उत्तर प्रदेश की राजनीति में डीएम प्रयागराज के एक वीडियो ने हलचल मचा दिया है. वायरल हो रहे इस चर्चित विडियो में डीएम एक योगी के लिए चूल्हे पर रोटी बनाते हुए दिखाई दे रहे हैं. जब कोई डीएम किसी संत के साथ चूल्हे पर रोटी बनायेगा तो चर्चा होना स्वाभाविक ही है. जो लोग भारत में नौकरशाहों की हैसियत को जानते हैं उन्हें पता होगा कि कोई भी डीएम आम लोगों के लिए तो नहीं ही जमीन पर इस तरह बैठेगा. स्वाभाविक है कि जिस संत के लिए डीएम खुद नीचे बैठकर रोटियां सेंक रहे हैं वह कोई मामूली हस्ती तो नहीं होगा. इस विडियो के वायरल होने से प्रयागराज के डीएम मनीष वर्मा के जेस्चर की तारीफ हो रही थी पर जल्द ही इस मामले में कहानी ने नया मोड़ ले लिया.
मंगलवार को डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य माघ मेले की तैयारियों का जायज़ा लेने औचक निरीक्षण पर प्रयागराज पहुंच गये. माघ मेला कितना बड़ा और व्यापक होता है, इसको इस तरह समझ सकते हैं कि कम से कम 50 लाख लोग इस दिन संगम में डुबकी लगाते हैं. खैर जब मौर्य वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि जो तैयारियां होनी चाहिए वो तो कोसों दूर थीं. जो दावे प्रशासन की तरफ से संतों और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए किए जा रहे हैं वो केवल दावे ही थे, धरातल पर कुछ भी नजर नहीं आ रहा था.
ऊपर से डीएम साब रोटी बेलने में लगे थे. मौर्य ने ज़िलाधिकारी को बुलाया और मुस्कराते हुए कहा कि सतुआ बाबा की रोटी के चक्कर में ना पड़ो और ज़मीनी हकीकत पर ध्यान देने के लिए कहा. केशव प्रसाद मौर्य की इस नसीहत को कुछ लोग उत्तर प्रदेश की राजनीति में पावर स्ट्रगल के रूप में देखने लगे. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और चीफ मिनिस्टर योगी आदित्यनाथ के बीच पर्दे के पीछे कुछ न कुछ चलता ही रहता है. जाहिर है कि बीजेपी विरोधियों को एक सतुआ बाबा के नाम पर बीजेपी की आंतरिक राजनीति पर हमला करने का एक मौका मिल गया.
योगी आदित्यनाथ के करीबी सतुआ बाबा
सतुआ बाबा को मुख्यमंत्री योगी का करीबी माना जाता है. जगतगुरू की पदवी मिलने के दौरान योगी आदित्यनाथ खुद विशेष तौर पर मौजूद रहे. योगी जब कुंभ मेले के दौरान संगम स्नान कर रहे थे उस समय भी सतुआ बाबा उनके साथ मौजूद थे. संतोष दास उर्फ़ सतुआ बाबा विष्णुस्वामी संप्रदाय की सतुआ बाबा पीठ के मुखिया हैं. इस संप्रदाय के प्रमुख को सतुआ बाबा के नाम से जाना जाता है.
2012 में छठे पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन यमुनाचार्य जी महाराज सतुआ बाबा का निधन हो गया था जिसके बाद संतोष दास जी को ये ज़िम्मेदारी मिली. संतोष दास जी विष्णु स्वामी संप्रदाय के 57वें आचार्य बने. संतोष दास उर्फ़ सतुआ बाबा ने 11 वर्ष की उम्र में ही परिवार त्याग दिया था और अध्यात्म की तरफ रूख कर लिया था. इनको काशी विश्वनाथ का प्रतिनिधि भी माना जाता है. सतुआ बाबा श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर के तौर पर भी सुशोभित हैं. पिछले महाकुंभ में इनको जगतगुरू की पदवी से विराजमान किया गया.
सतुआ बाबा के नाम पर यूपी की राजनीति क्यों गरमा गई है?
सतुआ बाबा की वजह से उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और जिलाधिकारी मनीष वर्मा के बीच तीखा विवाद सामने आया, जो यूपी की सियासी गलियारों में हलचल मचा रहा है. लेकिन सवाल यह है कि एक धार्मिक-सामाजिक चेहरा आखिर इतनी राजनीतिक उथल-पुथल क्यों पैदा कर रहा है? दरअसल इसके पीछे उत्तर प्रदेश बीजेपी के 2 कद्दावर नेताओं के बीच चल रहा शीतयुद्ध है.
योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के बीच पुरानी अदावत जगजाहिर है. उत्तर प्रदेश बीजेपी की सबसे चर्चित राजनीतिक कहानियों में से एक है. यह कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं, बल्कि सत्ता, संगठन बनाम सरकार, जातीय संतुलन और वर्चस्व की जंग है. 2017 में बीजेपी की बड़ी जीत के बाद केशव प्रसाद मौर्य (तब प्रदेश अध्यक्ष) खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानते थे. लेकिन अचानक योगी आदित्यनाथ को कमान सौंपी गई. यहीं से दरार शुरू हुई. केशव को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन कई बड़े विभाग (जैसे PWD) बाद में छीन लिए गए. 2022 में केशव सिराथू सीट हार गए, फिर भी उप-मुख्यमंत्री बने रहे.
2018-19 में PWD टेंडर और विभागीय नियुक्तियों को लेकर दोनों ही नेताओं के बीच चिट्ठियां और आरोप-प्रत्यारोप ने माहौल को तल्ख बनाया. 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के 29 सीटें गंवाने के बाद केशव मौर्य के एक बयान ने दोनों के बीच की दूरी और बढ़ी दी. मौर्य ने कहा था कि संगठन सरकार से बड़ा है. इसे योगी सरकार पर अप्रत्यक्ष हमला माना गया. 2024-25 में अयोध्या दीपोत्सव में दोनों डिप्टी सीएम (केशव और ब्रजेश) विज्ञापन में नाम न छपने पर शामिल नहीं हुए. कई बार अलग-अलग बयानबाजी हुई, जैसे योगी के बंटेंगे तो कटेंगे नारे से केशव ने दूरी बनाई.
2025 में भी दोनों के बीच तनाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ, हालांकि किसी तरह की जंग भी नहीं है दोनों कि बीच. केशव ने कई बार योगी की तारीफ की है. कल्याण सिंह की पुण्यतिथि पर कहा कि योगी उनके रास्ते पर चल रहे हैं. बिहार चुनाव में केशव सह-प्रभारी बने, योगी ने 20 से अधिक सभाएं कीं. दोनों ने मिलकर काम किया.