पत्रकार और फुटबॉलर रहे एन बीरेन सिंह इस समय मणिपुर के मुख्यमंत्री हैं. पूर्वोत्तर की सियासत में बीरेन सिंह मंझे हुए राजनीतिक खिलाड़ी हैं. डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशनरी पीपल्स पार्टी से अपनी राजनीतिक पारी का आगाज किया और कांग्रेस से सियासी बुलंदी हासिल की और अब बीजेपी के खेवनहार बन चुके हैं. बीजेपी उन्हीं के चेहरे को आगे कर दोबारा से पूर्वोत्तर की सत्ता पर काबिज होने की कवायद में जुटी है. ऐसे में देखना है कि बीरेन सिंह मणिपुर के चुनावी रणभूमि में गोल कर पाते हैं कि नहीं?
साल 1961 में मणिपुर के लुवांसंगबम ममंग लेइकाई में एक हिंदू परिवार में जन्मे बीरेन सिंह को बचपन से ही फुटबॉल में दिलचस्पी थी. जब वह 18 साल के थे, तब मणिपुर की राजधानी इंफाल में एक मैच के दौरान सीमा सुरक्षा बलों (बीएसएफ) की फुटबॉल टीम में चुन लिए गए.
वह राज्य के बाहर खेलने वाले मणिपुर के पहले खिलाड़ी थे. बीरेन साल 1981 में डूरंड कप जीतने के लिए कोलकाता के मोहन बागान को हराने वाली बीएसएफ टीम का हिस्सा थे. हालांकि, उन्होंने अगले साल ही बीएसएफ टीम छोड़ दी लेकिन 1992 तक राज्य टीम के लिए खेलना जारी रखा. एन. बीरेन सिंह को राष्ट्र के लिए उनके असाधारण कार्य के लिए 2018 में चैंपियंस ऑफ चेंज से सम्मानित किया गया था. वह पूर्व फुटबॉलर खिलाड़ी होने के साथ पत्रकारिता से भी जुड़े रहे हैं.
फुटबॉलर के रूप में शुरू किया करियर
उन्होंने एक फुटबॉलर के ही रूप में अपना करियर शुरू किया था और घरेलू प्रतियोगिताओं में अपनी टीम के लिए खेलते हुए सीमा सुरक्षा बल (BSF) में भर्ती हो गए. उन्होंने बीएसएफ से इस्तीफा देकर बिल्कुल अलग राह लेते हुए स्थानीय भाषा में एक दैनिक अखबार की शुरुआत की. अखबार चलाने के लिए उन्हें अपने पिता से विरासत में मिली दो एकड़ जमीन बेचनी पड़ी थी. उनका अखबार जल्द ही स्थापित हो गया. लेकिन राजनीति में आने के लिए साल 2001 उन्होंने अपना अखबार दो लाख रुपये में बेच दिया.
2002 से शुरू हुआ राजनीतिक सफर
बीरेन सिंह 2002 में डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशनरी पीपल्स पार्टी में शामिल हुए और हिंगांग से विधानसभा चुनाव जीते. 2003 में कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्होंने 2007 में पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और हिंगांग से विधायक बन गए. 2012 में, उन्होंने तीसरी बार चुनाव जीता, लेकिन मौजूदा सीएम के खिलाफ सत्ता संघर्ष में शामिल थे. इबोबी सिंह को कैबिनेट से बाहर कर दिया गया था. अक्टूबर 2016 में बीरेन ने एक बार फिर जोखिम लिया और तमाम तरह के अंसतोष जाहिर करते हुए इबोबी सिंह सरकार और कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. अक्टूबर 2016 में ही वो आधिकारिक तौर पर भाजपा में शामिल हो गए. 2017 में, उन्होंने हिंगांग से अपनी सीट बरकरार रखी और वे भाजपा के गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री बने वह मणिपुर में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री हैं.
बीरेन सिंह की संपत्ति
अपने चुनावी हलफनामे में, बीरेन सिंह ने चल और अचल सहित अपनी संपत्ति 1,08,46,392 रुपये घोषित की. मुख्यमंत्री की कुल चल संपत्ति 69,46,392.98 रुपये है. इसमें 1,95,000 रुपये नकद और तीन बैंक खातों में 58,26,872 रुपये की शेष राशि शामिल है. उनके पास 6 लाख रुपये से अधिक की महिंद्रा बोलेरो और एक .32 वाल्टर पिस्टल है. बीरेन सिंह ने 39 लाख रुपये की अचल संपत्ति घोषित की है, जिसमें से 9 लाख रुपये की जमीन स्व-अर्जित है जबकि विरासत में मिली संपत्ति 30 लाख रुपये की है. सिंह पर 1,44,300 रुपये देनदारी के रूप में हैं.
चर्चा में दामाद की संपत्ति
हालांकि राज्य में चुनावी माहौल के बीच के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के दामाद आर के इमो सिंह की संपत्ति की काफी चर्चा है. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान मणिपुर से पहले केंद्रीय मंत्री राजकुमार जयचंद्र सिंह के सबसे बड़े बेटे इमो भाजपा के टिकट पर सगोलबंद निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं. इमो सिंह द्वारा चुनाव आयोग को दिए हलफनामे के अनुसार उनकी संपत्ति 5 करोड़ रुपये से अधिक है. यह सीएम बीरेन सिंह की संपत्ति से लगभग पांच गुना अधिक है. बता दें कि मणिपुर में चुनाव लड़ने वाले सबसे अमीर उम्मीदवार आर के इमो के पास 5 करोड़ 10 लाख 94 हजार 917 रुपये की संपत्ति है.
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