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विपुल चौधरी कौन हैं, जिनकी गिरफ्तारी पर गुजरात में गरमा गई राजनीति 

छात्र जीवन से चर्चा में रहने वाले गुजरात के पूर्व गृह राज्य मंत्री विपुल चौधरी को एंटी करप्शन ब्यूरो ने गिरफ्तार कर लिया है, जिसके बाद उत्तर गुजरात की सियासत गरमा गई है. चौधरी समुदाय और अरबुदा सेना के लोग सड़क पर उतर गए हैं तो कांग्रेस भी विपुल चौधरी के समर्थन में खड़ी नजर आ रही है.

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गुजरात के पूर्व गृहमंत्री विपुल चौधरी की गिरफ्तारी के बाद उत्तर गुजरात के इलाके में सियासत गरमा गई है. दूधसागर डेयरी के चेयरमैन रह चुके विपुल चौधरी पर एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) का शिकंजा कसता जा रहा है. छात्र जीवन से चर्चा में रहने वाले विपुल चौधरी की गिरफ्तारी के खिलाफ गुजरात के कुछ हिस्सों में आंदोलन शुरू हो गया है. सूबे में चौधरी समाज और अरबुदा सेना उनके समर्थन में उतर गई है. कांग्रेस भी खुलकर विपुल चौधरी के साथ खड़ी नजर आ रही है. 

गुजरात राज्य के गृह मंत्री रह चुके विपुल चौधरी पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला के करीबी माने जाते हैं. 55 साल के विपुल चौधरी गुजरात डेयरी राजनीति के बड़े और महत्वपूर्ण चेहरों में शामिल हैं. विपुल पर आरोप है कि उनके कार्यकाल में 320 करोड़ रुपये की हेराफेरी हुई. एसीबी ने बुधवार रात उन्हें ह‍िरासत में ले ल‍िया था और फिर गुरुवार को ग‍िरफ्तार कर लिया. साथ ही एसीबी ने विपुल चौधरी के सहयोगी और सीए शैलेश पारिख को भी अरेस्ट किया है. 

विपुल चौधरी की गिरफ्तारी ऐसे समय हुई जब गुजरात चुनाव को लेकर सियासी माहौल गर्म है. ऐसे में उनकी गिरफ्तारी को गुजरात विधानसभा चुनाव से जोड़ा जा रहा है. चौधरी पटेल उपजाति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका उत्तरी गुजरात में कम से कम एक दर्जन विधानसभा सीटों पर प्रभाव है. मेहसाणा और बनासकांठा के इलाके में उनका सियासी प्रभाव साफ नजर आ रहा है, क्योंकि गिरफ्तारी के खिलाफ इसी इलाके में सबसे ज्यादा सियासत गरमा गई है. 

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चौधरी के समर्थन में कांग्रेस

कांग्रेस का दामन थामने वाले विधायक जिग्नेश मेवानी ने ट्वीट कर कहा कि गुजरात के पूर्व गृह मंत्री विपुल चौधरी की देर रात उनके घर से गिरफ्तारी हुई है. उत्तर गुजरात में बढ़ते हुए उनके प्रभाव को रोकने का यह एक राजनीतिक षड्यंत्र है. बीजेपी की यह बौखलाहट देख, राष्ट्रकवि दिनकर की एक पंक्ति याद आती है. 'जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है.'

कौन हैं विपुल चौधरी

छात्र जीवन में सियासत में कदम रखने वाले विपुल चौधरी कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों में रह चुके हैं. भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष का दायित्व संभाल चुके विपुल चौधरी पूर्व सीएम शंकर सिंह वाघेला के भी खास माने जाते हैं. चौधरी 1987 में अहमदाबाद के एलडी इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई के दौरान महासचिव चुने गए थे. वह उत्तर गुजरात की राजनीति में काफी प्रभाव रखते आए हैं. शंकर सिंह वाघेला के साथ अच्छे संबंधों की बड़ी वजह के पीछे विपुल चौधरी के पिता मानसिंह चौधरी की शंकर सिंह वाघेला के साथ दोस्ती थी.

विपुल चौधरी 1995 में पहली बार बीजेपी के टिकट से विधायक चुने गए और केशुभाई पटेल की सरकार में राज्य मंत्री के तौर पर ग्राम्य विकास विभाग की जिम्मेदारी संभाली. इसके बाद 1996 में उन्होंने केशुभाई की सरकार को गिराने वाले शंकर सिंह वाघेला का साथ दिया. वाघेला की राष्ट्रीय जनता पार्टी में चले गए और बाद में कांग्रेस के समर्थन से बनी वाघेला सरकार में वह गृह राज्य मंत्री बने. 

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वाघेला से चौधरी ने नाता तोड़ा

हालांकि, शंकर सिंह वाघेला से मतभेद होने के चलते वह उनसे भी अलग हो गए. साल 2002 में विपुल चौधरी ने शंकर सिंह वाघेला के खिलाफ ही बगावत कर दी. शंकर सिंह वाघेला जब गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष थे, तब विपुल चौधरी को टिकट नहीं दिया गया, जिसके बाद लगातार विपुल चौधरी दूधसागर डेयरी के साथ जुड़े रहे. 2013 में विपुल चौधरी ने सार्वजनिक मंच पर तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी के पैर छुए थे. इसे लेकर गुजरात की राजनीति में चर्चाएं तेज हो गई थी. 

उत्तर गुजरात में सियासी आधार रखने वाले विपुल चौधरी ने अरबुदा सेना बनाकर गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 लड़ने की तैयारी कर रहे थे. विपुल चौधरी की फिर से कांग्रेस की नजदीकियां फिर से बढ़ रही है. विपुल चौधरी के कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की चर्चा तेज है. यही वजह है कि कांग्रेस के नेता खुलकर विपुल चौधरी के समर्थन में उतर गए हैं तो अरबुदा सेना के लोग गिरफ्तारी के विरोध में बनासकांठा में धरना दिया. 

नार्थ गुजरात के समीकरण

बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को शंकर सिंह वघेला की बगावत नार्थ गुजरात में महंगी पड़ी थी. कांग्रेस के परंपरागत ओबीसी वोटबैंक भी छिटका गया है, जिससे नार्थ गुजरात में पार्टी को नुकसान हुआ था. नार्थ गुजरात क्षेत्र में 53 विधानसभा सीटें हैं. इनमें से बीजेपी 35 सीटें जीतने कामयाब रही तो कांग्रेस के खाते में 17 सीटें आई थी. वहीं, साल 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 32 और कांग्रेस को 21 सीटें मिली थीं. माना जाता है कि कांग्रेस विपुल चौधरी को साथ लेकर अपने सियासी आधार को मजबूत करना चाहती थी.  

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