे, पर आपने लिखा था ‘न तेरा है न मेरा है, हिंदुस्तान सबका है. न समझी गई ये बात तो नुकसान सबका है’....
उदय प्रताप सिंह: आज की राजनीति की तरह पहले राजनीति नहीं थी. पहले वैमनस्यता नहीं थी, मैं तो अटल जी के साथ भी रहा हूं. अंडमान निकोबार हम लोग गए थे. अटल जी ने हमको ही अपने साथ रखा. जब मैंने पूछा तो उन्होंने कहा यहां कविता की बात हो. लोग कविता की बात नहीं कर पाते, राजनीति की बात करते हैं.