पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पूर्व मंत्री व माझा क्षेत्र के दिग्गज नेता सुच्चा सिंह छोटेपुर ने शिरोमणि अकाली दल का दामन थाम लिया है. अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल ने गुरुवार को छोटेपुर को पार्टी की सदस्यता दिलाई और साथ ही बटाला सीट से प्रत्याशी भी घोषित कर दिया. छोटेपुर के आने से माझा रीजन की सियासत में अकाली दल की ताकत बढ़ सकती है, जो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए राजनीतिक चुनौती होगी.
पांच साल पहले और 2017 चुनाव से ठीक पहले सुच्चा सिंह छोटेपुर ने आम आदमी पार्टी को अलविदा कह कर अपनी अलग पार्टी बना ली थी, जिससे पंजाब के सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल गए थे. भले ही 2017 में छोटेपुर खुद कोई करिश्मा नहीं दिखा सके हों, लेकिन सूबे की सियासत में उन्होंने मानो भूचाल ला दिया था. आम आदमी पार्टी के पक्ष में चल रही चुनावी हवा पूरी तरह से पलट गई थी. पंजाब की सत्ता में आने की आम आदमी पार्टी की उम्मीदों को माझा में बड़ा सियासी झटका लगा था.
सुच्चा सिंह छोटेपुर पंजाब आम आदमी पार्टी के संयोजक रहे हैं और पार्टी को सूबे में स्थापित करने में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है. 2014 का लोकसभा चुनाव आम आदमी पार्टी ने उन्हीं की अगुवाई में लड़ी थी और तीन सीटें जीतकर पंजाब के सभी दलों को आश्चर्य में डाल दिया था. आम आदमी पार्टी को तीनों संसदीय सीटें माझा के रीजन में मिली थी, जो छोटेपुर के प्रभाव वाला माना जाता है.
2017 का विधानसभा चुनाव भी आम आदमी पार्टी छोटेपुर के अगुवाई में उतरने की तैयारी में थी, लेकिन चुनाव से पहले ही उन पर टिकट के बदले पैसे लेने के आरोप लगे थे. छोटेपुर का एक वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसके बाद पार्टी ने उन्हें संयोजक पद से हटाकर पार्टी से निष्कासित कर दिया था. छोटेपुर के निकाले जाने का सियासी असर माझा के इलाके में पड़ा और आम आदमी पार्टी को तगड़ा झटका लगा.
वहीं, अब 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले छोटेपुर ने अकाली दल में एंट्री की है. उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाते समय सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि छोटेपुर अच्छे इंसान के साथ ही पंजाब हितैषी हैं. पंजाब में आम आदमी पार्टी को उन्हीं ने स्थापित किया, लेकिन आम आदमी पार्टी ने उन्हें धोखा देने का काम किया है. अकाली उन्हें पूरा सम्मान देना का काम करेगी.
बता दें कि सुच्चा सिंह छोटेपुर ने अपने राजनीतिक पारी का आगाज 1975 में छोटेपुर गांव का सरपंच बनकर की थी. वह दो बार विधायक रहे हैं. 1985 में पहली बार गुरुदासपुर के धालीवाल विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की थी. इसके बाद यह सुरजीत सिंह की सरकार में स्वास्थ्य व पर्यटन मंत्री बने थे. हालांकि ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था.
साल 2002 के विधानसभा चुनाव में छोटेपुर दोबारा निर्दलीय के रूप में जीते. इस चुनाव में उन्होंने सुच्चा सिंह लंगाह को 80 वोटों से हराया था. 2009 में वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे. सुच्चा का सियासी प्रभाव के चलते लोकसभा चुनाव में प्रताप सिंह बाजवा की गुरदासपुर से बीजेपी के विनोद खन्ना को हराने में मदद मिली थी.
साल 2012 के विधानसभा चुनाव में छोटेपुर निर्दलीय खड़े हुए, लेकिन चरणजीत कौर बाजवा पत्नी प्रताप सिंह बाजवा से हार गए. इसके बाद आम आदमी पार्टी में शामिल हुए और पंजाब संयोजक बने. अगस्त 2016 में टिकट के लिए पैसे लेने के आरोपों में पार्टी से निकाल दिया गया था. 2017 में अपना पंजाब पार्टी बनाई व आम आदमी पार्टी को चुनाव में नुकसान पहुंचाया. अब चार साल बाद अकाली दल की सदस्यता लेने से माझा रीजन की सियासत में बड़ी हलचल की संभावना है.